महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना / 12
छंद शास्त्र के वर्ण और गण का वर्णन || गण का सूत्र और व्याख्या--
वर्ण :
छन्दःशास्त्र में प्रत्येक स्वर चाहे वह चन्द्रबिंदु , अनुस्वार या विसर्ग से युक्त हो , एक वर्ण या एक अक्षर कहलाता है । इसी तरह जो व्यंजन किसी स्वर के साथ होता है , वह भी एक वर्ण माना जाता है । कोई भी स्वर - रहित व्यंजन छंदःशास्त्र में वर्ण नहीं कहा जाता । ' कमल ' में तीन अक्षर हैं और ' कमला ' में भी। मात्रा की दृष्टि से वर्ण दो प्रकार के होते हैं - लघु और गुरु । लघु वर्ण की एक मात्रा होती है और गुरु वर्ण की दो । कुछ शब्दों में वर्णों और मात्राओं की गिनती के उदाहरण देखिये--
साधना ३ वर्ण , ५ मात्राएँ । मंगल ३ वर्ण , ४ मात्राएँ । काल २ वर्ण , ३ मात्राएँ । दिवाकर ४ वर्ण , ५ मात्राएँ । सतगुरु ४ वर्ण, ४ मात्राएँ । हंस २ वर्ण , २ वर्ण , ३ मात्राएँ । निःकामी ३ वर्ण , ६ मात्राएँ । हँसी २ वर्ण , ३ मात्राएँ । स्वास्थ्य २ वर्ण , ३ मात्राएँ । ईश्वर ३ वर्ण ४ मात्राएँ । श्याम २ वर्ण , ३ मात्राएँ । क्या १ वर्ण , २ मात्राएँ । कल २ वर्ण , २ मात्राएँ । प्रसन्न ३ वर्ण , ४ मात्राएँ । ∆
मात्रिक गण :
किसी - किसी मात्रिक छंद के लक्षण बताने में मात्रिक गणों की मदद ली जाती है । कुछ मात्राओं के स्वतंत्र समूह या वर्ग को मात्रिक गण कहते हैं । ये मात्रिक गण छह बताए जाते हैं , जैसे- द्विकल ( दी मात्राओं का समूह ) , त्रिकल , चतुष्कल ( चौकल ) , पंचकल और षट्कल जिस मात्रिक गण में दो से पूरा का पूरा भाग लग जाए , वह समकल कहलाता है , जैसे द्विकल , चतुष्कल , षट्कल आदि । जो मात्रिक गण दो से पूर्णतः विभाजित न हो , वह विषम कल कहलाता है , जैसे - त्रिकल , पंचकल आदि । ' द्विकल - त्रिकल ' आदि शब्दों में ' कल ' का अर्थ है - कला , मात्रा । मात्रिक गणों में से प्रत्येक कई तरह से बन सकता है ; देखें--
द्विकल- S , II .
त्रिकल- III , 15 , 51 .
चतुष्कल- 55 , 511 , 15 , IIII , ISI .
पंचकल- SSI , SIS , Iऽऽ , IIIS , II51 , 1511 , 511 , 11111 .
षट्कल- SSS, 11SS, S11S, SSI1, 1111, 11S11, S111, 1SS1, S1SI, 1S1S, 111111, III51, ISIII .
