LS14 छंद-योजना 18 || Dikpal Chhand, Ullas, Kundal, Radhika, Upman, Heer, Roopmala and Dikpal Chhand Introduction
महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना /16
दिक्पाल छंद, उल्लास, कुण्डल, राधिका, उपमान, हीर, रूपमाला और दिक्पाल छंद परिचय
१५. उल्लास :
इस छंद के प्रत्येक चरण में २२ मात्राएँ होती हैं ; ११-११ पर यति और अंत में गुरु - लघु ( SI ) नहीं आने चाहिए । चरण के आरंभिक ११ मात्राओंवाले अंश के अंत में गुरु - लघु होते हैं । दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि चरण का आरंभिक अंश दोहे का दूसरा या चौथा चरण होता है । इस छंद का नामकरण भागलपुर के एक सुप्रसिद्ध छंदःशास्त्री डॉ ० गौरीशंकर मिश्र ' द्विजेन्द्र ' ने किया है । उदाहरण-
उर माँहीं प्रभु गुप्त , अँधेरा छाइ रहै । गुरु गुर करत प्रकाश , प्रभु को प्रत्यक्ष लहै । ( पदा ० , ९ ७ वाँ पद्य )
सतगुरु को धरि ध्यान , सहज स्रुति शुद्ध करी । सनमुख बिन्दु निहारि , सरस्वती न्हाय चली ॥ ( पदा ० , ६५ वाँ पद्य )
पदावली के ६५ वें और ९७ वें पद्म में उल्लास छंद के चरण हैं ।
१६. कुण्डल छंद :
इसके प्रत्येक चरण में २२ मात्राएँ होती हैं ; १२ - १० पर यति और अंत में दो गुरु ( 55 ) । उदाहरण--
' भजु मन सतगुरु दयाल , काटें यम जाला । '( पदा ० , ८४ वाँ पद्य )
' भजु मन सतगुरु दयाल , गुरु दयाल प्यारे । ' पदावली के ( पदा ० , ८5 वाँ पद्य )
पदावली के ८४ वें और ८५ वें पद्य का प्रथम चरण कुण्डल छंद का है ।
१७. राधिका छंद :
इसके प्रत्येक चरण में २२ मात्राएँ होती हैं ; १३ - ९ पर यति और अंत में दो गुरु ( 55 ) , दो लघु ( II ) या लघु - गुरु ( 15 ) । १३ मात्राओंवाले चरणांश के अंत में गुरु - लघु ( 51 ) आते हैं । उदाहरण--
लेखक लाल बाबा |
तम कूप ते खैचि के मोहि , प्रकाश में लाओ । पुनि शब्द - बाँह निज देइ , पास बैठाओ || यहि विधि अपनाइ के मोहि , छोड़ाइय यम से । होइ आरत करूँ पुकार , नाथ ! मैं तुमसे ॥ ( पदा ० , २८ वाँ पद्य )
( ते , के , में , छो , होइन रेखांकित अक्षरों का उच्चारण ह्रस्व की तरह करने पर चरण की मात्राएँ पूरी होंगी । )
पदावली के २८ वें पद्य में राधिका छंद के कुछ चरण आये हैं ।
१८. उपमान :
भक्ति दान गुरु दीजिए , देवन के देवा । चरण कमल बिसरौं नहीं , करिहौं पद सेवा ॥ ( धनी धर्मदासजी )
प्रेम भक्ति गुरु दीजिये , विनवौं कर जोड़ी । पल पल छोह न छोड़िये , सुनिये गुरु मोरी ॥ ( पदा ० , ९वाँ पद्य )
काम लहरि तें माति के , करुँ आनहिं आना । अंध होइ भोगन फँसूँ , सत पंथ भुलाना ।। ( पदा ० , २६ वाँ पद्य )
पदावली के ९वें , २६ वें और ५४ वें पद्य में उपमान छंद का प्रयोग हुआ है । इस छंद के चरण के अंत में ' हो ' जोड़कर गाने पर विशेष संगीतात्मकता आ जाती है । ७१ वें पद्य के चरणों के अंत से ' हो ' हटा दिया जाए , तो वे चरण उपमान के हो जाएँगे ।
