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LS04- 04 पिण्ड में छह चक्र हैं || हठयोग के चक्र साधना और राजयोग साधना में क्या विशेषता है?

LS04 पिंड माहिं ब्रह्मांड / 04

     प्रभु प्रेमियों  ! 'पिंड माहिं ब्रह्मांड' पुस्तक के प्रथम खंड के पिंड भाग की जानकारी प्राप्त करते हुए आज पिंड के 6 चक्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे. जिसमें  विशेष रुप से निम्नलिखित विषयों पर चर्चा होगी- योग शास्त्र में चक्र या पद्म  किसे कहते हैं? चक्र कितने होते हैं और उनके नाम क्या-क्या है? संतो के वाणियों में चक्रों का वर्णन विशेष क्यों नहीं है? हठयोग के चक्र साधना और राजयोग साधना में क्या विशेषता है? 

इस पोस्ट के पहले वाले पोस्ट में बताया गया है कि योग योगनाड़ी क्या है? उसे पढ़ने के लिए    👉यहाँ दवाएँ.   

6 चक्रों का वर्णन

पिण्ड में छह चक्र हैं : Cycle of hathog

     प्रभु प्रेमियों  ! पिण्ड के कुछ मुख्य मुख्य स्थान हैं ; जैसे - गुदा , लिंग , नाभि , हृदय , कंठ और दोनों भौंहों का मध्यस्थान । इन छहो स्थानों पर सुषुम्ना नाड़ी के आश्रित छह पद्मों ( कमलों ) की अवस्थिति बतलायी गयी है । ( देखें ' रामचरित - मानस - सार सटीक ' , उत्तरकांड , चौपाई ७०७ के अर्थ की टिप्पणी ) ये पद्म ही चक्र कहलाते हैं । ' चक्र ' का सामान्य अर्थ है- पहिया या पहिये के आकार की कोई गोल वस्तु । ' चक्र ' का अर्थ चक्कर , घुमाव , फेरा या उलझन भी होता है ; जैसे मायाबद्ध जीव आवागमन के चक्र में पड़ा रहता है । छह पद्मों में कुंडलिनी शक्ति चक्कर खाकर फँसी हुई है , इसी कारण से ये छह पद्म ' चक्र ' कहलाते हैं ।

     वराहोपनिषद् में ये चक्र शक्ति के स्थान देखें - ' मूलाधार आदि षट् चक्रं शक्तिस्थानम् उदीरितम् । ' गये हैं ; अँगरेजी में पद्मों अथवा चक्रों को ' प्लेक्सस ' ( Plexus ) कहते हैं । हठयोगशास्त्र के अनुसार इन चक्रों के नाम क्रमश : ये हैं मूलाधार , स्वाधिष्ठान , मणिपूरक , अनाहत , विशुद्ध और आज्ञाचक्र |

      योगकुंडली उपनिषद् में भी छो चक्रों के ये ही नाम दिये गये हैं- ' मूलाधारं स्वाधिष्ठानं मणिपूरं तृतीयकम् । अनाहतं विशुद्धं च आज्ञाचक्रं च षष्ठकम् । ' ( अध्याय ३ ) 

     मूलाधार गुदा में , स्वाधिष्ठान लिंग में , मणिपूरक नाभिदेश में , अनाहत हृदय में , विशुद्ध चक्र कंठ में और आज्ञाचक्र मस्तक में स्वीकार है - ' आधारं गुदमित्युक्तं स्वाधिष्ठानं तु लैंगिकम् । मणिपूरं नाभिदेशं हृदयस्थमनाहतम् । विशुद्धिः कण्ठमूले च आज्ञाचक्रं च मस्तकम् ॥ ' ( योगकुण्डली उपनिषद् , अध्याय ३ )  


     संत दरिया साहब बिहारी भी पिण्ड के अंदर छह चक्र कहते हैं - ' छवो चक्र काया परघट है , वाका भेद जो पावै । 

     इन छह चक्रों के नाम संत गरीब दासजी ने इस प्रकार गिनाये हैं- मूलचक्र , स्वाद चक्र , नाभि - कमल , हृदय - कमल , कंठ - कमल और त्रिकुटी कमल ।

 "मूल चक्र में राम है , स्वाद चक्र में राम । नाभि कमल में राम है , हृदय कमल में राम ॥ कंठकमल में राम है , त्रिकुटी कमल में राम । सहस कमलदल राम है , सुन बस्ती सब ठाम ॥ ( संत गरीब दासजी ) 