लेखक बाबा लालदास |
शब्दों और वाक्यों के उदाहरण द्वारा मात्रिक गणों को और अच्छी तरह समझाया जा सकता है ; जैसे-- तारा ( 55 ) , नवधा ( II5 ) , साधन ( 511 ) , सुजान ( 151 ) और तरुवर ( 1111 ) में से प्रत्येक में चार मात्राओं का एक स्वतंत्र वर्ग है ; क्योंकि अंतिम वर्ण पर आकर चार मात्राएँ सर्वथा पूरी हो जाती हैं । ' साधना ' में पंचकल है , चतुष्कल नहीं ; क्योंकि अंतिम वर्ण ' ना ' पर आकर ५ मात्राएँ पूरी होती हैं , चार नहीं हम ऐसा अवश्य कह सकते हैं कि ' साधना ' में एक त्रिकल और एक द्विकल है । 'वह कल घर पर ही था । ' यह वाक्य ३ चौकलों से बना हुआ है । नीचे का चरण ८ चौकलों से निर्मित है ; देखें-- दादू सुंदर सूर श्वपच रवि , जगजीवन पलटू भयहारी ।
निम्नलिखित चरणों में से प्रत्येक ४-४ पंचकलों से बना हुआ है
न उद्भिद स्वरूपी , न उष्पज स्वरूपी । न अंडज स्वरूपी , न पिंडज स्वरूपी ॥ नहीं विश्वरूपी , न विष्णू स्वरूपी । न शंकर स्वरूपी , न ब्रह्मा स्वरूपी ॥
' लो धर यल करो दिल से । ' यह चरण ३ चौकलों और एक द्विकल से बना हुआ है ।
चौपाई का कोई - कोई चरण एक सप्तकल और एक नवकल से बना होता है , तो कोई - कोई दो अष्टकलों से । निम्नलिखित चौपाई का प्रथम चरण एक सप्तकल और एक नवकल से बना हुआ है , जबकि दूसरा चरण दो अष्टकलों से--
सुनिये सकल जगत के वासी । यह जग नश्वर सकल विनाशी ॥
पादाकुलक ( सममात्रिक छंद ) का प्रत्येक चरण चार चौकलों से बना होता है ; उदाहरण-
गुरु गुरु मैं करौं पुकारा । सतगुरु साहब सुनो हमारा ॥∆
एक विशेष क्रम से सजे हुए तीन वर्णों के समूह को वर्णिक गण कहते हैं । वर्णिक गण आठ प्रकार के होते हैं । आठो के नाम और उनका स्वरूप नीचे बताया जाता है--
१. यगण-- 155 , जैसे -- सहारा ।
२. मगण-- 555 , जैसे-- सामंती ।
३. तगण-- 551 , जैसे-- सामान ।
४. रगण-- S15 , जैसे-- भैरवी ।
५. जगण-- 151 , जैसे-- नरेश ।
६. भगण-- SII, जैसे-- साधन ।
७. नगण -- III , जैसे-- जलद ।
८. सगण-- 115 , जैसे-- नवधा ।
आठों वर्णिक गणों के नाम और उनका स्वरूप याद रखने में निम्नलिखित सूत्र बड़ा मददगार साबित होता है
यमाताराजभानसलगाः ।
इस सूत्र में दस वर्ण हैं । य वर्ण यगण का , मा वर्ण मगण का , ता तगण का , रा रगण का , ज जगण का भा भगण का , न नगण का , स सगण का , ल लघु वर्ण का और गाः ( ग ) गुरु वर्ण का संकेतक है । यगण का स्वरूप जानना हो , तो य के साथ आगे के दो वर्णों - मा और ता को जोड़कर एक शब्द बनाना चाहिए । वह शब्द बनेगा - यमाता । यही यमाता ( 155 ) यगण का स्वरूप बतलाता है । इसी तरह मगण का स्वरूप जानने के लिए मा के आगे के दो अक्षरों - ना और रा को जोड़कर ' मातारा ' शब्द बनाना चाहिए । ' मातारा ' शब्द बतलाता है कि मगण में तीन गुरु वर्ण ( Sss ) होते हैं । ऐसे ही अन्य गण का स्वरूप सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है ।
वर्णिक गण विशेषकर गणबद्ध वर्णिक छंदों और कभी - कभी मात्रिक छंदों के भी लक्षण बताने के काम आते हैं , जैसे वर्णिक छंद भुजंगप्रयात का लक्षण बताते हुए कहा जाएगा कि भुजंगप्रयात चार यगणों ( ISS , IS5 , 155 , 155 ) के योग से बनता है । मात्रिक छंद ताटंक का लक्षण बताते हुए कह सकेंगे कि इसके प्रत्येक चरण में १६-१४ पर यति के साथ ३० मात्राएँ होती हैं और अंत में मगण ( ऽऽऽ ) ।
वर्णिक गण में अक्षरों की संख्या , अक्षरों का क्रम और मात्राएँ निश्चित होती हैं ; मात्रिक गण में केवल मात्राएँ निश्चित होती हैं ।
छंदःशास्त्र में झ , ह , र , भ और दग्धाक्षर ( जले हुए या रुखड़े लगनेवाले अक्षर ) कहे गये हैं और छंद के चरण के आरंभ में इनका प्रयोग अशुभ माना गया है ।
संख्या और क्रम :
छंदःशास्त्र में मात्राओं और अक्षरों की गिनती को संख्या और लघु - गुरु वर्णों के स्थिति - क्रम को क्रम कहते हैं । ∆
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प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में मात्राओं के प्रकार? मात्राओं की गणना के नियम, मात्राओं की गणना कैसे की जाती है? शब्द में कितनी मात्राएं हैं? त्र में कितनी मात्रा होती है? कविता में कितनी मात्राएं होती है?मात्राभार गणना विस्तृत कविता, मात्रा के आधार पर स्वर, स्वर की मात्रा, अमृत शब्द में मात्रा भार, स्वर की मात्रा के शब्द, इत्यादि बातों को जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.
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