गुरदेव के मधुर संस्मरण // 103-104
प्रभु प्रेमियों ! गुरदेव के मधुर संस्मरण के इस भाग में हिंदी में काल की जानकारी, काल कहाँ-कहाँ रहता है? काल के प्रभाव से साधना में कैसे विघ्न आया करता है? साधक को काल के कुप्रभाव से कैसे बचना चाहिए? साधकों को काल से बचने के लिए हमेशा मुस्तैद रहना चाहिए आदि बातों के साथ कुछ हंसी-मजाक की बातें भी प्राकृतिक चिकित्सक से की गई है. वह भी प्रसंग के बारे में बताया गया है.
१०३. जात काल जमात काल .... :
कभी - कभी अपनी जाति के भी लोग हमारे लिए हानिकारक साबित हो जाते हैं और अपनी जाति के होने के नाते किसी से विशेष प्रेम रखना भी ओछी भावना है । जाति - पाँति का भेद - भाव रखनेवाला व्यक्ति अच्छा नहीं माना जाता । किसी भी प्रकार का अहंकार रखना साधक के लिए विघ्नरूप है , चाहे वह अहंकार ऊँची जाति में जन्म लेने का ही क्यों न हो ।
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| सदगुरु महर्षि मेंहीं | 
किसी समिति , संस्था या सभा - सोसायटी का सदस्य या पदाधिकारी बनने से अहंकार बढ़ता है , आपसी टकराहट होती है और व्यक्ति राजनीति में पड़ जाता है । सभा में किसी का सम्मान होता है , तो किसी का अपमान भी । साधक को एकांतसेवी होना चाहिए , उसे मेले ठेले से दूर रहना चाहिए । मेले - ठेले में किसी का भी मन शांत नहीं रह पाता ; वहाँ मन बुराई की भी ओर भागता है ।
जन - समूह में रहने से मन चंचल , बहिर्मुख और तनावपूर्ण हो जाता है । भीड़ - भाड़ में कोई दुर्घटना भी हो जाया करती है , जिसमें लोग हताहत भी हो जाते हैं । ' जो भीड़ में गया , वह भाड़ में गया ' - यह कहावत भी ठीक ही है । इसी आशय की एक कहावत गुरुदेव कभी - कभी इस प्रकार कहा करते थे- “ जात काल जमात काल । मेला - ठेला महाकाल ॥ ”∆
१०४. प्राकृतिक चिकित्सा और स्वास्थ्य :
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| संस्मरण लेखक | 
रानीपतरा ( पूर्णियाँ जिला ) में एक प्राकृतिक चिकित्सालय है । कभी उसके डॉक्टर थे श्रीरवीन्द्र चौधरीजी । एक बार गुरुदेव आमंत्रित होकर वहाँ गये । सत्संग - प्रवचन के बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए डॉक्टर साहब से कहा कि आप प्राकृतिक ढंग से चिकित्सा करते हैं , इसीलिए आपकी चिकित्सा पद्धति ' प्राकृतिक चिकित्सा ' कहलाती है ; परन्तु यह तो बताइए कि "पानी पीने का प्राकृतिक मार्ग तो मुँह है और आप पेट साफ करने के लिए रोगी के शरीर में नीचे से पानी चढ़वाते हैं , यह प्राकृतिक कैसे हुआ ! यह सुनकर उपस्थित सभी लोग हँस पड़े । "
गुरुदेव के संग में उस समय उनके एक सेवक शिष्य थे । उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था , उस समय वे गंजी पहने हुए थे । गुरुदेव ने उन्हें गंजी खोलकर सभा में खड़ा होने का आदेश दिया । वे गंजी खोलकर खड़े हो गये । गुरुदेव ने उनकी ओर इशारा करते हुए डॉक्टर साहब से कहा कि- बिना कोई चिकित्सा कराये , देखिए , इसका स्वास्थ्य कितना अच्छा है ! यह देख - सुनकर भी सब लोग हँस पड़े ।
यह प्रसंग स्वयं गुरुदेव ने सुनाया था ।∆
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 Reviewed by सत्संग ध्यान
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7/30/2022
 
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