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LS04- 01 मनुष्य - देह अद्भुत है || मानव की सबसे बड़ी विशेषता || Glory to the human body.

LS04- 01 यानि 'पिंड माहिं ब्रह्मांड' का प्रथम लेख

     प्रभु प्रेमियों  ! 'पिंड माहिं ब्रह्मांड' पुस्तक के प्रथम भाग 'पिंड खंड' का प्रथम लेख "मनुष्य - देह अद्भुत है" में बताया गया है कि- स्वर्ग, नरक और मोक्ष में जाने का रास्ता कहां है? आवागमन से कौन छूट सकता है? देवता किसके दास होते हैं? मोक्ष पाने का अधिकारी कौन है? धर्म शास्त्रों और संत-महात्माओं की दृष्टि में मनुष्य शरीर कैसा है? असीम शक्ति का भंडार कहां छुपा है? मानसिक एकाग्रता का महत्व, मानव शरीर में क्या-क्या विशेषता है? मनुष्य शरीर में विश्व ब्रह्मड का दर्शन होता है इससे संबंधित संतो के वचन कौन-सा है?  उपरोक्त वाणियों को संतों के वचनों से प्रमाणित किया गया है. अगर आपको उपरोक्त बातें जाननी है, तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें-

संतों का ध्यान योग



मनुष्य देह अद्भुत है : मानव की सबसे बड़ी विशेषता

     प्रभु प्रेमियों  ! अध्यात्म शास्त्रों में मनुष्य देह की बड़ी महिमा गायी गयी है , जो अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है । कहा जाता है कि इस देह की प्राप्ति के लिए स्वर्ग के देवता भी लालायित रहते हैं । इस शरीर में रहकर कर्म करते हुए मनुष्य परम मोक्ष , स्वर्ग और नरक- तीनों की ओर चले जाते हैं । सभी प्राणियों में मानव की सबसे बड़ी विशेषता शरीर की श्रेष्ठता इसलिए सिद्ध है कि इसी शरीर में रहकर जन्म मरण के चक्र से छुटकारा पाया जा सकता है । ऐसा अवसर मानव शरीर के अतिरिक्त दूसरे किसी भी शरीर में प्राणी को प्राप्त नहीं हो सकता । स्वर्ग में भोग्य सामग्री की प्रचुरता रहने के कारण देवता भी इन्द्रियों के पूरे दास बने रहते हैं और यही कारण है कि वे विषय - सुखों से ऊपर उठकर मोक्ष- साधन का पुरुषार्थ करने में सक्षम नहीं हो पाते । विवेकशील मनुष्य ही अपने उद्धार की बात सोच पाता है और उसके अनुरूप साधनों में प्रवृत्त हो सकता है । 

पूज्यपाद बाबा लालदासजी महाराज
स्वामी लालदासजी 

     ' ब्रह्माण्ड पुराणोत्तर गीता ' में कहा गया है कि नौ द्वारोंवाले शरीर से ज्ञान उसी प्रकार निकलते रहते हैं , जिस प्रकार मकड़ी के शरीर से तन्तु ; देखें- ' नवच्छिद्रान्विताः देहा : स्नुवत्ते जालिका इव । ' स्वामी विवेकानन्दजी महाराज ने भी कहा है कि ' मानव मस्तिष्क ज्ञान का अक्षय भंडार और अछोर पुस्तकालय है । ' मस्तिष्क अधिष्ठित मन में असीम शक्ति छिपी हुई है । ज्ञान - विज्ञान का एकमात्र केन्द्र मानव का मन ही है । जिस किसी ने भी अपने जिस किसी अद्भुत कार्य से संसार के लोगों को चमत्कृत किया है , वह उसकी मानसिक एकाग्रता का ही परिणाम रहा है । मानसिक एकाग्रता के प्राप्त हो जाने पर समस्त ज्ञान - विज्ञान अपने - आप सिमट - सिमटकर मस्तिष्क में संगृहीत हो लग जाते हैं । ' ज्ञान - संकलिनी तंत्र ' में भी उल्लिखित है कि देह में ही सभी विद्याएँ , सभी देवता और सब तीर्थ विद्यमान हैं । ये केवल गुरु के द्वारा बतलायी गयी युक्ति का अभ्यास करने से प्राप्त किये जा सकते हैं - 

