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LS13 प्रभाती भजन || ७८ प्रभाती भजन और ९६ विविध भजनों सहित संतमत-सत्संग की स्तुति-प्रार्थना

LS13 प्रभाती भजन

      प्रभु प्रेमियों  ! लालदास साहित्य सीरीज के 13 वीं  पुस्तक  "प्रभाती भजन"  है. इसमें २४ संत-महात्माओं के चुने हुए ७८ प्रभाती भजन संकलित किये गये हैं। ये भजन भाव, छन्द, गेयता, प्रामाणिकता और प्रसिद्धि की दृष्टि से सबसे अच्छे हैं. ७८ प्रभाती भजनों के अतिरिक्त इस पुस्तिका में ९६ विविध भजन भी जोड़े गये हैं, जो बड़े ही गेय और मधुर हैं। संतमत सत्संगियों के लाभार्थ पुस्तिका के अंत में संतमत सत्संग की स्तुति - प्रार्थना, आरती और गुरु- कीर्त्तन के भी पद संकलित कर दिये गये हैं। आइए इस पुस्तक के बारे में जानकारी प्राप्त करें--

प्रभाती भजन

प्रभाती भजन की महिमा और 
संतमत सत्संग में भजन कीर्तन का महत्व


     प्रभु प्रमियों  !  प्रभाती भजन के बारे में पूज्यपाद बाबा श्री लालदास जी महाराज अपने संपादकीय वक्तव्य में लिखते हैं-  "प्रस्तुत 'प्रभाती भजन' नाम्नी पुस्तिका में २४ संत-महात्माओं के चुने हुए ७८ प्रभाती भजन संकलित किये गये हैं। यद्यपि खोज करने पर संत-महात्माओं के बहुत से प्रभाती भजन प्राप्त हुए, तथापि उनमें से जो मुझे भाव, छन्द, गेयता, प्रामाणिकता और प्रसिद्धि की दृष्टि से सबसे अच्छे लगे, उन्हीं को मैंने इस पुस्तिका में स्थान दिया है । पाँच महात्माओं के भजन उनकी अनुमति के बिना ही अपने ढंग से संपादित करके लिये हैं। इस अपराध के लिए उन महात्माओं और उनके श्रद्धालु-प्रेमियों से क्षमा-याचना करता हूँ। शेष संत-महात्माओं के पद अविकल रूप में उद्धृत कर लिये गये हैं।

     संतमत सत्संग के अनुयायी प्रभाती भजन गाने के बड़े प्रेमी और शौकीन पाये जाते हैं। वे सत्संग कार्यक्रम में प्रातःकाल बड़े प्रेम से और उत्साह के साथ प्रभाती भजन गाते हुए देखे गये हैं। उनकी प्रसन्नता और लाभ के लिए ही इस पुस्तिका की रचना और प्रकाशन का कष्ट उठाया गया है।

     जिस पद्य में प्रात:कालीन प्राकृतिक दृश्यों और परिस्थितियों का वर्णन हो अथवा जिस पद्य में प्रातःकाल जगने या जगकर ध्यान - भजन आदि कार्य करने की प्रेरणा दी गयी हो, वह प्रभाती, प्रातिक या भोर कहलाता है। चूँकि प्रातःकाल ही ऐसे पद्य का पाठ या गायन स्वाभाविक है, इसीलिए यह प्रातःकाल ही गाया जाता है ।

     स्वाभाविक नींद में जब हम होते हैं, तब हमें न अपने आपका, न अपने शरीर का और न बाह्य जगत् की कुछ सुधि होती है। इस तरह हम देखते हैं कि नींद अज्ञानता की दशा है; किसी ओर से बेखबर रहने की अवस्था है। इसी न्याय से संतों ने उसे भी सोया हुआ बतलाया है, जो सद्ज्ञान नहीं रखता अथवा जो परमात्मा की ओर से बेखबर है- " माया मुख जागे सबै, सो सूता कर जान । दरिया जागे ब्रह्म दिसि, सो जागा परमान ॥" ( संत दरिया साहब, मारवाड़ी )

     जब संसार में हमारी बहुत अधिक आसक्ति बढ़ जाती है, तब हमारी अज्ञानता भी बढ़ जाती है। आसक्ति और अज्ञानता को मोह भी कहते हैं। संतों ने अपने प्रभाती भजन में सर्वसामान्य को मोह नींद से भी जगने की प्रेरणा दी है।

     प्रभाती भजन सामान्यतः हम उसे कह सकेंगे, जिसमें 'जागना' क्रिया का किसी-न-किसी रूप में प्रयोग करके लोगों को जागने के लिए प्रेरित किया गया हो।

     जिस भजन में आनेवाले खतरे की ओर ध्यान दिलाया गया हो और उससे बचने या सावधान रहने के लिए भी कहा गया हो, वह 'चेतावनी' कहलाता है। 'चेतावनी' में भी जगाने का भाव सन्निहित है, फिर भी यह किसी भी समय गाया जा सकता है, जबकि प्रभाती केवल प्रातःकाल ही 

     जो राग प्रातः काल गाया जाता है या गाया जाना चाहिए, उसे प्रभाती राग कहते हैं। यह कोई आवश्यक नहीं है कि प्रभाती रागवाले पद्य में प्रातः कालीन प्राकृतिक दृश्यों और परिस्थितियों का वर्णन हो ही या जगाने की बात कही ही गयी हो ।

     ७८ प्रभाती भजनों के अतिरिक्त इस पुस्तिका में ९६ विविध भजन भी जोड़े गये हैं, जो बड़े ही गेय और मधुर हैं। संतमत सत्संगियों के लाभार्थ पुस्तिका के अंत में संतमत सत्संग की स्तुति - प्रार्थना, आरती और गुरु- कीर्त्तन के भी पद संकलित कर दिये गये हैं। इस पुस्तिका के निर्माण और प्रकाशन संबंधी सेवा से यदि हमारे सत्संगियों को कुछ भी लाभ पहुँच सका, तो मैं अपना परिश्रम सार्थक समझँगा । जय गुरु !

                                       - छोटेलाल दास २८-६-२००७ ई०"

इससे ज्यादा क्या कहा जा सकता है? अब आइए इस पुस्तक को निम्न चित्रों में दर्शन करें--


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