शब्दकोष 02 || अक्षर से अतिरिक्त तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ
अक्षर - अतिरिक्त तक के शब्दों के शब्दार्थ आदि
अक्षर - अतिरिक्त
अक्षर (सं., वि. ) = जो क्षर ( विनाशशील या परिवर्तनशील ) नहीं हो , अविनाशी , परिवर्त्तन रहित , विनाश रहित । (पुं.) चेतन प्रकृति ।
(अंग = अवयव , प्रकार , भेद । P04 )
(अन्त = समाप्त, खत्म । P11 )
(अन्तर-भक्ति = अन्तर्मुख कर देनेवाली भक्ति , सूक्ष्म एवं सूक्ष्मातिसूक्ष्म उपासना । P07)
(अंश = हिस्सा , अवयव , भाग । P07) ( P06 )
(अकथ = जो कहने में नहीं आए , मुँह से जिसका उच्चारण नहीं किया जा सके । P05 )
(अकपट = कपट - रहित , छल - रहित , जो दुराव - छिपाव नहीं करता हो , सच्चा , सरल । P04 )
अखंड ( सं ०, वि ० ) = अंश रहित , अवयव रहित , जिसका खंडन ( नाश ) नहीं किया जा सके , अविनाशी ।
अखिल ( सं ० , वि ० ) = समस्त , सब , पूरा ।
अगम ( सं ० वि ० ) = जहाँ तक किसी भी इन्द्रिय की पहुँच नहीं हो , जहाँ जाना कठिन हो । ( पुं ० ) परमात्मा ।
{अगम = अगम्य , नहीं जानेयोग्य , जहाँ कोई पहुँच न सके , बुद्धि से परे बहुत , अत्यन्त ; यहाँ अर्थ है - अपार । ( आदिनाद को १३७ वें पद्य में भी अगम - अपार कहा गया है ; देखें- “ घट घट में होता आप ही , यह शब्द अगम अपार है । " ) P05 }
(अगम = अगम्य, अथाह, कठिनाई से जाने या पार करनेयोग्य । P11 )
(अगम रस = वह आनंद जो किसी इन्द्रिय से नहीं चेतन आत्मा से प्राप्त किया जा सके । P145 )
(अगर = चंदन। S03)
अगुण ( सं ० वि ० ) = गुण - रहित , निर्गुण ; सत्त्व , रज तथा तम- प्रकृति के इन तीनों गुणों से रहित । ( पुं ० ) परमात्मा , चेतन प्रकृति , आदिनाद ।
(अगुण - निर्गुण , त्रय गुण - रहित , निर्मल , चेतन मंडल , चेतन प्रकृति । P30 )
{अगुण ( अ + गुण ) = निर्गुण ; सत्त्व , रज और तम - इन तीनों गुणों से जो विहीन है , चेतन प्रकृति । P06 }
अगुण ब्रह्म ( सं ० , पुं ० ) = निर्गुण ब्रह्म , परमात्मा , त्रय गुण - रहित चेतन प्रकृति में या त्रय गुण - रहित आदिनाद में व्यापक परमात्मा का अंश ।
अगोचर ( सं ० , वि ० ) = निर्विषय , जो किसी इन्द्रिय का विषय नहीं हो , किसी इन्द्रिय से नहीं जाननेयोग्य ।
{अगोचर (अ+गो+चर) = जो किसी भी इन्द्रिय का विषय नहीं है , जो किसी भी इन्द्रिय की पकड़ में नहीं आता । ( गो = इन्द्रिय । गोचर = जिसमें इन्द्रिय विचरण करे , जो किसी इन्द्रिय की पकड़ में आए , जो किसी इन्द्रिय का विषय हो । चर = चलनेवाला , जानेवाला । ) P06 }
अगोचर नाम ( सं ० , पुं ० ) = जिस शब्द का सुनना कान के द्वारा नहीं हो , अनहद नाद , ध्वन्यात्मक सारशब्द ।
{अघारी = अघारि ( अघ + अरि ), पापों के शत्रु , पापों का नाश करनेवाला । ( अघ = पाप । अरि = शत्रु , नाश करनेवाला ) P02, अघारी = अघारि, पाप का शत्रु, पाप का नाश करनेवाला । P14 )
