संतमत तत्वज्ञान बोधिनी
प्रभु प्रेमियों ! अध्यात्म साधना के साधक गुरुसेवी स्वामी भगीरथ जी महाराज ने संतमत-सत्संग-साधना-समुद्र में मरजीवा बनकर गहरी डुबकी लगाई और वहाँ की अतल गहराई से ज्ञान की एक मुट्ठी लायी है, जिसमें अनेक अमूल्य वस्तुएँ हैं। इन अमूल्य वस्तुओं को इन्होंने अपनी पुस्तक 'संतमत तत्त्वज्ञान बोधिनी' के सात निबंधों के सात वर्ण विषय बनाए हैं, जो इस प्रकार हैं- 'जीव की नित्यता एवं आवागमन', 'ईश्वर का स्वरूप', 'अपने से अपनी पहचान','सत्संग, गुरु-पूजा, सदाचार और योग के आठ अंग।' आइये योग के इन सात अंगों के बारे में अच्छी प्रकार जानकारी प्राप्त करने के लिए इस पुस्तक का परिचय प्राप्त करें--
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योग के सात अंगों अच्छी तरह समझाने वाली संतमत की अनमोल पुस्तक 'संतमत तत्वज्ञान बोधिनी'
गुरुसेवी स्वामी भगीरथजी संतमत सत्संग ही नहीं, बल्कि अध्यात्म-जगत् में एक जाना-पहचाना नाम है। यह पहचान इनकी उस अटूट गुरु-सेवा का प्रतिफल है, जो इन्होंने संतमत सत्संग के महान आचार्य परमाराध्य संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज की डेढ़ दसक से अधिक समय तक अहर्निश सेवा की है। मैंने अपनी आँखों से उनकी सेवा में इन्हें दिवा से रात्रि निरत देखा है। परमाराध्य संत महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज जन-कल्याणार्थ जो मार्ग निर्देशित कर गये हैं, उसपर ये आज भी अडिग भाव से अनवरत चल रहे हैं। इनकी इस उदात्त महत्तर गुरु-सेवा के कारण ही स्वामी भगीरथ जी को 'गुरुसेवी' की संज्ञा से अभिहित किया गया है। अध्यात्म साधना के साधक गुरुसेवी स्वामी भगीरथ जी ने संतमत-सत्संग-साधना-समुद्र में मरजीवा बनकर गहरी डुबकी लगाई और वहाँ की अतल गहराई से ज्ञान की एक मुट्ठी लायी है, जिसमें अनेक अमूल्य वस्तुएँ हैं। इन अमूल्य वस्तुओं को इन्होंने अपनी पुस्तक 'संतमत तत्त्वज्ञान बोधिनी' के साथ निबंधों के सात वर्ण विषय बनाए हैं, जो इस प्रकार हैं- 'जीव की नित्यता एवं आवागमन', 'ईश्वर का स्वरूप', 'अपने से अपनी पहचान', 'सत्संग, गुरु-पूजा, सदाचार और योग के आठ अंग।' इनके अतिरिक्त पुस्तक के अंत में परिशिष्ट के अंतर्गत अध्यात्म-जगत् से संबंधित अनेक जिज्ञासाएँ और उनके समाधान प्रस्तुत किये गये हैं। इनसे अध्यात्म जगत् की स्थूल, सूक्ष्म बातों को समझने में अत्यन्त सहायता मिलती है। प्रस्तुत पुस्तक के विविध निबंध गंभीर और सारगर्भित हैं। इसके ये निबंध पाठकों की जीवन-तमिस्त्रा के संकट में भास्वर सूर्य-किरणों की भाँति शुभराह दिखानेवाले होंगे, इसमें विन्दु-विसर्ग मात्र भी संदेह नहीं। यह पुस्तक पाठक को उस परमात्मा को प्राप्त करने की प्रेरणा देती है, जिसकी प्राप्ति के पश्चात् कुछ पाने को बाकी नहीं रह जाता है, जीव पीव (परमात्मा) ही हो जाता है। लेखक गुरुसेवी स्वामी भगीरथजी महाराज को विषय प्रतिपादन में अच्छी सफलता मिली है। विषय की भाषा सरल एवं प्रवाहमयी है। विषय को बोधगम्य बनाने के लिए आर्षग्रंथों एवं संत-वाणियों आदि से अनेक स्थलों पर उद्धरण दिये गये हैं। इन उद्धरणों से विषय को समझना सुबोध गम्य एवं प्रमाणिक हो गया है। अधिक क्या कहें प्रस्तुत पुस्तक को आप स्वयं अध्ययन करके देखें---
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प्रभु प्रेमियों ! गुरुसेवी स्वामी भगीरथ साहित्य सीरीज में आपने 'परमात्म प्राप्ति के साधन' नामक पुस्तक के बारे में जानकारी प्राप्त की. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे से समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें । इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। ऐसा विश्वास है । जय गुरु महाराज 🙏🙏🙏
प्रभु प्रेमियों ! भगीरथ साहित्य सीरीज की अगली पुस्तक "BS03. अपने गुरु की याद में - " है। हमलोग गुरु कृपा और उनके द्वारा बताए गए ईश्वर-स्मरण, सत्य स्वरूप के ध्यान और आंतरिक प्रकाश व नाद की खोज जैसे साधनाओं के महत्व को जाना हैं। उनकी शिक्षाओं के अनुसार गुरु का स्मरण और ईश्वर भक्ति से जीवन को पवित्र कर, दुखों को मिटाकर आत्मा को परमात्मा से मिलाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक "अपने गुरु की याद में" में उपरोक्त बातों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गई है । जिससे की पुस्तक का नाम सार्थक हुआ है ।इस पुस्तक में आपने अपने गुरुदेव के . कई चमत्कारिक संस्मरणों का समावेश किया है। इस पुस्तक से गुरुजनों की सेवा किस तरह से करनी चाहिए, इसकी जानकारी होती है। पूर्ण संत की कैसी-कैसी लीलाएँ होती हैं, उन सबका विवरण है। इस पुस्तक के बारे में और जानने के लिए 👉 यहाँ दवाएँ।
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