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MS03 वेद-दर्शन-योग 2 || ऋग्वेद संहिता में पूर्ण मोक्ष, मोक्ष का मंत्र, मोक्ष के प्रकार, मोक्ष क्या है आदि विचार

वेद-दर्शन-योग / ऋग्वेद संहिता / मंत्र 2

     प्रभु प्रेमियों  ! वेद-दर्शन-योग-यह सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज की अनमोल कृति है। इसमें चारो वेदों से चुने हुए एक सौ मंत्रों पर टिप्पणीयां लिखकर संतवाणी से उनका मिलान किया गया है। आबाल ब्रह्मचारी बाबा ने प्रव्रजित होकर लगातार ५२ वर्षों से सन्त साधना के माध्यम से जिस सत्य की अपरोक्षानुभूति की है , उसी का प्रतिपादन प्रस्तुत पुस्तक में किया गया है 

     ऋग्वेद के निम्नलिखित मंत्र के द्वारा और संतों की वाणीयों के द्वारा इस पोस्ट में बताया गया है कि सभी संत-महात्मा और वेदों में परम मोक्ष प्राप्त करने का उपदेश है।

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संतमत और वेदमत एक है
संतमत और वेदमत

ऋग्वेद संहिता / मंत्र 2

     ( २ ) इन्द्रस्य सख्यमृभवः समानशुर्मनार्नपातो अपसो दधन्विरे । सौधन्वनासो अमृतत्वमेरिरे विष्ट्वी शमीभिः सुकृतः सुकृत्यया ॥ ३ ॥ अ ० ५। व ० ७१३ अ ० ५ सू ० ६० अष्टक ३ मंडल ३ खं ० ३ पृष्ठ ३२० 

     भाष्य- ( ऋभवः ) सत्यज्ञान और सत्यन्याय से प्रकाशित और अधिक सामर्थ्यवान होकर विद्वान पुरुष ( इन्द्रस्य ) ऐश्वर्यवान परमेश्वर वा समृद्ध राजा के ( सख्यं ) मित्रता को ( सम्आनशुः ) भली प्रकार प्राप्त करें । और ( मनोः नपातः ) मननशील मनुष्य और चित्त को न गिरने देनेवाले ( अपसः ) उत्तम कर्मों को ( दधन्विरे ) धारण करें । वा मननशील दृढ़ मनुष्य के करने योग्य कर्मों को करें । वे ( सौधन्वनासः ) उत्तम ज्ञानवान पुरुष के पुत्र वा शिष्य होकर ( सुकृत्यया ) उत्तम क्रिया व आचरण से ( सुकृतः ) सदाचारवान होकर ( शमीभिः ) शान्तिदायक कर्मों से ( विष्ट्वी ) परमेश्वर के परम पद को प्रवेश करके ( अमृतत्वम् ) अमृतमोक्षपद को ( एरिरे ) प्राप्त करें । इसी प्रकार उत्तम कर्म कुशल विद्वान पुरुष ( मनोः नपात : अपसः ) ज्ञान से उत्पन्न कर्मों को करें और उत्तम साधन - सम्पन्न होकर उत्तम क्रिया ( Art ) से उत्तम काम करें । कर्मों से राष्ट्र में स्थान प्राप्त कर अपने अन्न - जीविकादि लाभ करें ।

टिप्पणीकार सद्गुरु महर्षि मेंहीं
टिप्पणीकार 

     टिप्पणी - इस मन्त्र में उत्तम ज्ञानवान ( गुरु ) पुरुष का शिष्यत्व ग्रहण कर , सदाचारी बन परमेश्वर के परमपद में प्रवेश करके अमृत मोक्षपद ( सदा का मोक्ष ) प्राप्त कर लेने और संसार में भी उन्नतिशील होने के लिये विद्वान , सदाचारी , कर्म - कुशल होकर राष्ट्र में राजा वा राष्ट्रपति की मित्रता और समीपता प्राप्त करके , ज्ञान से उत्पन्न कर्मों के करने का आदेश है । राष्ट्र सेवा छोड़कर केवल मोक्ष साधन के लिये ही आदेश नहीं है । दोनों ओर उन्नतिशील होने के लिये आदेश है । ज्ञान से उत्पन्न कर्मों का करनेवाला कर्मयोगी होता है , जिसमें समाधि साधन - द्वारा समत्व और स्थितप्रज्ञता प्राप्त कर वह कर्म करता रहता है ; परन्तु इसकी शिक्षा और दीक्षा तथा सिद्धि गुरु उपासना के बिना नहीं हो सकती है । श्रीमद्भगवद्गीता में अध्याय ४ श्लोक ३४ ; अध्याय १३ , श्लोक ६ और अध्याय १६ , श्लोक १४ में गुरु - सेवा की आवश्यकता बतलाई गई । सन्तवाणी में तो यह आवश्यकता अत्यन्त दृढ़ता से कही गयी है । जबकि वेद में ही यह आवश्यकता निश्चित रूप से बतलाई गई है , जैसा कि इस वेदमन्त्र के मन्त्रार्थ में लिखा हुआ है , तब कोई अन्य सद्ग्रन्थ इस आवश्यकता की अवहेलना कैसे कर सकता है ? यह मन्त्र संसार और परमार्थ ; दोनों मार्गों पर संग - संग चलकर उन्नति करने का आदेश देता है । इसलिये कर्मयोग का यह मूल मन्त्र है । श्रीमद्भगवद्गीता तो कर्मयोग का शास्त्र ही है ।

