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मोक्ष दर्शन (59-66) Surat Shabd Yoga karne ke niyam ।। सुरत-शब्द-योग का परिचय ।। महर्षि मेंहीं

सत्संग योग भाग 4 (मोक्ष दर्शन) / 07

प्रभु प्रेमियों ! भारतीय साहित्य में वेद, उपनिषद, उत्तर गीता, भागवत गीता, रामायण आदि सदग्रंथों का बड़ा महत्व है। इन्हीं सदग्रंथों, प्राचीन और आधुनिक संतो के विचारों को संग्रहित करकेे 'सत्संग योग' नामक पुस्तक की रचना हुई है। इसमें सभी पहुंचे हुए संत-महात्माओं के विचारों में एकता है, इसे प्रमाणित किया है और चौथे भाग में इन विचारों के आधार पर और सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की अपनी साधनात्मक अनुभूतियों से जो अनुभव ज्ञान हुआ है, उसके आधार पर मनुष्यों के सभी दुखों से छूटने के उपायों का वर्णन किया गया है। इसे मोक्ष दर्शन के नाम से भी जाना जाता है। इसमें ध्यान योग से संबंधित बातों को अभिव्यक्त् करने के लिए पाराग्राफ नंंबर दिया गया हैैैै । इन्हीं पैराग्राफों में से  कुुछ पैराग्राफों  के बारे  में  जानेंगेेेे ।

इस पोस्ट के पहले वाले पोस्ट मोक्ष दर्शन (54-59) को पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।

सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

Surat Shabd Yoga karne ke niyam

     प्रभु प्रेमियों! ! संतमत के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज  इसमें योग और यौगिक क्रिया, शब्द योग,सुरत शब्द अभ्यास, surat shabd yoga in hindi, surat shabd yoga mantra, yog, yog ki paribhasha, yoga bataye, योग का परिचय, yoga abhyas in hindi, yog shiksha, योग के प्रकार, introduction of yoga in hindi, yoga karne ke niyam, surat shabd yoga karne ke niyam  yog aur yaugik kriya, shabd yog,surat shabd abhyaas, surat shabd yog in hindi, surat shabd yog mantr, yog, yog ki paribhash, yog batayai, yog ka parichay, yog abhyas in hindi, yog shiksh, yog ke prakaar, introduchtion of yog in hindi, yog karnai kai niyam, surat shabd yog karnai kai niyam   इत्यादि बातों के बारे में बताया है-  इन बातों को समझने के लिए पढ़े ं-



मोक्ष दर्शन (59-66) 


( ६० ) दृष्टियोग बिना ही शब्दयोग करने की विधि यद्यपि उपनिषदों और भारती सन्तवाणी में नहीं है , तथापि सम्भव है कि बिना दृष्टियोग के ही यदि कोई सुरत - शब्द - योग का अत्यन्त अभ्यास करे , तो कभी - न - कभी स्थूल मण्डल का केन्द्रीय शब्द उससे पकड़ा जा सके और तब उस अभ्यासी के आगे का काम यथोचित होने लगे । इसका कारण यह है कि अन्तर के शब्द में ध्यान लगाने से यही ज्ञात होता है कि सुनने में आनेवाले सब शब्द ऊपर की ही ओर से आ रहे हैं , नीचे की ओर से नहीं और वह केन्द्रीय शब्द भी ऊपर की ही ओर से प्रवाहित होता है । शब्द - ध्यान करने से मन की चंचलता अवश्य छूटती है । मन की चंचलता दूर होने पर मन सूक्ष्मता में प्रवेश करता है । सूक्ष्मता में प्रवेश किया हुआ मन उस केन्द्रीय सूक्ष्म नाद को ग्रहण करे , यह आश्चर्य नहीं ; परन्तु उपनिषदों की और भारती सन्तवाणी की विधि को ही विशेष उत्तम जानना चाहिये । शब्द की डगर पर चढ़े हुए की  दुर्गति और अधोगति असम्भव है । झूठ , चोरी , नशा , हिंसा तथा व्यभिचार ; इन पापों से नहीं बचनेवाले को वर्णित साधनाओं में सफलता प्राप्त करना भी असम्भव ही है । नीचे के मण्डलों के शब्दों को धारण करते हुए तथा उनसे आगे बढ़ते हुए अन्त में आदिनाद वा आदिशब्द या सारशब्द का प्राप्त करना , पुनः उसके आकर्षण से उसके केन्द्र में पहुँचकर शब्दातीत पद के पाने की विधि ही उपनिषदों और भारती सन्तवाणी से जानने में आती है तथा यह विधि युक्ति - युक्त भी है , इसलिए इससे अन्य विधि शब्दातीत अर्थात् अनाम पद तक पहुँचने की कोई और हो सकती है , मानने योग्य नहीं है और अनाम तक पहुँचे बिना परम कल्याण नहीं । 

( ६१ ) वर्णित साधनों से यह जानने में साफ - साफ आ जाता है कि पहले स्थूल सगुण रूप की उपासना की विधि हुई , फिर सूक्ष्म सगुण रूप की उपासना की विधि हुई , फिर सूक्ष्म सगुण अरूप की उपासना की विधि और अन्त में निर्गुण - निराकार की उपासना की विधि हुई । 

