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LS14 छंद-योजना 17 || kaamineemoha-hansagati-chandraayanachhand chhand kee varnan

महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना /17

     प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मँहीँ पदावली की छंद योजना' पुस्तक के इस भाग में हम लोग जानेंगे कि कामिनीमोहन छंद, हंसगति छंद , विधान और विधाएं, चान्द्रायणछंद का हिन्दी अर्थ छंद का उदाहरण सहित वर्णन  किया गया है ।

इस पोस्ट के पहले बाले भाग में  ' चौपाई, पादाकुलक, अरिल्ल छंद छंदों ' के बारे में बताया गया है उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


छंद-योजना पर चर्चा करते गुरुदेव और लेखक


kaamineemoha hansagati chandraayanachhand chhand kee varnan



१२. कामिनीमोहन :


     इस छंद का दूसरा नाम मदनावतार है । इसके प्रत्येक चरण में २० मात्राएँ होती हैं और १०-१० मात्राओं पर यति । यदि इसके चरण चार पंचकलों से बने हों , तो चरण के भीतर ५ वीं , १० वीं और १५ वीं मात्रा पर भी यति दी जा सकती है । ऐसी स्थिति में छंद की प्रवाहमयता और मिठास विशेष बढ़ जाती है । उदाहरण--

न उद्भिद् स्वरूपी , न उष्पज स्वरूपी । न अंडज स्वरूपी , न पिंडज स्वरूपी ॥ नहीं विश्वरूपी , न विष्णू स्वरूपी । न शंकर स्वरूपी , न ब्रह्मा स्वरूपी ॥ सभी के परे जो , परम तत्त्वरूपी । सोई आत्मा है , सोई आत्मा है ॥ ( पदा ० , ४२ वाँ पद्य ) 

     ऊपर के सभी चरणों में २०-२० मात्राएँ हैं ; १०-१० मात्राओं पर यति और अंतिम चरण को छोड़कर सभी चरण चार पंचकलों से बने हुए हैं ।

     पदावली के २० वें , ३८ वें और ४२ वें पद्य में कामिनीमोहन छंद का व्यवहार हुआ है । 

     किसी - किसी कामिनीमोहन छंद के चरण में चार रगण ( SIS ) होते हैं , तब वह स्रग्विनी , शृंगारिणी , लक्ष्मीधरा और लक्ष्मीधर भी कहलाता है । 


१३. हंसगति :

     इसके प्रत्येक चरण में २० मात्राएँ होती हैं ; ११ - ९ मात्राओं पर यति और चरणान्त में दो गुरु ( 55 ) , दो लघुः ( 11 ) या लघु - गुरु ( 15 ) ! ११ मात्राओंवाले चरणांश के अंत में गुरु - लघु ( 51 ) होते हैं । उदाहरण--

हो दयाल दातार , महा सुखदाई । अघ नाशन सुखदेन , कृपा अधिकाई ॥ जुग जुगान ते अहूँ , पड़े दूखन में । सुधि बुधि गइ सब भूलि , माया भूखन में ॥ ( पदा ० , २८ वाँ पद्य )

     ( ' अहूँ ' में गुरु - लघु नहीं , लघु - गुरु हैं । ) 

सुख पावन मन ठानि , दौड़ि जहँ दुख अगिन प्रबल होइ , जरत तहाँ ही पाऊँ ॥ जाऊँ । ( पदा ० , २८ वाँ पद्य ) 

     ( ' ही ' ह्रस्व की तरह उच्चरित किया जाएगा । ) 

पदावली के २८ वें पद्य में हंसगति के कुछ चरण आये हैं । 


१४. चान्द्रायण छंद :

     इस छंद के प्रत्येक चरण में २१ मात्राएँ होती हैं और ११-१० मात्राओं पर यति । चरण के ११ मात्राओंवाले अंश के अंत में जगण ( 151 ) और चरण के अंत में रगण ( 515 ) होना चाहिए । १० मात्राओंवाला चरणांश एक त्रिकल , एक द्विकल और एक पंचकल से बना होना चाहिए । ११ मात्रिक चरणांश दोहे के दूसरे या चौथे चरण के समान होता है ; उदाहरण--

 करि बाहर पट बंद , अंतर पट खोलहू । या विधि अंतर अंत में सुरत समोवहू ॥ ( पदा ० , १०८ वाँ पद्य )

     ' अंतर ' का उच्चारण ' अंतर ' की तरह या शीघ्रता में करना होगा और ' में ' का भी ह्रस्व की तरह उच्चारण करके १ मात्रा घटानी पड़ेगी । ) 

नयन कँवल तम माँझ से पंथहि धारिये । सुनि धुनि जोति निहारि , के पंथ सिधारिये ॥ ( पदा ० , ५२ वाँ पद्य ) 

