गुरदेव के मधुर संस्मरण // 247
प्रभु प्रेमियों ! 'गुरदेव के मधुर संस्मरण' के इस भाग में हिन्दी शब्दकोश में दिये गये दुर्गुण शब्द की परिभाषा और पर्यायवाची की चर्चा नहीं मिलेगा न ही अंगद-रावण संवाद के 14 दुर्गुणों की चर्चा मिलेगी बल्कि यहाँ सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज के उन बचनों की चर्चा मिलेगी जिसमें उन्होंने कहा था कि दोष-दुर्गनों से गुरु कबतक रक्षा कर सकते हैं? "हम कितना बचाएँगे " और एक दूसरे प्रसंग में "सबका लोहू एक है" पर चर्चा मिलेगी.
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२४७. हम कितना बचाएँगे :
हमारे दोष - दुर्गुण हमारे जीवन को बर्बाद करते हैं । इसलिए जिसे अपने जीवन का निर्माण करने की इच्छा हो , उसे दोष - दुर्गुणों से बचकर रहना चाहिए । हमारे जीवन को बनाने - बिगाड़ने में सुसंग और कुसंग का बड़ा हाथ होता है । जो सुसंगति में रहता है , वह महान् बन जाता है और जो कुसंगति का सेवन करता है , वह नीचता को प्राप्त हो जाता है । जुआ खेलने , शराब पीने , परस्त्रीगमन करने आदि दुर्गुणों के शिकार व्यक्ति के उजड़ने में देर नहीं लगती ।
सदगुरु महर्षि मेंहीं |
युवावस्था में शारीरिक शक्ति विशेष रहती है । विशेष शारीरिक शक्ति रहने के कारण भी लोग पापों की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं । काम भाव की प्रबलता भी युवावस्था में ही अधिक देखी जाती है । इसीलिए युवावस्था दोष - दुर्गुणों की खान कही जाती है । जो अपनी युवावस्था को सँभालकर नहीं रख पाता है , उसका बुढ़ापा विशेष कष्टकारक हो जाता है ।
जो स्वयं दुर्गुणों से बचकर रहना नहीं चाहता है , उसे ब्रह्मा भी सुधार नहीं सकते । आप अपने बच्चे को दुर्गुणों से बचाकर रखना चाहते हैं , इसीलिए आप उसे हमेशा शिक्षा दिया करते हैं और उसके दोषों के लिए उसे डाँटते - फटकारते रहते हैं । वह जबतक आपके सामने रहता है , तबतक वह आपके भय से कोई गलती नहीं करता है ; परन्तु जब वह आपकी आँखों के सामने से हटता है , तो गलती कर बैठता है । वह गलती करना तभी छोड़ सकता है , जब उसे गलती की बुराइयाँ समझ में आ जाएँ और वह स्वयं गलती को छोड़ने के लिए तत्पर तथा प्रयत्नशील रहे ।
संस्मरण लेखक |
जब बुरी आदत लगने लगे , तभी उसे प्रयत्नपूर्वक छोड़ देना चाहिए । जब आदत परिपक्व और पुरानी हो जाती है , तब उसे छोड़ पाना कठिन हो जाता है । बड़ों की सेवा में दिन - रात संलग्न रहनेवाले को बिगड़ने का मौका नहीं मिल पाता है ।
गुरु भी शिष्यों को अज्ञात रूप से बुराइयों से बचाते हैं ; परन्तु यदि शिष्य कमर कसकर बुराई करने में लग जाए , तब गुरु कितना बचाएँगे ! एक दिन किसी की बुराई की चर्चा गुरुदेव के सामने हुई , तो वे बोले कि हम कितना बचाएँगे ! ∆
२४८. सबका लोहू एक है :
कभी - कभी गुरुदेव गुरु नानकदेवजी की निम्नलिखित वाणी अपने आप ऊँचे स्वर में गाया करते थे--
सबका लोहू एक है , साहिब फरमाया ॥
पीर पैगम्बर औलिया , सब मरने आया ।
नाहक जीव न मारिये , पोषन कूँ काया ॥ ∆
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