वेद-दर्शन-योग / ऋग्वेद संहिता / मंत्र 1
प्रभु प्रेमियों ! वेद-दर्शन-योग-यह सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज की अनमोल कृति है। इसमें चारो वेदों से चुने हुए एक सौ मंत्रों पर टिप्पणीयां लिखकर संतवाणी से उनका मिलान किया गया है। आबाल ब्रह्मचारी बाबा ने प्रव्रजित होकर लगातार ५२ वर्षों से सन्त साधना के माध्यम से जिस सत्य की अपरोक्षानुभूति की है , उसी का प्रतिपादन प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है .
ऋग्वेद संहिता
:: मोक्ष : ::
( १ ) उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय । अथा वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम ॥१५ ॥ अ ०२ व ०१५ । १५ अ ० ६ सू ० २४ , अष्टक १ मंडल १ खं ० १ पृष्ठ ११२
भाष्य – हे परमेश्वर ! तू उत्तम कोटि के सात्त्विक बन्धन को उत्तम भोगों द्वारा शिथिल करता है और निकृष्ट , तामस बन्धन को नीचे की जीवयोनियों में भेजकर शिथिल करता है । और मध्यम श्रेणी के पाश को विविध योनियों के भोग से शिथिल करता है । उन सब भोगों के अनन्तर , हे शरण में लेनेहारे एवं सूर्य के समान प्रकाशक ! हम तेरे दिखाये , कर्त्तव्य कर्म में चलकर अखण्ड सुख , मोक्ष को प्राप्त करने के लिये निष्पाप , स्वच्छ हो जाते ॥
टिप्पणीकार |
टिप्पणी – यदि सदा की मुक्ति नहीं हो तो ' अखण्ड सुख ' नहीं प्राप्त हो सकता है ; अतएव वेद को सदा की मुक्ति मान्य है , जैसे- कबीर साहब और गुरु नानक साहब आदि सन्तों को यह मान्य है , यथा -
''गुरु मिलि ताके खुले कपाट । बहुरि न आवे योनी बाट ॥ गड़ा निस्सान तहँ सुन्न के बीच में , उलटि के सुरत फिर नाहिं आवै । दूध को मत्थ करि घिर्त न्यारा किया , बहुरि फिर तत्त में ना समावै ॥ माड़ि मत्थान तहँ पाँच उलटा किया , नाम नौनीति ले सुरत फेरी । कहै कबीर यों संत निर्भय हुआ , जन्म औ मरन की मिटी फेरी ॥ ' ( कबीर साहब )
जल तरंग जिउ जलहि समाइआ , तिउ जोती संग जोति मिलाइआ । कह नानक भ्रम कटे किवाड़ा , बहुरिन होइऔ जउला जीउ ॥ ( गुरु नानक साहब )
तजि योग पावक देह हरिपद लीन भइ जहँ नहि फिरै । ( गो ० तुलसीदासजी )
कोटि ज्ञानी ज्ञान गावहिं , शब्द बिन नहिं बाँचहीं । शब्द सजीवन मूल ऐनक , अजपा दरस देखावहीं ॥ सत्तशब्द सन्तोष धरि धरि , प्रेम मंगल गावहीं । मिलहिं सतगुरु शब्द पावहिं , फेरि न भवजल आवहीं ॥ ( दरिया साहब , बिहारी ; ग्रन्थ दरिया सागर से )
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