१९ . हीर छंद :
इसके प्रत्येक चरण में २३ मात्राएँ होती ६-६-११ पर यति और अंत में रगण ( 15 ) होता है । छठी और बारहवीं मात्रा पर तुक भी होती है । चरण का आरंभ गुरु ( 5 ) से होता है । उदाहरण--
अति कराल , काल व्याल , विषम विष निवारणं । दीनबंधु , प्रेमसिंधु , खड्ग ज्ञान धारणं ॥ ( पदा ० , ८३ वाँ पद्य )
( पहला चरण गुरु से आरंभ नहीं हुआ है । )
पदावली के ८३ वें और ८६ वें पद्य में हीर छंद के चरण हैं ।
८६ वें पद्य के प्रथम चरण में २३ मात्राएँ हैं ; १२-११ पर यति और अंत में रगण ( SIS ) । यह हीर छंद का चरण है । शेष चरणों में ४६-४६ मात्राएँ हैं ; १२-११-१२-११ पर यति और अंत में रगण ( SIS ) । ये मात्रिक दंडक के चरण हैं । ऐसे ही छंद के चरण ९८ वें पद्म में भी हैं ।
२०. रूपमाला :
रूपमाला ( अन्य नाम मदन ) के प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं ; १४-१० या १२-१२ पर यति और अंत में गुरु - लघु ( 51 ) , लघु - गुरु ( 15 ) या तीन लघु ( mm ) ; उदाहरण-
गुरु धन्य हैं , गुरु धन्य हैं , गुरु धन्य दाता दयाल । ज्ञान ध्यान बुझाय दें , स्रुति शब्द को सब ख्याल ॥ ( पदा ० , ९ ५ वाँ पद्म )
उदित तेजस विन्दु में , पिलि चलो चाल विहंग । तहाँ अनहद नाद धरि , चढ़ि चलो मीनी ढंग ॥ ( पदा ० , ६० वाँ पद्य )
( इस रूपमाला छंद के चरण में १२-१२ पर यति है और अंत में गुरु - लघु । )
गुरु हरि चरण में प्रीति हो , युग काल क्या करे । कछुवी की दृष्टि दृष्टि हो , जंजाल क्या करे ॥ ( पदा ० , १३६ वाँ पद्य )
( रूपमाला के इन चरणों में १४-१० पर यति और अंत में लघु - गुरु हैं । )
पदावली के ६० वें , ६७ वें , ९ ५ वें , ११५ वें , ११६ वें और १३६ वें पद्य में रूपमाला के चरण हैं ।
जिस रूपमाला के चरण में १४-१० पर यति हो और अंत में गुरु - लघु ( 51 ) हो , यदि उसके अंत में ' रे ' आदि जैसे दो मात्राओं का अक्षर जोड़ दिया जाए , तो वह चरण गीतिका का हो जाएगा ।
२१. दिक्पाल छंद :
इस छंद के प्रत्येक चरण में २४ मात्राएँ होती हैं ; १२-१२ पर यति और अंत में दो गुरु , दो लघु या लघु - गुरु हो सकते हैं । पाँचवीं और सत्रहवीं मात्रा पर लघु पड़ने पर लय में विशेष रुचिरता आ जाती है । उदाहरण गुरुदेव दानि तारन , सब भव व्यथा विदारन । मम सकल काज सारन , अपना दरस दिखा दो ॥ ( ऊपर के चरणों में दिक्पाल छन्द के पूरे लक्षण उतर आये हैं । ) ( पदा ० , १ ९वाँ पद्य ) रस शब्द गंध परसन , करते जो चित्त कर्षन । करि प्रेम धार बर्षन , इनसे मुझे छुटा दो ॥ ( पदा ० , २५ वाँ पद्य ) क्रमशः
इस पोस्ट के बाद 'काममोहनी, हंसगति, चान्द्रायण छंद ' का बर्णन हुआ है, उसे पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं.
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