( ६२ ) मानस जप और मानस ध्यान स्थूल सगुण रूप - उपासना है , एकविन्दुता वा अणु से भी अणुरूप प्राप्त करने का अभ्यास सूक्ष्म सगुण रूप - उपासना है , सारशब्द के अतिरिक्त दूसरे सब अनहद नादों का ध्यान सूक्ष्म , कारण और महाकारण सगुण अरूप - उपासना है और सारशब्द का ध्यान निर्गुण निराकार - उपासना है । सभी उपासनाओं की यहाँ समाप्ति है । उपासनाओं को सम्पूर्णत : समाप्त किये बिना शब्दातीत पद ( अनाम ) तक अर्थात् परम प्रभु सर्वेश्वर तक की पहुँच प्राप्त कर परम मोक्ष का प्राप्त करना अर्थात् अपना परम कल्याण बनाना पूर्ण असम्भव है । 

( ६३ ) निःशब्द अथवा अनाम से शब्द अथवा नाम की उत्पत्ति हुई है , इसके र्थात् नाम के ग्रहण से इसके आकर्षण में पड़कर , इससे आकर्षित हो निःशब्द वा शब्दातीत वा अनाम तक पहुँचना पूर्ण सम्भव है । 

( ६४ ) अनाम के ऊपर कुछ और का मानना वा अनाम के नीचे रचना के किसी मण्डल में अशब्द की स्थिति मानना बुद्धि - विपरीत है । 

( ६५ ) उपनिषदों में शब्दातीत पद को ही परम पद कहा गया है , और श्रीमद्भगवद्गीता में क्षेत्रज्ञ कहकर जिस तत्त्व को जनाया गया है , उससे विशेष कोई और तत्त्व नहीं हो सकता है । इसलिए उपनिषदों तथा श्रीमद्भगवद्गीता में बताये हुए सर्वोच्च पद से भी और कोई विशेष पद है , ऐसा मानना व्यर्थ है । जो ऐसा नहीं समझते और नहीं विश्वास करते , उनको चाहिए कि शब्दातीत पद के नीचे रचना के किसी मण्डल में निःशब्द का होना तथा क्षेत्रज्ञ से विशेष और किसी तत्त्व की स्थिति को संसार के सामने विचार से प्रमाणित कर दें ; परन्तु ऐसा कर सकना असम्भव है । विचार से सिद्ध और प्रमाणित किये बिना ऐसा कहना कि मेरे गुरु ने उपनिषदादि में वर्णित पद से ऊँचे पद को बतलाया है , ठीक नहीं ; क्योंकि इस तरह दूसरे भी कहेंगे कि मैं आपसे भी ऊँचा पद जानता हूँ । 

( ६६ ) इसमें सन्देह नहीं कि केवल एक सारशब्द वा आदिशब्द ही अन्तिम पद अर्थात् शब्दातीत पद तक पहुँचाता है ; परन्तु इससे यह नहीं जानना चाहिए कि इसके अतिरिक्त दूसरे सब मायिक शब्दों में के शब्दों का ध्यान करना ही नहीं चाहिये ; क्योंकि ये दूसरे शब्द मायावी हैं , इनके ध्यान से अभ्यासी अत्यन्त अधोगति को प्राप्त होगा । सारशब्द के अतिरिक्त अन्य किसी भी शब्द के ध्यान की उपर्युक्त निषेधात्मक उक्ति उपनिषद् और भारती सन्तवाणी के अनुकूल नहीं है और न युक्ति - युक्त ही है , अतएव मानने योग्य नहीं है । संख्या ४४ , ४५ , ४६ , ५ ९ और ६० की वर्णित बातें इस विषय का अच्छी तरह बोध दिलाती हैं । 

( ६७ ) दृष्टि - योग से शब्द - योग आसान है । यह वर्णन हो चुका है कि एकविन्दुता प्राप्त करने तक के लिए दृष्टि - योग अवश्य होना चाहिए ; परन्तु और विशेष दृष्टि - योग कर तब शब्द - अभ्यास करने का ख्याल रखना आवश्यक है ; क्योंकि इसमें विशेष काल तक कठिन मार्ग पर चलते रहना है । इति।।


( मोक्ष-दर्शन में आये किलिष्ट शब्दों की सरलार्थ एवं अन्य शब्दों के शब्दार्थादि की जानकारी के लिए "महर्षि मेँहीँ + मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें ) 



इस पोस्ट के बाद वाले पोस्ट में मोक्ष-दर्शन के पाराग्राफ  66 से 71 तक  को पढ़ने के लिए   👉  यहां दबाएं ।



प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष दर्शन के उपर्युक्त पैराग्राफों से हमलोगों ने जाना कि Yoga and Yogic Kriya, word yoga, Surat word practice, surat shabd yoga in hindi, surat shabd yoga mantra, yog, yog ki paribhasha, yoga bataye, introduction to yoga, yoga abhyas in hindi, yog shiksha, types of yoga, introduction of  yoga in hindi, yoga karne ke niyam, surat shabd yoga karne ke niyam इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें।




महर्षि मेंहीं साहित्य "मोक्ष-दर्शन" का परिचय

मोक्ष-दर्शन
  'मोक्ष-दर्शन' सत्संग-योग चारों भाग  पुस्तक का चौथा भाग ही है. इसके बारे में विशेष रूप से जानने के लिए  👉 यहां दवाएं


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