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LS65 नीति-वचन 05 || What can happen out of love? What is the benefit of life? Etc.'s words-

नीति-वचन  /  13. 14. 15.

     प्रभु प्रेमियों ! 'नीति-वचन' पुस्तक के इस भाग में हमलोग जानेंगे-- प्रेमवश क्या हो सकता है? जीवन का लाभ क्या है? सुख-दुख का कारण, पाप-पुण्य का स्रोत, शिष्टाचार, दुःखी होने का कारण, ध्यान, आदर इत्यादि बातों के साथ आप निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर भी पा सकते हैं-- लक्ष्य, मेरा लक्ष्य, एक उद्देश्य, लक्षित अर्थ, लक्ष्य निर्धारण, जीवन लाभ क्या है?   इत्यादि बातें.


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सूक्तियाँ लेखक बाबा लालदास जी महाराज

प्रेमवश क्या हो सकता है? जीवन का लाभ क्या है? आदि की सूक्तियाँ--


( १३


१ . किसी के प्रेमवश हमें वह काम भी करना पड़ता है , जो हम नहीं करना चाहते । 

२. यदि आपने न अपने कल्याण का कार्य किया , न दूसरों के कल्याण का कार्य , तो सौ वर्ष से अधिक आपके जीने से क्या लाभ !  

३ .जो दूसरों को सुख पहुँचाता है , वह सुख पाता है और जो दूसरों को दुःख पहुँचाता है , वह दुःख पाता है । 

४ . शास्त्र में सच ही कहा गया है कि दूसरों की भलाई करने के समान कोई पुण्य नहीं और दूसरों को कष्ट पहुँचाने के समान कोई पाप नहीं । 

५. परलोकवासी गुरु की कुर्सी की बगल में दूसरी कुर्सी लगाकर उसपर परलोकवासी शिष्य की तस्वीर नहीं रखी जानी चाहिए । प्रश्न है कि यदि शिष्य जीवित होते , तो क्या वे गुरु के समक्ष कुर्सी पर बैठना स्वीकार करते ! 

६. जहाँ गुरु की कुर्सी लगी हुई नहीं है , वहाँ कुर्सी लगाकर उसपर शिष्य का चित्र रखा जा सकता है । 

७ . जिसने जिस विषय पर सामान्य रूप से भी कभी चिंतन नहीं किया है , वह उस विषय पर सहसा क्या बोल सकेगा ! 

८ . जीवों को ईश्वर की ओर से कर्म करने की स्वतंत्रता मिली हुई है । यदि आप किसी को अच्छे या बुरे काम से विरत करना चाहें , तो वह क्रोध में आकर आपको किसी प्रकार की हानि पहुँचा सकता है । 

९ . यदि आप किसी को किसी कारणवश अपने पास आने का संदेश भेजवाते हैं , तो वह आपके पास आने में अपमान का भी बोध कर सकता है । 

१०. यदि कोई आपके पास बुलावा भेजने पर भी नहीं आए , तो इससे आप अपमान का अनुभव करेंगे ।


 ( १४ )


लेखक- पूजनीय बाबा श्री लालदास जी महाराज
ले- श्री लालदास जी व सेवकगण


१ . आप जिसकी भलाई किया करते हैं , यदि वह कभी आपका अनादर  कर बैठे , तो आप बड़े दुःखी होंगे । 

२ . जो आपकी सेवा करेगा , जिससे आप कोई सहायता लेंगे , जिसका उपहार आप स्वीकार करेंगे और जो आपसे प्रेम करेगा , उसकी ओर आपका ध्यान जाएगा ही । 

३. वैराग्यवान् साधक को इस प्रकार रहकर साधना करनी चाहिए कि उसका ध्यान इष्ट की ओर से हटकर दूसरी ओर न जाए । 

४. ध्यानशील व्यक्ति यदि अधिक यात्रा करेगा , तो उसके ध्यानाभ्यास में बाधा पहुँचेगी । 

५. यदि आप अहंकारी को आगे बढ़ाएँगे , तो एक दिन वह आपके ही प्राणों का घातक बन जाएगा । 

६. जब आप किसी को अपना शत्रु बनाएँगे , तो वह आपमें कोई दोष ढूँढ़ने लग जाएगा , जिसके आधार पर वह आपको संकट में डाल सके । 

७. यदि आपकी उद्दंडता की जानकारी लोगों को हो जाए , तो आप किसी के भी प्रिय नहीं रह पाएँगे । 

८. जिसे वर्षों तक प्रेम - आदर देने के बाद प्रेम - आदर देना छोड़ देंगे , वह आपका विरोधी हो जाएगा और आपको तंग करने का उपाय सोचने लग जाएगा । 

९ . बड़ों का प्रेम - आदर मिलने पर समाज में प्रतिष्ठा बढ़ जाती है , इसीलिए लोग बड़ों से संपर्क बनाये रखना चाहते हैं । 

१०. किसी से बहुत सहायता नहीं लेनी चाहिए ; किसी से सब दिन भी सहायता नहीं लेनी चाहिए ।


 ( १५


१. यदि आप स्वतंत्र रहना चाहते हैं , तो किसी से विशेष सहायता नहीं लीजिए । 

२. कर्म का सिद्धांत ऐसा अटल है कि कोई भी आपको आपके सारे बुरे कर्मफलों और सारी विपत्तियों से बचा नहीं सकता ; श्रीकृष्ण भी पांडवों को सारी विपत्तियों से बचा नहीं सके । 

३. आप किसी से यह मत कहिए कि मुझमें अमुक अवगुण नहीं है ; क्योंकि यदि कभी वह अवगुण आपमें आ जाएगा , तो आप उसके सामने लज्जित हो जाएँगे । 

४. पाप कर्म करना सरल है और पुण्य काम करना कठिन । सरल काम करना सब कोई पसंद करते हैं । 

५. जिससे आप सहायता लिया करते हैं , यदि आप उसे एक दिन फटकार लगा दें , तो वह बहुत दुःखी हो जाएगा । 

६ . पुलिस विभाग की नौकरी अच्छे संस्कार को बिगाड़नेवाली और दुष्ट संस्कार को उभाड़नेवाली होती है । 

७ . किसी भी परिस्थिति में धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए ; क्योंकि धर्म ही हमारी रक्षा करता है । 

८ . मनुष्य वही काम करता है , जिसे उसका मन चाहता है । भिन्न - भिन्न अवस्थाओं में प्राणी भिन्न - भिन्न प्रकार के व्यवहार तथा कर्म करते हैं । 

९ . जो अपने सिद्धांत को बदलता रहता है , वह कहीं भी आदर नहीं पाता और उसे कुछ प्राप्त भी नहीं होता । 

१०. यदि गुरु अपने सेवक शिष्य को डाँट - फटकार लगाकर अपने पास से हटा देते हैं , तो वह शिष्य सब दिन दुःखी रहा करता है ।

क्रमशः


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प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में  संस्कार, आत्मा की शांति के लिए, शांति का महत्व क्या है? धर्म की नीति क्या है? उपयोगी meaning in hindi, उपयोगी का वाक्य, लाभदायक,  इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.


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