     तंत्रशास्त्रों और कई उपनिषदों में भी षट् चक्रों का उल्लेख पाया जाता है । संतों में दो - चार संतों ने ही इनका जिक्र किया है । किन्हीं- किन्हीं संतों ने इनकी चर्चा तक नहीं की है । कई एक संतों की वाणियों में आये षट् चक्र संबंधी वर्णन को विद्वानों ने क्षेपक माना है । संत लोग राजयोग ( ध्यानयोग ) के लिए हठयोग की कोई आवश्यकता नहीं समझते । राजयोग से ही हठयोग का लक्ष्य पूरा हो जाता है । हठयोग सर्वसाधारण के लिए उपयुक्त नहीं है । यदि इसकी क्रिया ठीक - ठीक नहीं की जाए , तो लाभ के बदले हानि भी हो सकती है ; परन्तु राजयोग में ऐसी बात नहीं है । राजयोग सबके लिए सुगम और आपदा रहित है । ∆


आगे का प्रसंग है-

 कुण्डलिनी शक्ति और उसका स्थान :

     प्रभु प्रेमियों  ! जाग्रत् अवस्था में चेतन तत्त्व शिवनेत्र में रहता है और उसकी धाराएँ  दोनों आँखों में तथा दोनों आँखों से नीचे फैली हुई रहती हैं | स्वप्न में चेतन तत्त्व सिमटकर कण्ठ में आ जाता है और उसकी धाराएँ कण्ठ से नीचे फैली हुई रहती हैं | सुषुप्ति में चेतन तत्त्व सिमटकर हृदय में आ जाता है और उसकी धाराएँ हृदय से नीचे फैली हुई रहती हैं । जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं में चेतन तत्त्व आता - जाता रहता है और तीनों अवस्थाओं में उसकी धाराएँ नीचे मुख्यतः गुदा तक फैली हुई मानी जाती हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वप्न में चेतन तत्त्व आँखों से हट जाता है ; सुषुप्ति में वह आँखों और कण्ठ- दोनों से हट जाता है ; परन्तु उसकी धाराएँ जीवन भर किसी भी अवस्था में गुदा स्थान को छोड़ नहीं पातीं , मानो चेतन की धाराएँ यहाँ जकड़ी हुई हों । . ..... 


इस पोस्ट के बाद आने वाले पोस्ट LS04- 05 में कुंडलिनी और उसके स्थान के बारे में बताया गया है . उसे अवश्य पढ़ें. उस पोस्ट को पढ़ने के लिए    👉 यहां दबाएं



प्रभु प्रेमियों ! पिंड माही ब्रह्मांड पुस्तक में उपर्युक्त बातें निम्न प्रकार से प्रकाशित हैं-

पिण्ड में छह चक्र हैं

LS04- 04  पिण्ड में छह चक्र हैं 2

LS04- 04  पिण्ड में छह चक्र हैं 3


     प्रभु प्रेमियों ! 'पिंड माहिं ब्रह्मांड' पुस्तक के उपर्युक्त लेख से हमलोगों ने जाना कि   चक्र कितने प्रकार के होते हैं? सहस्त्रार चक्र के देवता कौन है? चक्रों का सही क्रम क्या हैं, सहस्त्रार चक्र, सात चक्र के रंग, शरीर के सात चक्र की जानकारी, सात चक्र के देवता, शरीर के सात चक्र कैसे जगाए, कुंडलिनी चक्र मंत्र, आज्ञा चक्र के नुकसान,  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना ईमेल द्वारा नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें और समझें। जय गुरु महाराज!!! 



     LS04 पिंड माहिं ब्रह्मांड ।। मनुष्य शरीर में विश्व ब्रह्मांड के दर्शन और सन्त-साहित्य के पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत जानकारी वाली पुस्तक है. इसके बारे में विशेष जानकारी के लिए  

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LS04- 04 पिण्ड में छह चक्र हैं || हठयोग के चक्र साधना और राजयोग साधना में क्या विशेषता है? LS04- 04  पिण्ड में छह चक्र हैं ||  हठयोग के चक्र साधना और राजयोग साधना में क्या विशेषता है? Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/27/2021 Rating: 5

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