     कर्मयोग में कथित दोनों पथों पर संग - संग उन्नतिशील होकर चलना अनिवार्य है । दो में से किसी एक को त्यागने से कर्मयोग साधित नहीं हो सकता है । मोक्षार्थी को अपने ध्येय की प्राप्ति में कर्मयोग के यथार्थ स्वरूप को अपनाकर संसार में रहना अत्यन्त आवश्यक है । इसीलिये सन्तवाणी में भी स्थान - स्थान पर इसकी झलक बारम्बार देखने में आती है ।

    कबीर साहब और गुरु नानक साहब तो कर्मयोग के उदित प्रखर सूर्य की तरह प्रकट होकर और संसार में आदर्श की पराकाष्ठा होकर शिक्षा दे गये हैं । इन सन्तों ने और इनके अनुयायी तथा परवर्ती सन्तों ने राष्ट्र के आध्यात्मिक , चारित्रिक , सामाजिक और राजनैतिक सेवा - कर्म में नाना प्रकार के कष्ट सहन किये । मौके - मौके पर आवश्यकतानुकूल अपने प्राण भी उस सेवाग्नि में हवन कर दिये और अमर जीवन को प्राप्त किया । उनकी थोड़ी - सी वाणी नीचे लिखी जाती है - 

अवधू भूले को घर लावै , सो जन हमको भावै ॥ टेक ॥ घर में जोग भोग घर ही में , घर तजि बन नहिं जावै । वन के गये कलपना उपजै , तब धौं कहाँ समावै ॥ १ ॥ घर में जुक्ति मुक्ति घर ही में , जो गुरु अलख लखावै । सहज सुन्न में रहै समाना , सहज समाधि लगावै ॥ २ ॥ उनमुनि रहै ब्रह्म को चीन्हे , परम तत्त को ध्यावै । सुरत निरत सों मेला करिके , अनहद नाद बजावै ॥ ३ ॥ घर में बसत वस्तु भी घर है , घर वस्तु मिलावै । कहै ' कबीर ' सुनो हो अवधू , ज्यों का त्यों ठहरावै ॥ ४ ॥ ( कबीर साहब ) 

बाबा जोगी एक अकेला , जाके तीरथ व्रत न मेला ॥ टेक ॥ झोली पत्र विभूति न बटवा , अनहद बेन बजावै ॥ माँगि न खाइ न भूखा सोवै , घर अंगना फिरि आवै ॥ पाँच जना की जमाति चलावै , तास गुरु मैं चेला । कहै ' कबीर ' उनि देसि सिधाये , बहुरि न इहि जग मेला ॥ ( कबीर साहब ) 

जोगु न खिंथा जोग न डंडै जोगु न भसम चढ़ाईऐ । जोगु न मुंदी मूँड़ि मूँड़ाइऐ जोग न सिंजि वाईऐ ॥ अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ ॥ १ ॥ गली जोगु न होई ॥ एक द्रिसटि करि समसरि जाणै जोगी कहीऐ सोई ॥ १ ॥ जोग न बाहरि मड़ी मसाणी जोगु न ताड़ी लाईऐ ॥ जोगु न देसि दिसंतरि भविऐ जोग न तीरथ नाईऐ ॥ अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ ॥ २ ॥ सतिगुरु भेटै ता सहसा तूटै धावतु वरजि रहाईऐ ॥ निझरु झरै सहज धुनि लागै घर ही परचा पाईऐ । अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ ॥ ३ ॥ नानक जीवतिया मरि रहीऐ ऐसा जोगु कमाईऐ ॥ बाजे बाजहु सिंत्री बाजे तउ निरभउ पदु पाईऐ ॥ अंजन माहि निरंजनि रहीऐ जोग जुगति इव पाईऐ ॥ ४ ॥ ( गुरु नानक साहब ) 

सतिगुरु की ऐसी बडिआई । पुत्र कलत्र बिचै गति पाई ॥ ( गुरु नानक साहब ) 

गुरु की सेवा करि पिरा जीउ हरिनाम घिआए ॥ मंञहु दूरि न जाहि पिरा जीउ घरि बैठिया हरि पाए ॥ मोक्ष घरि बैठिया हरि पाए सदा चितु लाए सहजे सती सुभाए ॥ गुरु की सेवा खरी सुखाली जिसनो आपि कराए मंनि बसाए | नामो बीजे नामौ जमै नामो नानक सचि नाम बडिआई पूरबि लिखिया पाए । नानक हँसन दिआ , सतिगुरु भेटिऐ होवै पूरि खेलन दिआ , पैनन दिआ ,  खावन दिआ बीचे होवै मुकती ॥ ( गुरु नानक साहब ) 


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     प्रभु प्रेमियों ! मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकता है?वेदों के अनुसार मोक्ष क्या है? मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है? मोक्ष प्राप्त करने के बाद क्या होता है? मोक्ष हिन्दीं में,मोक्ष अर्थ, मोक्ष में जीव है, मोक्ष कब है, पूर्ण मोक्ष, मोक्ष का मंत्र, मोक्ष के प्रकार, मोक्ष क्या है संतमत के अनुसार. आदि बातें को आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.


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