{अघोष ( अ + घोष ) = अ - नाद , नाद - रहित , जो वस्तुओं के कंपित होने से उत्पन्न ध्वन्यात्मक शब्द नहीं है , जो जड़ात्मक मंडलों के ध्वन्यात्मक शब्दों से भिन्न ध्वनि है , जिसका उच्चरण मुँह से नहीं किया जा सके । ( आदिनाद अलौकिक और चेतन अनाहत नाद है । ) P05 }
अचित् ( सं ० , वि ० ) = चेतना-विहीन , जड़ ( पुं ० ) जड़ पदार्थ ।
(अच्छत = अक्षत , बिना टूटा हुआ चावल जो पूजा में चढ़ाया जाता है । P145 )
अचिन्त्य ( सं ० , वि ० ) = चिन्तन नहीं करने के योग्य , जो मन बुद्धि आदि भीतरी इन्द्रियों की पकड़ में नहीं आ सके । ( पँ ० ) परमात्मा ।
अज ( सं ० , वि ० ) = अजन्मा , जन्म रहित , उत्पत्ति - रहित , जो किसी से उत्पन्न नहीं हुआ हो ।
(अज ( अ+ज ) = अजन्मा , जन्म - रहित , जो किसी से जनमा हुआ ( उत्पन्न ) नहीं है , जो कभी जन्म नहीं लेता । P05)
(अज = अजन्मा , उत्पत्ति - रहित । P13 )
(अजन्मा ( अ + जन्मा ) = अज , जो किसी से जनमा हुआ ( उत्पत्र ) नहीं है , जो कभी जन्म नहीं लेता है । P06 )
(अजय = अजेय , जो किसी से जीता न जा सके , जो किसी के द्वारा शासित न हो सके ; भाव यह कि जो अपरंपार शक्ति - युक्त है । P05)
अजर नाम ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा का वह ध्वन्यात्मक नाम जिसमें कभी परिवर्त्तन या बदलाव नहीं होता , ध्वन्यात्मक सारशब्द ।
(अजा ( अज का स्त्रीलिंग रूप ) = अजन्मा । P07)
अजीत ( सं ० अजित , वि ० ) = अजेय , जो किसी के द्वारा जीता नहीं जा सके ।
(अटल = जो टले नहीं, जो चले नहीं, जो कुछ भी हिले-डुले नहीं, बिल्कुल स्थिर । P12 )
(अटल विश्वास = गुरु - वाक्य , सच्छास्त्र और सद्विचार - तीनों का मेल होने पर होनेवाला अटल विश्वास । P07)
अटूट ( हिं ० वि ० ) = जो टूटा हुआ नहीं हो , जो अलग नहीं हो , जुड़ा हुआ , सटा हुआ , मिला हुआ ।
अणु से अणु रूप ( पुं ० )= परमात्मा का छोटे - से - छोटा रूप , शरीर के अन्दर दृष्टियोग के साधक को दिखलायी पड़नेवाले ज्योतिर्मय विन्दु ।
अणुता ( सं ० , स्त्री ० )= अणु होने का भाव , छोटा होने का भाव , छोटाई ।
अतएव ( सं ० , अव्य ० ) = इसीलिए , इसी कारण से , इसी से ।
अति ( सं ० , वि ० ) = अत्यन्त , बहुत , बहुत अधिक ।
(अति उज्ज्वल = अत्यन्त उजला, बहुत अधिक प्रकाश सन्मुख सम्मुख, सामने । P10 )
{अति चेतन = अत्यन्त ज्ञानवान् , अत्यन्त जगा हुआ । ( जो तुरीयातीतावस्था को प्राप्त कर लेता है , वही पूरा जगा हुआ कहा जाता है । ) P04 }
अतिरिक्त ( सं ० , वि ० ) = बचा हुआ, शेष, अलग । ( क्रि० वि० ) छोड़कर, शिवा, अलावा ।∆
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प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में अक्षर, अंग, अखंड, अखिल, अगम, अगम रस, अगुण, अगुण ब्रह्म, अगोचर, अगोचर नाम, अघोष, अचित्, अच्छत, अचिन्त्य, अज, अजन्मा, अजर नाम, अजा, अटल विश्वास, अटूट, अणुता, अति चेतन, आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।
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