LS04 पिंड माहिं ब्रह्मांड / 05
प्रभु प्रेमियों ! जाग्रत् अवस्था में चेतन तत्त्व शिवनेत्र में रहता है और उसकी धाराएँ दोनों आँखों में तथा दोनों आँखों से नीचे फैली हुई रहती हैं | स्वप्न में चेतन तत्त्व सिमटकर कण्ठ में आ जाता है और उसकी धाराएँ कण्ठ से नीचे फैली हुई रहती हैं | सुषुप्ति में चेतन तत्त्व सिमटकर हृदय में आ जाता है और उसकी धाराएँ हृदय से नीचे फैली हुई रहती हैं । जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं में चेतन तत्त्व आता - जाता रहता है और तीनों अवस्थाओं में उसकी धाराएँ नीचे मुख्यतः गुदा तक फैली हुई मानी जाती हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वप्न में चेतन तत्त्व आँखों से हट जाता है ; सुषुप्ति में वह आँखों और कण्ठ- दोनों से हट जाता है ; परन्तु उसकी धाराएँ जीवन भर किसी भी अवस्था में गुदा स्थान को छोड़ नहीं पातीं , मानो चेतन की धाराएँ यहाँ जकड़ी हुई हों । .
इस प्रकार जब किसी साधक की चेतन - धाराएँ सिमटकर मूलाधार से आज्ञाचक्रकेन्द्रविन्दु या सहस्रार तक और फिर आज्ञाचक्रकेन्द्रविन्दु या सहस्रार से मूलाधार तक आने - जाने लगती है , तब कहा जाता है कि उसकी कुण्डलिनी शक्ति जग गयी उसकी सुषुम्ना नाड़ी उन्मुक्त हो गयी उसके षट् चक्रों का भेदन हो गया अथवा उसके सभी पिंडी कमल खिल गये । जगी हुई कुण्डलिनी शक्ति चक्रों का भेदन उसी प्रकार करती है , जिस प्रकार गर्म छड़ बाँस की गाँठों का चक्र का भेदन होने पर उस चक्र में स्थित शक्ति विशेष जग जाती है । किसी चक्र का ध्यान करने पर जो ध्यान फल होता है , वह उस चक्र की शक्ति के जगने का फल है । ध्यानविन्दूपनिषद् में कुण्डलिनी शक्ति का स्थान कन्द ऊपर बतलाया गया है- “ कन्दोर्ध्वकुण्डली शक्तिः । ”
योगचूड़ामणि उपनिषद् में भी कुंडल की आकृतिवाली अष्टधा कुंडली शक्ति का स्थान कन्द से ऊपर बतलाया गया है- “ कन्दोर्ध्वे कुण्डली शक्तिः अष्टधा कुण्डल आकृतिः । ” योगचूड़ामणि उपनिषद् में ही दूसरी जगह कुण्डलिनी शक्ति का स्थान गुदा और लिंग के बीच योनिस्थान में माना गया है-
“ आधारं प्रथमं चक्रं स्वाधिष्ठानं द्वितीयकम् । ” योनिस्थानं द्वयोर्मध्ये कामरूपं निगद्यते । "
अब योगचूड़ामणि उपनिषद् से ही स्पष्ट हो जाता है कि ' कन्द का ऊपर ' गुदा और लिंग का मध्यस्थान ही है । किसी ने मेरुदंड के निचले भाग के आसपास के स्थान को कन्द बतलाया है । कुण्डलिनी शक्ति की अवस्थिति कोई गुदा में , कोई गुदा लिंग के बीच में , कोई लिंग में और कोई लिंग तथा नाभि के बीच मानते हैं । कुछ मतों के अनुसार , नाभि कुण्डलिनी शक्ति का अवस्थान है । विशेष मान्यता यही है कि यह शक्ति गुदा और लिंग के बीच सुषुप्त अवस्था में पड़ी हुई है ।
नाभेस्तिर्यगधः ऊर्ध्वं कुण्डलिनी स्थानम् । अष्ट प्रकृतिरूपाऽष्टधा कुण्डलीकृता कुण्डलिनी शक्तिर्भवति ( शाण्डिल्योपनिषद् )
स्वाद चक्र षट् दल विस्तारो , ब्रह्म सावित्री रूप निहारो । उलटि नागिनी का सिर मारो , तहाँ सबद ओंकारा है ॥ ( कबीर शब्दावली , भाग १ )
गरीब तीन पेच है , कुण्डलनी नाभी के पासा । जाके मुख सैं नीकलै , झल अग्नि अकासा ॥ ( सन्त गरीब दासजी )
वस्तुतः कुण्डलिनी शक्ति गुदा से लेकर नाभि तक के स्थानों में विशेष रूप से आबद्ध है । । गुदा , लिंग और नाभिचक्र से छूटने के बाद वह सिमटकर द्रुत गति से ऊपर उठती हुई आज्ञाचक्र के केन्द्रविन्दु में जा केन्द्रित होती है । चेतन तत्त्व की कल्पना एक स्प्रिंग ( कमानी ) के रूप में की जा सकती है , जिसका निचला छोर गुदा - लिंग तथा नाभि से बँधा हुआ है और दूसरा छोर खुला हुआ है , जो फैल - सिकुड़कर हृदय से लेकर आज्ञाचक्र के केन्द्रविन्दु तक और आज्ञाचक्र के केन्द्रविन्दु से लेकर हृदय तक जाग्रत् , स्वप्न तथा सुषुप्ति अवस्थाओं में आता - जाता है । जब क्रिया विशेष के द्वारा निचला छोर पूरी तरह खुल जाता है , तब वह चेतनरूप स्प्रिंग सिमटकर आज्ञाचक्र के केन्द्र विन्दु में जा लगता है ।
सन्तमत में आज्ञाचक्रकेन्द्रविन्दु से चेतन तत्त्व को ऊपर उठाने के लिए विन्दु और नाद की साधनाएँ करनी पड़ती हैं ।∆
आगे का प्रसंग है-
मूलाधार चक्र :
प्रथम चक्र का नाम है- ' मूलाधार ' । ' मूलाधार में दो शब्द हैं - ' मूल ' और ' आधार ' । ' मूल ' के अर्थ हैं - जड़ , आरंभ , मुख्य. प्रथम चक्र सब चक्रों से नीचे पीठ की रीढ़ के मूल के आसपास कुण्डलिनी शक्ति का आधारभूत स्थान होने के कारण 'मूलाधार' मूलाधार चक्र कहलाता है ।
' शिव - संहिता ' में चक्र आधार - कमल ( आधारचक्र ) भी कहा गया है- “ आधारकमले सुप्तां चालयेत् कुण्डलीं दृढाम् । ” वराहोपनिषद् में गुदा और लिंग के बीच मूलाधार चक्र माना गया है- " गुदमेढ़ान्तरालस्थं मूलाधारं त्रिकोणम् । ” । ......
इस पोस्ट के बाद आने वाले पोस्ट LS04- 06 में मूलाधार चक्र के बारे में बताया गया है . उसे अवश्य पढ़ें. उस पोस्ट को पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं ( अगला पोस्ट कबतक आयेगा कोई निश्चित नहीं है अतः बुक ओनलाइन मंगाकर पढ़ ले.)
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