Ad

Ad2

MS03 वेद-दर्शन-योग 1 || ऋग्वेद, कबीर, नानक, तुलसी और दरिया साहब की वाणी में मोक्ष का वर्णन

वेद-दर्शन-योग / ऋग्वेद संहिता / मंत्र 1

     प्रभु प्रेमियों  ! वेद-दर्शन-योग-यह सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज की अनमोल कृति है। इसमें चारो वेदों से चुने हुए एक सौ मंत्रों पर टिप्पणीयां लिखकर संतवाणी से उनका मिलान किया गया है। आबाल ब्रह्मचारी बाबा ने प्रव्रजित होकर लगातार ५२ वर्षों से सन्त साधना के माध्यम से जिस सत्य की अपरोक्षानुभूति की है , उसी का प्रतिपादन प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है 

     ऋग्वेद के निम्नलिखित मंत्र के द्वारा और संतों की वाणीयों के द्वारा इस पोस्ट में बताया गया है कि सभी संत-महात्मा और वेदों में परम मोक्ष प्राप्त करने का उपदेश है।

संतमत और वेदमत एक है
संतमत और वेदमत


ऋग्वेद संहिता 

:: मोक्ष : :: 

     ( १ ) उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय । अथा वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम ॥१५ ॥ अ ०२ व ०१५ । १५ अ ० ६ सू ० २४ , अष्टक १ मंडल १ खं ० १ पृष्ठ ११२

     भाष्य – हे परमेश्वर ! तू उत्तम कोटि के सात्त्विक बन्धन को उत्तम भोगों द्वारा शिथिल करता है और निकृष्ट , तामस बन्धन को नीचे की जीवयोनियों में भेजकर शिथिल करता है । और मध्यम श्रेणी के पाश को विविध योनियों के भोग से शिथिल करता है । उन सब भोगों के अनन्तर , हे शरण में लेनेहारे एवं सूर्य के समान प्रकाशक ! हम तेरे दिखाये , कर्त्तव्य कर्म में चलकर अखण्ड सुख , मोक्ष को प्राप्त करने के लिये निष्पाप , स्वच्छ हो जाते ॥

टिप्पणीकार सद्गुरु महर्षि मेंहीं
टिप्पणीकार 

     टिप्पणी – यदि सदा की मुक्ति नहीं हो तो ' अखण्ड सुख ' नहीं प्राप्त हो सकता है ; अतएव वेद को सदा की मुक्ति मान्य है , जैसे- कबीर साहब और गुरु नानक साहब आदि सन्तों को यह मान्य है , यथा -

''गुरु मिलि ताके खुले कपाट । बहुरि न आवे योनी बाट ॥ गड़ा निस्सान तहँ सुन्न के बीच में , उलटि के सुरत फिर नाहिं आवै । दूध को मत्थ करि घिर्त न्यारा किया , बहुरि फिर तत्त में ना समावै ॥ माड़ि मत्थान तहँ पाँच उलटा किया , नाम नौनीति ले सुरत फेरी । कहै कबीर यों संत निर्भय हुआ , जन्म औ मरन की मिटी फेरी ॥ ' ( कबीर साहब )

जल तरंग जिउ जलहि समाइआ , तिउ जोती संग जोति मिलाइआ । कह नानक भ्रम कटे किवाड़ा , बहुरिन होइऔ जउला जीउ ॥ ( गुरु नानक साहब )

तजि योग पावक देह हरिपद लीन भइ जहँ   नहि फिरै । ( गो ० तुलसीदासजी

कोटि ज्ञानी ज्ञान गावहिं , शब्द बिन नहिं बाँचहीं । शब्द सजीवन मूल ऐनक , अजपा दरस देखावहीं ॥ सत्तशब्द सन्तोष धरि धरि , प्रेम मंगल गावहीं । मिलहिं सतगुरु शब्द पावहिं , फेरि न भवजल आवहीं ॥ ( दरिया साहब , बिहारी ; ग्रन्थ दरिया सागर से )


इस पोस्ट के बाद दूसरे वेदमंत्रों को पढ़ने के लिए    👉 यहां दवाएं।


     प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है?वेदों के अनुसार मोक्ष क्या है? मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है? मोक्ष प्राप्त करने के बाद क्या होता है? मोक्ष हिन्दीं में,मोक्ष अर्थ, मोक्ष में जीव है, मोक्ष कब है, पूर्ण मोक्ष, मोक्ष का मंत्र, मोक्ष के प्रकार, मोक्ष क्या है संतमत के अनुसार. आदि बातें को आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.


वेद-दर्शन-योग के अन्य लेखों के लिए

संतमत और वेदमत एक है
वेद-दर्शन-योग

     MS03 वेद-दर्शन-योग ।। चारो वेदों से 100 मंत्रों पर की गयी टिप्पणीयों से संतमत और वेदमत में एकता बतानेवाली पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए    👉 यहाँ दवाएँ.

     सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए  यहां दवााएं

---×---

MS03 वेद-दर्शन-योग 1 || ऋग्वेद, कबीर, नानक, तुलसी और दरिया साहब की वाणी में मोक्ष का वर्णन MS03 वेद-दर्शन-योग 1 || ऋग्वेद, कबीर, नानक, तुलसी और  दरिया साहब की वाणी में मोक्ष का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/23/2022 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।

Ad

Blogger द्वारा संचालित.