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शब्दकोष 04 || अनादि से अनुकूल तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि मेंही और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और गुरुदेव

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


अनादि - अनुकूल


अनादि ( सं ० , वि ० पँ ० ) = आदि रहित, आरंभ रहित , आदि - मध्य तथा अन्त नहीं रखनेवाला , उत्पत्ति रहित , अपने पहले कुछ नहीं अनामी रखनेवाला । ( परमात्मा उत्पत्ति और देश - काल की भी दृष्टि से ( अनादि है । ) 

{अनादि ( अन् + आदि ) = आदि - रहित , आरंभ - रहित , आदि - मध्य - अन्त - रहित , अपूर्व , जिसके पहले दूसरा कोई तत्त्व नहीं हो , जिसका कहीं आरंभ नहीं हो , उत्पत्ति रहित । ( देश - काल से परे परमात्मा के पूर्व परमात्मा से भिन्न दूसरा कुछ नहीं था । ) P05}

{अनादि ( न + आदि ) = जिसका कहीं आरंभ नहीं है , जिसके पहले उससे भित्र दूसरा कुछ नहीं है , जो उत्पत्ति - रहित है । P06 }

{अनादि ( न + आदि ) = आदि - रहित । P07}

(अनादि - अनन्तस्वरूपी = आदि - अन्त - रहित स्वरूपवाला । P06

अनादि अनन्तस्वरूपी ( सं ० , वि ० ) = आदि - रहित और अन्त - रहित स्वरूप रखनेवाला । ( पुं ० ) परमात्मा । 

अनादि का आदि ( पुं ० ) = जो अनामी अनादि ( प्रकृति ) के आदि ( आरंभ ) में या आरंभ से हो , अनामी परमात्मा । 

अनादि सान्त ( सं ० , वि ० ) = आदि - रहित और अन्त सहित । ( पॅ ० ) प्रकृति जो देश - काल की दृष्टि से अनादि है और समीम ( हददार , सीमाबद्ध ) है । 

अनाद्या ( सं ० वि ० स्त्री ० ) = आदि - रहित , ' उत्पत्ति रहित , आदि - अन्त तथा मध्य - रहित , अपने आरंभ में दूसरा कुछ नहीं रखनेवाली । ( स्त्री ० ) प्रकृति जो देश - काल की दृष्टि से अनाद्या है ; परन्तु उत्पत्ति की दृष्टि से अनाद्या नहीं है । 

अनाम ( सं ० , वि ० ) = नाम रहित , शब्द - रहित । ( पुं ० ) अनाम पद , शब्दातीत पद , परमात्मा । 

(अनाम = नाम-रहित, कोई वर्णात्मक शब्द जिसका सच्चा नाम नहीं हो, अशब्द, निःशब्द, शब्दातीत, शब्द-रहित । P12 )

अनाम पद ( सं ० , पुं ० ) = शब्दातीत  पद , शब्द - रहित पद , ध्वनि विहीन स्थान , परमात्म - पद । 

{अनामय (न + आमय = अन् + आमय ) = रोग - रहित , रिकार - रहित , परिवर्तन - रहित , क्षय - रहित । ।  P01 }

अनामी ( वि ० ) = नाम - रहित , शब्दातीत , शब्द से रहित , नाम से रहित ( पुं ० ) परमात्मा । 

अनामी पुरुष ( पुं ० ) = नाम से रहित पुरुष , शब्द - रहित पुरुष ,परम प्रभु परमात्मा ।  

अनामी पुरुषोत्तम ( सं ० , वि ० ) = जो शब्द - रहित है और क्षर पुरुष ( जड़ प्रकृति ) तथा अक्षर पुरुष ( चेतन प्रकृति ) से भी श्रेष्ठ  है । ( पुं० ) परमात्मा । 

(अनाड़ी = अज्ञानी , विचारहीन , मंद , जो तीव्र न हो । P02 )

अनावश्यक ( सं ० , वि ० ) = जो आवश्यक नहीं हो , जिसकी  आवश्यकता न हो । 

अनाहत ( सं ० वि ० ) = बिना चोट खाया हुआ , जिसने चोट नहीं खायी हो , जो घायल नहीं हुआ हो , जो ( शब्द ) किसी पदार्थ  कंपन से उत्पन्न नहीं हुआ हो ।

{अनाहत ( न + आहत ) = जो आहत नहीं हुआ हो , जिसपर आघात नहीं किया गया हो ; यहाँ अर्थ है अनाहत शब्द अर्थात् वह शब्द जो किसी पदार्थ के आहत होने पर उत्पन्न नहीं हुआ हो . आदिनाद , सारशब्द । ( आदिनाद अत्यन्त अचल अकंप अनन्तस्वरूपी परमात्मा से अलौकिक रीति से उत्पन्न हुआ है । ) P01 }

अनाहत चक्र ( सं ० , पुं ० ) = पिंड के एक चक्र का नाम , हृदय - चक्र |

अनाहू ( पुं ० ) = भँवर गुफा का शब्द । 

अनिवार्य ( सं ० , वि ० ) = जिसका निवारण नहीं किया जा सके , नहीं हटाने के योग्य , आवश्यक । 

अनीह ( सं ० , वि ० ) = इच्छा - रहित , चेष्टा - रहित , क्रिया - रहित ।

अनुकूल ( सं ० , वि ० ) = अनुरूप, किसी पक्ष का समर्थन करने वाला ।∆


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  अनादि, अनादि अनंतस्वरूपी, अनिवार्य, अनुकूल, अनाहत चक्र, अनावश्यक, अनाम, अनामि पुरुष,  अनाम, अनीह, अनुकूल, अनाहत चक्र, इत्यादि  शब्दों के शब्दार्थादि आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।



हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


शब्द कोस,
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