गुरदेव के मधुर संस्मरण // 326से329
प्रभु प्रेमियों ! गुरदेव के मधुर संस्मरण के इस भाग में गुरुदेव अपने प्रमुख शिष्यों को दीक्षा देने से संबंधित चेतावनी के साथ अपनी किसी शुभ यात्रा, तीर्थ यात्रा या किसी भी प्रकार के यात्रा के प्रारंभ में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए इन बातों पर चर्चा है..
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३२६. दीक्षक को गुरुदेव की चेतावनी :
कहते हैं , १ नवम्बर , सन् १९६४ ई ० को गुरुदेव ने अपने कुछ प्रमुख शिष्यों को कुप्पाघाट - आश्रम बुलवाया तथा उन्हें लोगों को दीक्षित करने के लिए अधिकार प्रदान किया और अंत में सबसे कहा कि आप सब लोग सुन लीजिए । मैंने आप सबको दीक्षा देने का अधिकार तो दे दिया ; परन्तु आप सब अपने हृदय में विचार कर लीजिए कि आप सब दीक्षा देने के योग्य हैं या नहीं । यदि आपलोग इस ख्याल से लोगों को दीक्षा दीजिएगा कि गुरुआई करेंगे , तो विदाई में अधिक रुपये मिलेंगे और उन रुपयों से खूब ऐशो आराम करेंगे , तो जान लीजिए कि आप सबको नरक जाना पड़ेगा ।
३२७. अलग कुटिया बनाकर रहो :
सद्गुरु महर्षि मेंहीं |
यदि आप किसी धार्मिक सम्प्रदाय के शिष्य या अनुयायी होकर दूसरे सम्प्रदाय के मठ - मंदिर या आश्रम में रहने लगें , तो धीरे - धीरे उस दूसरे सम्प्रदाय का रंग आपपर चढ़ने लग जाएगा ।
गुरुदेव के एक शिष्य ऋषिकेश में दूसरे सम्प्रदाय के आश्रम में रहा करते थे । गुरुदेव ने उनसे कहा कि तुम अपनी अलग कुटिया बनाकर रहा करो । शिष्य ने गुरुदेव के आदेश का पालन कुटिया∆
३२८. बिना बुलाये नहीं आना चाहिए :
किसी उत्सव में मान लीजिए , घर वाले ने पचीस व्यक्तियों के खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था की हो और वहाँ यदि बीस आदमी अलग से बिना बुलाये आ जाएँ , तो घर वाले को उनकी व्यवस्था करने में दिक्कत हो जाएगी ।
गुरुदेव की अध्यक्षता में कहीं सत्संग हो रहा था । उनके साथ दो - चार महात्मा और थे , जो घरवाले के द्वारा आमंत्रित होकर आये थे । पीछे वहाँ एक महात्मा आ गये , जो आमंत्रित नहीं थे । गुरुदेव ने उनसे कहा कि बिना बुलाये आनेवाला व्यक्ति घरवाले का भार बन जाता है । इसलिए बिना बुलाये नहीं आना चाहिए । ∆
३२९ . ' जय गुरु ! ' बोलकर यात्रा करो :
हमारे ऋषि - मुनियों ने इस बात की पूरी खोज की है कि हमें किस दिन और किस समय किस दिशा में यात्रा करनी चाहिए । उन्होंने यह भी बताया है कि किस दिन और किस समय किसी दिशा में जाने से नुकसान उठाना पड़ जाता है । पंचांग में दिक्शूल के बारे में इस प्रकार लिखा हुआ है--
संस्मरण लेखक |
सोम शनिश्चर पुरब न चालू । मंगल बुध उत्तर दिसि कालू ॥ रवि शुक्र जो पश्चिम जाए । हानि होय पथ सुख नहिं पाए । बीफे दक्खिन करे पयाना । फिर नहिं समझो ताको आना ॥
समय - शूल का उल्लेख करते हुए पंचांग में कहा गया है कि उषाकाल पूरब की ओर , गोधूलि - वेला में पश्चिम की ओर , आधी रात में उत्तर की ओर और मध्याह्न - काल ( दोपहर ) में दक्षिण की ओर नहीं जाना चाहिए ।
कुछ विद्वान् कहते हैं कि जिस दिन मन विशेष प्रसन्न हो , उस दिन किसी भी दिशा में यात्रा कर सकते हैं । दूसरे कुछ लोग कहते हैं कि जिस दिन दिक्शूल हो , उस दिन सूर्योदय से पहले ही यात्रा पर चल देना चाहिए ।
गुरुदेव भी यात्रा करने के पूर्व पंचांग देखकर दिक्शूल देखा करते थे । श्री संत - शिशु बाबा से उन्होंने कभी कहा था कि कहीं यात्रा करनी हो , तो दिक्शूल रहने पर भी ' जय गुरु ! ' का उच्चारण करके यात्रा पर जा सकते हो । ∆
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सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।