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LS61 शिक्षाप्रद कथाएँ 172 || ईश्वर विश्वासी संत रविया की भारती भाषा( हिंदीं) में कहानी

शिक्षाप्रद कथाएँ / कथा नंबर 172

शिक्षाप्रद कथाएँ पुस्तक के इस कथा में बताया गया है कि " अल्लाह, ईश्वर या परमात्मा पर जिन को पूर्ण विश्वास है. वह ईश्वर प्रदत्त जिस भी स्थिति में रहता है, उसमें वह परम संतुष्ट रहता है वह अपने सुख-सुविधा की किसी भी प्रकार की चिंता नहीं करते हुए केवल ईश्वर को जिससे खुशी प्राप्त हो उसी काम में लगा रहता है. ईश्वर पर विश्वास करने वाली संत रविया की कहानी, ईश्वर पर विश्वास न करने वाला संत, ईश्वर पर विश्वास रखने का फल, गुरु-ईश्वर पर अटूट विश्वास की कहानी, रविया के जीवन की कहानी, विश्वास पर प्रेरक प्रसंग, ईश्वर पर विश्वास करने वाला, जीवन की कहानी, विश्वास पर भरोसा, सन्यासी की कहानी, सोच पर कहानी,  भारती भाषा  (हिंदीं) में बताया गया है।

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बाबा लालदास सद्गुरु की डायरी


१७२. संत की महिमा

 

    सूफी संतों में एक बहुत बड़ी संत थीं , जिनका नाम था राबिया । वे निहायत सादगी की जिंदगी बिताती थीं और हर घड़ी अल्लाह का नाम उनकी जुबान पर रहता था । उनकी कुटिया में साधु - संतों और भक्तों का आना - जाना लगा रहता था ।

     एक दिन एक संत आया और रात को उनकी कुटिया में ही रह गया । उसने देखा , राबिया ने रात को अपने सोने के लिए एक टाट बिछाया और तकिये की जगह एक ईंट रख ली । ' अल्लाह ' का नाम लेती हुई फिर वे उस बिस्तर पर आराम से लेट गयीं और जरा - सी देर में गहरी नींद में सो गई । संत चकित रह गया । इतने ऊँचे दर्जे की संत और इतनी कठोर जिंदगी ! उसे बड़ा दुःख हुआ और वह रात - भर अपने बिस्तर पर पड़ा छटपटाता रहा । एक पल को भी उसकी आँखें नहीं लगीं । 

     सबेरे उठकर उसने राबिया से कहा , ' आप इतनी तकलीफ क्यों उठाती हैं ? ' ' कैसी तकलीफ ? ' - राबिया ने पूछा । 

     रात को संत ने जो देखा था , वह बता दिया । फिर बोला , ' सुनिये , मेरे कई अमीर दोस्त हैं । अगर आपकी इजाजत हो , तो मैं उनसे कहकर आपके लिए एक अच्छा - सा बिस्तर भिजवा दूँ ? "

    राबिया उसकी बात सुनकर थोड़ी देर चुप रहीं , फिर बोलीं , ' तुम्हारी मुहब्बत के लिए क्या कहूँ ! पर यह तो बताओ कि क्या मुझे , तुम्हें और अमीरों को देनेवाला एक ही नहीं है ? ' 

     संत ने दबी जुबान से कहा , ' जी हाँ , एक ही है । ' ' तब ' , राबिया बोलीं , ' क्या वह हमें भूल गया है और अन्य दौलतमंदों की उसे याद है ? अगर उसे हमारी याद नहीं है , तो हम याद क्यों दिलावें ? '

     घड़ी - भर खामोश रहकर उन्होंने कहा , ' मेरे भाई ! हमें यह हाल पसंद है ; क्योंकि उसे यह पसंद है । ' बेचारा संत आगे एक शब्द भी न बोल सका । ∆


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     प्रभु प्रेमियों ! लालदास साहित्य सीरीज में आपने 'शिक्षाप्रद कथाएँ' नामक पुस्तक के इस कहानी में ईश्वर पर विश्वास करने वाली संत रविया की कहानी, ईश्वर पर विश्वास न करने वाला संत, ईश्वर पर विश्वास रखने का फल, गुरु-ईश्वर पर अटूट विश्वास की कहानी, रविया के जीवन की कहानी, विश्वास पर प्रेरक प्रसंग, ईश्वर पर विश्वास करने वाला, जीवन की कहानी, विश्वास पर भरोसा, सन्यासी की कहानी, सोच पर कहानी में जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है.जय गुरु महाराज.


शिक्षाप्रद कथाएँ 

LS61 शिक्षाप्रद कथाएँ
शिक्षाप्रद कथाएँ

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