देहस्थाः सर्वविद्याश्च देहस्थाः सर्वदेवताः । देहस्थाः सर्वतीर्थानि गुरुवाक्येन लभ्यते ॥ 

     संत दरिया साहब बिहारी भी दृढ़ शब्दों में कहते हैं कि शरीर से कुछ भी अलग नहीं है ; सब कुछ शरीर के ही अंदर है । बिना युक्ति के कुछ भी नहीं पाया जा सकता । सब कुछ तुम्हारे पास है , तुमसे अलग कुछ भी नहीं है । संसार में मनुष्य का शरीर अनुपम है 

दरिया तन से नहिं जुदा , सब किछु तन के माहिं । 
जोग जुगुत से पाइये , बिना जुगुति किछु नाहिं । 
सब तोहि पास जुदा कछु नाहीं । 
मानुष तन अनुपम जग माहीं ॥ 

[पिंड ब्रह्मांड पूरन पुरुष , अवगत रमता राम । ( संत गरीब दासजी ) घट औ मठ ब्रह्मांड सब एक है , भटकि कै मरत संसार सारा । ( संत पलटू साहब ) जोइ ब्रह्मांड सोइ पिंड , अन्तर कछु अहइ नहीं । ( महर्षि मेंहीँ पदावली , ६५ वाँ पद्य )]

      संत कबीर साहब भी इस मानव तन को अपार समुद्र बतलाते हुए कहते हैं कि जो इस कायारूपी समुद्र में डुबकी लगाता है , वही अनमोल रत्न ( ज्ञान ) की प्राप्ति करने में समर्थ हो पाता है 

कबीर काया समुँद है , अन्त न पावै कोय । 
मृतक होइ के जो रहै , मानिक लावै सोय ॥ ∆

आगेे हैं-

पिण्ड ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है : 

    प्रभु प्रेमियों ! इस मनुष्य देह को शास्त्रीय भाषा में सामान्यतः पिण्ड कहते हैं और बाहरी जगत् को ब्रह्माण्ड । आकाश , वायु , अग्नि , जल और मिट्टी - इन पंच महाभूतों से शरीर बना हुआ है । ब्रह्माण्ड भी इन्हीं पाँच तत्त्वों से निर्मित है । जिस प्रकार शरीर के स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्य ये पाँच मंडल हैं , उसी प्रकार ब्रह्माण्ड भी इन पाँच मंडलों से भरपूर है । ... 



इस पोस्ट के बाद वाले पोस्ट LS04- 02 में बताया गया है कि विश्व ब्रम्हांड के चमत्कारिक अनुभव कैसे कर सकते हैं? उस पोस्ट को अवश्य पढ़ें .  उसे  पढ़ने के लिए   👉यहाँ दवाएँ  


प्रभु प्रेमियों ! पूज्यनीय बाबा लालदास जी महाराज लिखित "पिंड माही ब्रह्मांड" पुस्तक में उपर्युक्त लेख निम्न प्रकार से प्रकाशित है-

मनुष्य देह अद्भुत है

मनुष्य देह अद्भुत है1



     प्रभु प्रेमियों ! 'पिंड माहिं ब्रह्मांड' पुस्तक के उपर्युक्त लेख से हमलोगों ने जाना कि मनुष्य शरीर क्या है, मनुष्य शरीर में कौन सी विशेष विशेषता होती हैं, शरीर में कौन कौन से तत्व पाए जाते हैं,  मानव शरीर के अंगों और उनके कार्यों, मानव शरीर व शरीर रचना की व्याख्या, शरीर शब्द की उत्पत्ति, मानव शरीर का आधार क्या है, शरीर के आंतरिक अंगों की सामान्य जानकारी, मानव शरीर की सबसे बड़ी विशेषता क्या है? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना ईमेल द्वारा नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें और समझें। जय गुरु महाराज!!! 



     LS04 पिंड माहिं ब्रह्मांड ।। मनुष्य शरीर में विश्व ब्रह्मांड के दर्शन और सन्त-साहित्य के पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत जानकारी वाली पुस्तक है. इसके बारे में विशेष जानकारी के लिए  

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LS04- 01 मनुष्य - देह अद्भुत है || मानव की सबसे बड़ी विशेषता || Glory to the human body. LS04- 01 मनुष्य - देह अद्भुत है || मानव की सबसे बड़ी विशेषता  || Glory to the human body. Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/26/2021 Rating: 5

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