महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना / 13
छंद के प्रकार- मात्रिक, वर्णिक, सम मात्रिक, विषम मात्रिक संयुक्त छन्द इत्यादि
छन्द के प्रकार :
छन्द मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं मात्रिक छंद और वर्णिक छंद । जिन छंदों के चरणों की रचना मात्राओं का विचार रखते हुए की जाती है , वे मात्रिक छंद कहलाते हैं । मात्रिक छन्द के चरण में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है । इसके चरण में वर्णों की संख्या और लघु - गुरु का क्रम नियत नहीं होता । हिन्दी में अधिकांशतः मात्रिक छंद ही लिखे गये हैं ।
चरणों की रचना की दृष्टि से मात्रिक छन्द के तीन प्रकार हैं - सम मात्रिक छन्द , अर्धसम मात्रिक छन्द और विषम मात्रिक छन्द ।
सम मात्रिक छंद के चारो चरणों में मात्रा आदि से संबंधित लक्षण एक जैसे होते हैं । चौपाई , रोला , दिक्पाल , मुक्तामणि , गीतिका , हरिगीतिका , गीता , सरसी , विधाता , सार , ताटंक , मरहंठा , वीर आदि सम मात्रिक छन्द हैं ।
जिस मात्रिक छन्द के पहले तीसरे और दूसरे - चौथे चरणों के लक्षण एक जैसे होते हैं , वह अर्धसम मात्रिक छन्द कहलाता है ।जैसे - दोहा , सोरठा , बरवै आदि ।
जो मात्रिक छन्द न सम हो , न अर्धसम , वह विषम मात्रिक छन्द कहलाता है ।
जिस एक ही मात्रिक छन्द के चार से अधिक चरण हों , वे भी विषम मात्रिक छन्द ही कहलाते हैं ; जैसे संतों के पद जिनमें एक ही मात्रिक छन्द के चार से भी अधिक चरण होते हैं ।
कोई - कोई छन्द दो भिन्न छन्दों के अनुच्छेदों को जोड़कर बनाया गया होता है । इसे संयुक्त छन्द कहते हैं ; जैसे-- कुंडलिया, दोहा और रोला के संयोग से बनती है । इसी तरह छप्पय रोला और उल्लाला के योग से बनता है । ये संयुक्त मात्रिक छन्द भी विषम मात्रिक छन्द ही हैं ।
सम मात्रिक छन्द दो प्रकार के होते हैं - साधारण सम मात्रिक छन्द और दंडक सम मात्रिक छन्द ।
जिस सम मात्रिक छन्द के प्रत्येक चरण में ३२ या ३२ से कम मात्राएँ होती हैं , वह साधारण सम मात्रिक छन्द कहलाता है । दंडक सम मात्रिक छन्द के प्रत्येक चरण में ३२ से अधिक मात्राएँ होती हैं ।
जिन छंदों में वर्णों की संख्या और लघु - गुरु के निश्चित क्रम के अनुसार चरणों की रचना की जाती है , वे वर्णिक छन्द कहलाते हैं । इन्द्रवज्रा , उपेन्द्रवज्रा , भुजंगी , शालिनी , वंशस्थ , भुजंगप्रयात , द्रुतविलंबित , तोटक , स्रग्विणी , वसंततिलका , मालिनी , मंदाक्रांता , शिखरिणी आदि वर्णिक छन्द हैं । संस्कृत के प्रायः छंद वर्णिक ही हैं ।
संत लालदास |
मात्रिक छंद की तरह वर्णिक छन्द के भी सम वर्णिक छन्द , अर्धसम वर्णिक छन्द और विषम वर्णिक छन्द - ये तीन भेद हैं । सम वर्णिक छन्द के चारो चरणों में वर्णों की संख्या समान होती है । अर्धसम वर्णिक छन्द के प्रथम तृतीय और द्वितीय - चतुर्थ चरणों में वर्णों की संख्या समान होती है । जिस वर्णिक छन्द में न सम वर्णिक छन्द के लक्षण पाए जाएँ , न अर्धसम वर्णिक छन्द के , वह विषम वर्णिक छन्द कहलाता है ।
सम वर्णिक छन्द के फिर दो विभाग किये गये हैं- साधारण सम वर्णिक छन्द और दंडक सम वर्णिक छन्द । जिस सम वर्णिक छन्द के प्रत्येक चरण में २६ या २६ से कम वर्ण होते हैं , वह साधारण सम वर्णिक छन्द कहलाता है और जिस सम वर्णिक छन्द के प्रत्येक चरण में २६ से अधिक वर्ण होते हैं , वह दंडक सम वर्णिक छन्द कहा जाता है ।
जिन साधारण सम वर्णिक छन्दों के प्रत्येक चरण में २२ से लेकर २६ तक वर्ण होते हैं , वे सवैया कहलाते हैं ।
दंडक सम वर्णिक छन्द के भी दो उपभेद हैं - साधारण दंडक और मुक्तक दंडक । साधारण दंडक के चारो चरणों में वर्ण - संख्या और वर्णों का क्रम भी निश्चित होता है । इसलिए इसके चारो चरणों की मात्राएँ भी समान होती हैं ।
मुक्तक दंडक के चारो चरणों में वर्णों की संख्या समान होती है ; परंतु उनमें वर्णों के क्रम का नियम नहीं पाया जाता । मुक्तक दंडक हिन्दी में प्रायः ' कवित्त ' कहा जाता है । ∆
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प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में छंद क्या है छंद के प्रकार? छंद कितने प्रकार के होते हैं ? छंद में कितनी कितनी मात्राएं होती हैं? छंद का उदाहरण क्या है? इत्यादि बातों को जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.
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