नीति-वचन / 10. 11. 12.
प्रभु प्रेमियों ! 'नीति-वचन' पुस्तक के इस भाग में हमलोग जानेंगे-- बुरे संस्कार से बचने के कारक, शान्ति और प्रतिष्ठा, संतों की नीति, समाज के लिए उपयोगी, शक्तिमान्, अपने लक्ष्य पर ध्यान, गुरु की कृपा, अच्छी संगति, हृदय दुखाना, अत्यधिक कष्ट, स्तुति प्रार्थना का महत्व, इत्यादि बातों के साथ आप निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर भी पा सकते हैं-- संस्कार, आत्मा की शांति के लिए, शांति का महत्व क्या है? धर्म की नीति क्या है? उपयोगी meaning in hindi, उपयोगी का वाक्य, लाभदायक, इत्यादि बातें.
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अपने लक्ष्य पर ध्यान, गुरु की कृपा, अच्छी संगति, हृदय दुखाना इत्यादि की सूक्तिया--
( १० )
१. किसी बुरे संस्कार को जगाकर उसका दमन करना या उसे मिटा पाना कठिन हो जाता है ।
२. बुरी आदत छोड़ देने पर भी वह फिर कभी उभड़ सकती है , क्योंकि उसका संस्कार चित्त में अंकित रहता है ।
३ . प्रतिष्ठा के लिए मन की शान्ति वे ही खोते हैं , जिनके जीवन का लक्ष्य ही होता है प्रतिष्ठा की प्राप्ति करना ।
४ . जो मन की शान्ति चाहते हैं , वे प्रतिष्ठा की प्राप्ति के लिए अपने मन की शांति नहीं खोना चाहते ।
५ . दूसरे का कटु वचन सह लीजिए ; परन्तु दूसरे को कटु वचन मत कहिए । दूसरे के द्वारा किया गया अपमान सह लीजिए ; परन्तु दूसरे को अपमानित मत कीजिए । दूसरे के द्वारा दिया गया दुःख सह लीजिए ; परन्तु दूसरे को दुःखी मत कीजिए - यह संतों की नीति है ।
६. दुर्जन अपने को बड़ा और विशेष दिखलाता है , जब कि सज्जन अपने को छोटा और हीन ।
७. दूर रहनेवाले अपने सांसारिक प्रेमपात्र का स्मरण हमारे लिए सुखदायक नहीं , दुःखदायक होता है ।
८. आजकल रुपये और मोबाईल फोन युवक - युवतियों को बिगाड़ने के कारण बन गये हैं ।
९ . यदि आप चाहते हैं कि समाज में आपका आदर हो , तो आप समाज के लिए उपयोगी बनिए ।
१०. धर्म के पथ पर चलनेवाला व्यक्ति शक्तिमान् होता है और अधर्म के पथ पर चलनेवाला व्यक्ति शक्तिहीन ।
( 11 )
१. अपना लक्ष्य या कार्य जितनी शीघ्रता में हो सकें , पूरा कर लेना चाहिए ।
२. पूरा किये जानेवाले अपने कार्य की ओर हमारा विशेष खिंचाव होना चाहिए ।
३. दुकानदार की बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए , वह बुरी वस्तु को भी अच्छा बताकर बेच लेना चाहता है ।
४. ऐसा कभी विश्वास नहीं करना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ भी बोलता है , उसमें सच्चाई ही होती है ।
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६. हमारे अंदर अच्छे और बुरे- दोनों प्रकार के संस्कार होते हैं । अच्छी संगति में अच्छा संस्कार और बुरी संगति में बुरा संस्कार उभड़ जाता है ।
७ . हमें सदैव अच्छी संगति में रहना चाहिए , जिससे कि हमारे अंदर का कुसंस्कार जग न सके ।
८ . संतों की सेवा और संगति का सच्चा लाभ वही उठा पाता है , जो छोटा बनकर रहता है ।
९ . किसी का हृदय सोच - समझकर दुखाइए , जिसका हृदय आप एक बार भी दुखाएँगे , वह जीवन भर के लिए आपसे रुष्ट हो जाएगा ।
१०. जो शिष्य गुरु के मना करने पर भी पाप कर्म से विरत नहीं होता , वह गुरु को अत्यधिक कष्ट पहुँचाता है ।
( १२ )
१. दूसरों के पाप कर्मों का समर्थन करनेवाला व्यक्ति समाज में प्रशंसनीय नहीं होता ।
२. यदि आप किसी से कोई काम उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी प्रकार का दबाव डालकर कराते हैं , तो वह आपपर प्रसन्न नहीं होगा ।
३. पाप कर्म करने में जो आनंद आता है , उससे अच्छा आनंद मिलता है पाप कर्म को छोड़ देने पर ।
४. जबतक लक्ष्य पूरा करने में व्यक्ति लगा रहता है , तबतक वह आनंदित रहता है ; जब उसका लक्ष्य पूरा हो जाता है , तब उसका मन सामान्य हो जाता है ।
५. अपने द्वारा कभी किया गया गुरु जन का अपमान जब कभी स्मरण में आता है , तब मन बड़ा खिन्न हो उठता है ।
६. हमें ऐसा कुछ प्रयत्न करना चाहिए , जिससे कि कोई हमें अपने प्रेम के बंधन से पूरी तरह बाँध न ले और हमसे मनमाना कोई काम करा न सके ।
७ . लोभ के साथ परेशानी जुड़ी हुई है । लोभ नहीं छूटता है , तो परेशानी भी नहीं छूटती है ।
८ . जो काम करना है , उसे प्रत्येक दिन करना चाहिए यदि समय का अभाव हो , तो अल्प काल तक भी प्रत्येक दिन अवश्य कर लेना चाहिए ।
९. स्तुति प्रार्थना प्रत्येक दिन नियत समय पर कर लेनी चाहिए ; इससे आत्मबल, मानसिक एकाग्रता तथा हृदय की पवित्रता बढ़ती है, बुराई से बचने की शक्ति प्राप्त होती है , विपत्ति से रक्षा होती है और सारा दैनिक कार्य सुचारू रूप से पूरा होता है ।
१०. समय पर और अच्छी तरह दिनचर्या पूरी न होने पर मन की प्रसन्नता जाती रहती है ।
क्रमशः
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