LS61 शिक्षाप्रद कथाएँ 58 || आत्मा और परमात्मा का दर्शन || भगवान के दर्शन कैसे हो ||परमात्मा-दर्शन कैसे हो
शिक्षाप्रद कथाएँ / कथा नंबर 58
५८. परमात्मा इन्द्रियगोचर नहीं
किसी नगर के बाहर जंगल में एक महात्मा रहते थे । उनके पास एक व्यक्ति गया और उनसे पूछा कि महात्माजी ! क्या परमात्मा का अस्तित्व है ? यदि है , तो उसे हमें इन आँखों से दिखाइए । जो आँखों से नहीं दिखायी देती है , उसकी सत्यता का क्या प्रमाण है ?
महात्मा ने उसे शास्त्र - वाक्यों और युक्तियों से समझाया ; परन्तु उसने माना नहीं । हठ करने लगा कि परमात्मा के दर्शन इन दोनों आँखों से करा दीजिए । जब महात्माजी ने उसे समझाने की दूसरी युक्ति अपनायी । उन्होंने मिट्टी का एक ढेला उठाया और उसके सिर पर दे मारा । सिर फट गया । वह रोता हुआ राजा के पास फरियाद करने गया ।
उसने राजा से कहा कि मैंने फलाने महात्मा से इन आँखों से परमात्म - दर्शन कराने का हठ किया , तो उन्होंने जवाब के बदले मेरा सिर फोड़ दिया । अब मेरे सिर में दर्द होता है । दर्द के मारे प्राण निकले जाते हैं ।
राजा ने सिपाही को भेजकर महात्माजी को कि आपने इस व्यक्ति का सिर क्यों फोड़ दिया ? महात्मा ने कहा कि मैंने बुलवाया और पूछा इसके सवाल का जवाब दिया है । यह जो आपके पास आया है , किस कारण से आया है ? राजा ने कहा कि इसके सिर में दर्द होता है , इसी से फरियाद करने आया है ।
महात्मा ने कहा कि जैसे दर्द होता है ; परन्तु दीखता नहीं है , वैसे ही ईश्वर की स्थिति है ; परन्तु वह दर्शित नहीं होता । मुझको यह अपने दर्द को दिखा दे , तब मैं भी इसको परमात्मा के दर्शन नेत्रों से करा दूँगा ।
जैसे दर्द भी है और नेत्रों से वह नहीं दीखता , वैसे आत्मा भी है और नेत्रों से वह नहीं दिखायी देती । राजा ने कहा - ' ठीक है । आप दोनों जाइए । ' ∆
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