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महर्षि मेँहीँ के अमृत वचन || गुरुदेव के ४१ प्रवचनों में उत्तम जीवन जीने तथा ध्यान-भजन करने की महत्वपूर्ण बातें हैं।

महर्षि मेँहीँ के अमृत वचन 

     'महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन' नाम्नी पुस्तक में गुरुदेव के छोटे-छोटे ४१ प्रवचन संकलित किये गये हैं, जो बड़े ही ज्ञानव्द्धक और शिक्षाप्रद हैं । गुरुदेव में सरलता थी, उनमें कुछ भी दिखावा नहीं था। उनकी भाषा में भी सरलता है, कम पढ़े-लिखे लोग भी उनकी भाषा को सरलता से समझस लेते हैं। उनके लिखित प्रवचनों को पढ़ने से धर्मीप्रेमियों को अनंद आता है, उनका ज्ञान-वर्धन होता है और उन्हें उत्तम जीवन जीने तथा ध्यान-भजन करने की भी प्रेरणा मिलती है।

महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन, गुरु महाराज जी के प्रवचन, संतमत सत्संग प्रवचन,
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन'

महर्षि मेँहीँ के अमृत वचन 

     योग के आठ अंग हैं- यम, नियम, आसन, प्रणयाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। नियम के अंतर्गत स्वाध्याय भी आता है; देखें- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर-प्रणिधान। योगाभ्यासी के लिए स्वाध्याय बहुत आवश्यक है। 'स्वाध्याय' का अर्थ है- प्रतिदिन नियमपूर्वक सदग्रंथ का अध्ययन करना। सद्गरंथ का अध्ययन करना भी सत्संग है। 

     सद्ग्रंथ का अध्ययन करने से हमारा मन पवित्र होता है, हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है और हमारा समय अचछे काम में व्यतीत होता है। जीवन-पर्य्त हमें ज्ञान सीखना चाहिए, ज्ञानार्जन से हमें कभी मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। 

     ज्ञान की बातों को सदा ही दुहराते रहना चाहिए, नहीं दुहराने पर वे विस्मृति के गर्भ में चली जाती हैं। ज्ञान की विस्मृति हो जाने पर हमें हानि ही होती है, लाभ नहीं। ज्ञान हमें मोक्ष दिलाता है- ज्ञानात् मोक्षम् अवाप्नोति तस्मात् ज्ञानम् परात्परम्।' (बृहत् तंत्रसार ) जो जितना अधिक ज्ञानी होता है, वह उतना अधिक सुखी होता है। 

     पूज्यपाद सद्गुरु मह्षिं मेँहीँ परमहंसजी महाराज जीवन-पर्यन्त स्वाध्यायशील बने रहे। बढ़ापे में वे शिष्यों से प्रतिदिन नियमित रूप से सद्ग्रंथ का पाठ कराकर सुना करते थे।

      'महर्षि मेँहीँ के अमृत वचन' नाम्नी पुस्तक में गुरुदेव के छोटे-छोटे ४१ प्रवचन संकलित किये गये हैं, जो बड़े ही ज्ञानव्द्धक और शिक्षाप्रद हैं । गुरुदेव में सरलता थी, उनमें कुछ भी दिखावा नहीं था। उनकी भाषा में भी सरलता है, कम पढ़े-लिखे लोग भी उनकी भाषा को सरलता से समझस लेते हैं। उनके लिखित प्रवचनों को पढ़ने से धर्मीप्रेमियों को अनंद आता है, उनका ज्ञान-वर्धन होता है और उन्हें उत्तम जीवन जीने तथा ध्यान-भजन करने की भी प्रेरणा मिलती है। प्रस्तुत पुस्तक अपने आपमें अनोखी है। धर्मप्रेमी इस पुस्तक को खरीदें और प्रतिदिन नियमित रूप से इसका स्वाध्याय करके अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जाएँ। 

आइये यह पुस्तक के मुख्य-मुख्य पृष्ठों अवलोकन करते हैं- 


महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन, गुरु महाराज जी के प्रवचन, संतमत सत्संग प्रवचन,
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन

महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन 2
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महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन 3
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  3



महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  4
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  4



महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  5
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन 5 


महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  6
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  6


महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  7
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महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  8
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  8



महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  9
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  9



महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  10
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  10



महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  11
महर्षि मेँहीँ  के अमृत वचन  11



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महर्षि मेँहीँ के प्रिय-भजन
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