संतमत का शब्द-विज्ञान / 04
६. शब्द माध्यम में कैसे चलता है :
किसी शान्त सरोवर में पत्थर का एक ढेला फेंक देने पर जल का एक विशेष भाग क्षुब्ध हो जाता है , जिससे जल ऊपर होने लगता है और लहरें उत्पन्न होकर किनारे की ओर बढ़ती जाती हैं । सरोवर में कहीं एक पत्ता पड़ा हो , तो देखा जाता है कि वह इन लहरों के साथ आगे नहीं बढ़ता , वह एक ही स्थान पर ऊपर - नीचे काँपता रहता है । इससे सिद्ध होता है कि जल एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जाता , केवल लहरें आगे बढ़ती जाती हैं ।
जिस प्रकार जल की लहरें एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती हैं ; परन्तु जल नहीं , उसी प्रकार ध्वनि की तरंगें भी किसी माध्यम में आगे बढ़ती हैं ; परन्तु माध्यम का कण आगे नहीं बढ़ता , वह अपने ही स्थान पर ध्वनि - गमन की दिशा में आगे - पीछे काँपता रहता है । जब जल में ही उत्पन्न होती हैं , तो जल का कण लगभग ऊपर - नीचे काँपता रहता है , आगे - पीछे नहीं ।
बहुत - से पदार्थों का काँपना देखा जा सकता है या स्पर्श करके अनुभूत किया जा सकता है ; परन्तु उससे उत्पन्न शब्द अदृश्य है , उसे केवल सुना ही जा सकता है । जल की लहरों को हम देख पाते हैं ; परन्तु ध्वनि की लहरों को हम देख नहीं पाते । कंपन स्थूल है और ध्वनि उसकी अपेक्षा सूक्ष्म ।
किसी पदार्थ के दो परमाणुओं के बीच जगह होती है । परमाणु पदार्थ का सूक्ष्मतम कण है । जब घंटी बजती है , तो उसके सभी कण अगल - बगल काँपने लगते हैं । उन कणों के संपर्क में वायु के जो कण होते हैं , वे भी घंटी के काँपते हुए कणों से आघात खाकर काँपने लगते हैं । इस प्रकार घंटी और कानों के बीच की वायु के सभी कण आगे - पीछे काँपने लगते हैं । वायु का काँपता हुआ कण कान के पर्दे में भी कंपन पैदा कर देता है । यह कंपन हमारे मस्तिष्क को अनुभूत होता है और इस प्रकार हमें शब्द की संवदेना होती है । इसी प्रकार की बात ठोस और तरल पदार्थों में भी होती है ।
७. शब्द से खाली संसार का कोई भी स्थान नहीं :
ऐसा संभव नहीं है कि किसी पदार्थ के कंपन से शब्द हो और किसी पदार्थ के कंपन से शब्द नहीं हो । जहाँ कुछ भी कंपन या गति है , वहाँ शब्द अवश्य होगा । भले ही कुछ शब्दों को हम सुन पाएँ और कुछ को नहीं सुन पाएँ । शरीर बढ़ता है , नाड़ी चलती है , पृथ्वी चलती है , विद्युत् धारा प्रवाहित होती है सबसे शब्द होता है ; परन्तु सब शब्दों को हम नहीं सुन पाते । इसका कारण यह है कि हमारी कर्णेन्द्रिय की श्रवण शक्ति सीमित है ।
नाड़ियाँ चलती हैं , इनसे भी आवाज होती है । जहाँ कुछ गति है , संचालन है , वहाँ ध्वनि है । संसार गतिशील है , इसलिए संसार शब्दों से भरा हुआ है । आपके शरीर में भी शब्द है । स्थूल शब्द को डॉक्टर लोग कान में यंत्र लगाकर सुनते हैं ; किन्तु बारीक शब्द को नहीं सुन पाते । बारीक शब्द को आप तब सुन सकते हैं , जब आप विन्दु को प्राप्त कर लें । ( सत्संग - सुधा , द्वितीय भाग , तीसरा प्रवचन ) ∆
८. हम सब शब्दों को क्यों नहीं सुन पाते :
भौतिक शास्त्री कहते हैं कि काँपती हुई वस्तु का ; जैसे दीवाल - घड़ी के दोलक का दायीं ओर से बायीं ओर और बायीं ओर से दायीं ओर आना एक कंपन या आवृत्ति कहलाता है । लहरें उठी हुई नदी के जल का ऊपर......
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सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।