     ( यहाँ ' से ' और ' के ' का उच्चारण ह्रस्व की तरह करना चाहिए । ) 

पाँच नौबत बिरतन्त , कहौं सुनि लीजिए । भेदी भक्त विचारि , सुरत रत कीजिए | ( पदा ० , ४५ वाँ पद्य ) 

     ( ' नौबत ' का ' नौ ' ह्रस्व की तरह उच्चारित करने पर १ मात्रा घट जाएगी । ) 

निर्मल चेतन केन्द्र , और ऊपर अहै । परा प्रकृति कर केन्द्र , सोइ अस बुधि कहै ॥ ( पदा ० , ४५ वाँ पद्य ) 

पदावली' की छंद-योजना के लेखक पूज्य बाबा श्री लालदास जी महाराज
लेखक बाबा लालदास

      पदावली के ४५ वें , ४६ वें , ५१ वें , ५२ वें और १०८ वें पद्य में चान्द्रायण छंद के चरण हैं । संतों ने चान्द्रायण छंद में आबद्ध पद्य के ऊपर ' मंगल ' शीर्षक दिया है । ' मंगल ' का अर्थ है - कल्याण , शुभ या विवाह । सम्भव है , ' मंगल ' किसी शुभ अवसर पर गाया जाता हो । 

     ' अरिल ' शीर्षक ४४ वें पद्य में भी चान्द्रायण छंद का प्रयोग हुआ है ; देखें--

जा सम्मुख या सूर्य , अमित अंधार है । ऐसो सूर्य महान , चन्द हद पार है । होत नाद अति घोर , शोर को को कहै । अरे हाँ रे ‘ में हीँ ' , महा नगाड़ा बजै , घनहु गरजत रहै ॥ 

     अरिल पद्य के इस अनुच्छेद में चान्द्रायण छंद के चार चरण आए हैं ; चौथे चरण के आरंभ में अतिरिक्त संगीतात्मकता लाने के लिए ' अरे हाँ रे मँहीँ ' शब्दावली जोड़ दी गई है । 

     ४४ वें पद्य में रोला छंद का भी प्रयोग हुआ है ; देखें--

संतमते की बात कहूँ साधक हित लागी । कहूँ अरिल पद जोड़ि , जानि करिहैं बड़ भागी ॥ अरे हाँ रे ' मँहीँ ' , कहुँ जो चाहूँ कहन , संतपद सिर निज टेकी ॥ 

     इस अरिल पद्य से यदि ' अरे हाँ रे मँहीँ शब्दावली हटा दी जाए , तो रोला छंद के चार शुद्ध चरण प्राप्त हो जाएँगे ।

     ४४ वें पद्य के ऊपर ' अरिल ' शीर्षक देखकर यह अनुमान नहीं लगा लेना चाहिए कि इस पद्य में उस अरिल्ल छंद का प्रयोग किया गया है , जिसका प्रत्येक चरण चार चौकलों से बना होता है और चरण के अंत में यगण ( ISS ) या भगण ( 51 ) होता है । 

     ४४ वें पद्य के किसी - किसी अनुच्छेद में रोला छंद का और किसी - किसी अनुच्छेद में चान्द्रायण छंद का प्रयोग किया गया है । संत पलटू साहब ने अपने ' अरिल ' पदों में चान्द्रायण छंद का और संत तुलसी साहब ने रोला छंद का प्रयोग किया है , यथा

जो तुझको है चाह , सजन को देखना । करम भरम दे छोड़ि , जगत का पेखना ॥ बाँध सुरत की डोरि , शब्द में मिलेगा । अरे हाँ रे पलटू , ज्ञान ध्यान के पार , ठिकाना मिलेगा | ( संत पलटू साहब ) 

निरसब्दी बिन सब्द लिखन पढ़ने में नाहीं । लिखन पढ़ा में भया , सब्द में आया भाई ॥ अछर जहाँ लगि सब्द , बोल में सभी कहाया । अरे हाँ रे तुलसी , निःअच्छर है न्यार , संत ने सैन बुझाया । " ( संत तुलसी साहब ) 

     संतों ने अपने उस पद्य को अरिल या अरियल कहा है , जिसके चौथे चरण में ' अरे हाँ ' या ' अरे हाँ रे ' के साथ कवि का नाम जुड़ा हुआ रहता है । ' अरिल ' का शाब्दिक अर्थ है - ' अरे ' शब्द से युक्त । ∆


इस पोस्ट के बाद 'उल्लास, कुंडल, राधिका आदि छंद ' का बर्णन हुआ है,  उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में  कामिनीमोहन छंद, हंसगति छंद , विधान और विधाएं, चान्द्रायणछंद का हिन्दी अर्थ इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.



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