महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना /16
चौपाई, पादाकुलक, पदपादाकुलक और अरिल्ल छंदों का परिचय
८. चौपाई :
चौपाई में , जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता में १६-१६ मात्राएँ होती हैं । चरण के अंत में यति होती है । पहले दूसरे और तीसरे - चौथे चरणों में तुक होती है । चरण के अंत में जगण ( 151 ) या तगण ( SSI ) नहीं होने चाहिए । चरण के अंत में दो गुरु ( SS ) रहने से अधिक प्रवाह आ जाता है । इसमें चार चतुष्कलों का होना आवश्यक नहीं है ; परंतु लय की रुचिरता के लिए समकल के बाद समकल और विषमकल के बाद विषमकल अवश्य आना चाहिए । चौपाई की दो पंक्तियों को अर्थाली कहते हैं । उदाहरण--
गुरू गुरू मैं करौं पुकारा । ( ३ + ३ + ५ + ५ )
सतगुरु साहब सुनो हमारा ॥ ( ४ + ४ + ३ + ५ )
अघ औगुण दुख मेटनहारा । ( २ + ४ + २ + ८ )
सतगुरु साहब परम उदारा ॥ ( ४ + ४ + ३ + ५ )
( पदा ० , १८ वाँ पद्य )
पदावली का १० वाँ , १८ वाँ , ४७ वाँ , ९९वाँ , १०० वाँ , ११४ वाँ , १४१ वाँ , १४२ वाँ और १४४ वाँ पद्य चौपाई छंद में है । ४० वें और १४३ वें पद्य में भी चौपाई के कुछ चरण हैं ।
चौपाई हिन्दी का बड़ा प्रसिद्ध छंद है । मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत और गो ० तुलसीदासजी ने ' रामचरितमानस ' अधिकांशतः इसी छंद में लिखा है । मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी पुस्तक ' पद्मावत ' में और गो ० तुलसीदासजी ने ' रामचरितमानस ' तथा ' हनुमान चालीसा ' में चौपाई के दो चरणों ( अर्धाली ) को ही चौपाई माना है । ' महर्षि मँहीँ-पदावली ' में भी दो चरणों को ही चौपाई मानकर उसमें १-२-३ .... चौपाई - संख्या दी गयी है ; देखें ४७ वाँ , ९९ वाँ , १०० वाँ , ११४ वाँ और १४२ वाँ पद्य ।
चौपाई के किसी - किसी चरण में ८ मात्राओं पर और किसी - किसी में ७ वीं मात्रा पर यति दीख पड़ती है ; उदाहरण--
( इस अर्धाली के प्रथम चरण में ८ वीं मात्रा पर और दूसरे चरण की ७ वीं मात्रा पर यति है । )
लेखक बाबा लालदास |
९ . पादाकुलक :
इसके प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं , जो चार चौकलों से बनी होती हैं । उदाहरण--
अघ औगुण दुख मेटनहारा, सतगुरु साहब परम उदारा ॥
( पदा ० , १८ वाँ पद्य )
सो ध्वनि निर्गुण निर्मल चेतन । सुरत गहो तजि चलो अचेतन ॥ यहु ध्वनि लीन अध्वनि में होई । निर्गुण पद के आगे सोई ॥
( पदा ० , ४७ वाँ पद्य)
१०. अरिल्ल :
ये सब मन पर गुण इनके ही । पड़े महा दुख संशय जेही ॥ fts , परत्रिय झूठ नशा अरु हिंसा । चोरी लेकर पाँच गरिसा । नित सतसंगति करो बनाई । अंतर बाहर द्वै विधि भाई ॥ धर्म कथा बाहर सतसंगा । अंतर सतसँग ध्यान अभंगा । करै न कछु कछु होय न ता बिन । सबकी सत्ता कहै अनुभव जिन ॥ ( पदा ० , १४२ वाँ पद्य )
( ' कहै ' के ' है ' का उच्चारण ह्रस्व की तरह करके एक मात्रा घटायी जाएगी । )
तन मन पीर गुरू संघारत । तम अज्ञान गुरू सब टारत ।। जम दुख नारौं सारैं कारज जय जय जय प्रभु सत्य अचारज ॥ ( पदा ० , ११४ वाँ पद्य )
तन अघ मन अघ ओघ नसावन । संशय शोक सकल दुख दावन । न ( पदा ० , ९९वाँ पद्य )
११ पदपादाकुलक :
इसके प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं , जो चार चौकलों से बनी होती हैं । चरण के अंत में जगण ( 151 ) नहीं आना चाहिए ; चरण के आरंभ में द्विकल का होना आवश्यक है । उदाहरण--
'अचरज दीप शिखा की जोती । जगमग जगमग थाल में होती ॥ (' में ' का ह्रस्ववत् उच्चारण किया जाएगा । )
घट घट सो प्रभु प्रेम सरूपा । सबको प्रीतम सबको दीपा ॥ ( पदा ० , १४२ वाँ पद्य )
असि आरति ' में ही ' संतन की । करि करि हरिय दुसह दुख तन की ॥ ( पदा ० , १४१ वाँ पद्य )
गुरु से कपट कछु नहिं राखो । उनके प्रेम अमिय को चाखो ॥ ( पदा ० , ४७ वाँ पद्य ) ∆
इस पोस्ट के बाद 'काममोहनी, हंसगति, चान्द्रायण छंद ' का बर्णन हुआ है, उसे पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं.
प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में चौपाई छंद में क्या है? चौपाई छंद का उदाहरण क्या है? चौपाई में कितनी मात्राएं होती हैं उदाहरण सहित? चौपाई छंद कैसे लिखें? पादाकुलक में कुल कितनी मात्रा होती है? अरिल्ल में कितनी मात्राएँ होती हैं? चौपाई छंद के प्रत्येक चरण में कितनी मात्राएँ होती हैं? इत्यादि बातों को जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.
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