नीति-वचन / 13. 14. 15.
प्रभु प्रेमियों ! 'नीति-वचन' पुस्तक के इस भाग में हमलोग जानेंगे-- प्रेमवश क्या हो सकता है? जीवन का लाभ क्या है? सुख-दुख का कारण, पाप-पुण्य का स्रोत, शिष्टाचार, दुःखी होने का कारण, ध्यान, आदर, इत्यादि बातों के साथ आप निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर भी पा सकते हैं-- लक्ष्य, मेरा लक्ष्य, एक उद्देश्य, लक्षित अर्थ, लक्ष्य निर्धारण, जीवन लाभ क्या है? इत्यादि बातें.
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प्रेमवश क्या हो सकता है? जीवन का लाभ क्या है? आदि की सूक्तियाँ--
( १३ )
१ . किसी के प्रेमवश हमें वह काम भी करना पड़ता है , जो हम नहीं करना चाहते ।
२. यदि आपने न अपने कल्याण का कार्य किया , न दूसरों के कल्याण का कार्य , तो सौ वर्ष से अधिक आपके जीने से क्या लाभ !
३ .जो दूसरों को सुख पहुँचाता है , वह सुख पाता है और जो दूसरों को दुःख पहुँचाता है , वह दुःख पाता है ।
४ . शास्त्र में सच ही कहा गया है कि दूसरों की भलाई करने के समान कोई पुण्य नहीं और दूसरों को कष्ट पहुँचाने के समान कोई पाप नहीं ।
५. परलोकवासी गुरु की कुर्सी की बगल में दूसरी कुर्सी लगाकर उसपर परलोकवासी शिष्य की तस्वीर नहीं रखी जानी चाहिए । प्रश्न है कि यदि शिष्य जीवित होते , तो क्या वे गुरु के समक्ष कुर्सी पर बैठना स्वीकार करते !
६. जहाँ गुरु की कुर्सी लगी हुई नहीं है , वहाँ कुर्सी लगाकर उसपर शिष्य का चित्र रखा जा सकता है ।
७ . जिसने जिस विषय पर सामान्य रूप से भी कभी चिंतन नहीं किया है , वह उस विषय पर सहसा क्या बोल सकेगा !
८ . जीवों को ईश्वर की ओर से कर्म करने की स्वतंत्रता मिली हुई है । यदि आप किसी को अच्छे या बुरे काम से विरत करना चाहें , तो वह क्रोध में आकर आपको किसी प्रकार की हानि पहुँचा सकता है ।
९ . यदि आप किसी को किसी कारणवश अपने पास आने का संदेश भेजवाते हैं , तो वह आपके पास आने में अपमान का भी बोध कर सकता है ।
१०. यदि कोई आपके पास बुलावा भेजने पर भी नहीं आए , तो इससे आप अपमान का अनुभव करेंगे ।
( १४ )
ले- श्री लालदास जी व सेवकगण |
१ . आप जिसकी भलाई किया करते हैं , यदि वह कभी आपका अनादर कर बैठे , तो आप बड़े दुःखी होंगे ।
२ . जो आपकी सेवा करेगा , जिससे आप कोई सहायता लेंगे , जिसका उपहार आप स्वीकार करेंगे और जो आपसे प्रेम करेगा , उसकी ओर आपका ध्यान जाएगा ही ।
३. वैराग्यवान् साधक को इस प्रकार रहकर साधना करनी चाहिए कि उसका ध्यान इष्ट की ओर से हटकर दूसरी ओर न जाए ।
४. ध्यानशील व्यक्ति यदि अधिक यात्रा करेगा , तो उसके ध्यानाभ्यास में बाधा पहुँचेगी ।
५. यदि आप अहंकारी को आगे बढ़ाएँगे , तो एक दिन वह आपके ही प्राणों का घातक बन जाएगा ।
६. जब आप किसी को अपना शत्रु बनाएँगे , तो वह आपमें कोई दोष ढूँढ़ने लग जाएगा , जिसके आधार पर वह आपको संकट में डाल सके ।
७. यदि आपकी उद्दंडता की जानकारी लोगों को हो जाए , तो आप किसी के भी प्रिय नहीं रह पाएँगे ।
८. जिसे वर्षों तक प्रेम - आदर देने के बाद प्रेम - आदर देना छोड़ देंगे , वह आपका विरोधी हो जाएगा और आपको तंग करने का उपाय सोचने लग जाएगा ।
९ . बड़ों का प्रेम - आदर मिलने पर समाज में प्रतिष्ठा बढ़ जाती है , इसीलिए लोग बड़ों से संपर्क बनाये रखना चाहते हैं ।
१०. किसी से बहुत सहायता नहीं लेनी चाहिए ; किसी से सब दिन भी सहायता नहीं लेनी चाहिए ।
( १५ )
१. यदि आप स्वतंत्र रहना चाहते हैं , तो किसी से विशेष सहायता नहीं लीजिए ।
२. कर्म का सिद्धांत ऐसा अटल है कि कोई भी आपको आपके सारे बुरे कर्मफलों और सारी विपत्तियों से बचा नहीं सकता ; श्रीकृष्ण भी पांडवों को सारी विपत्तियों से बचा नहीं सके ।
३. आप किसी से यह मत कहिए कि मुझमें अमुक अवगुण नहीं है ; क्योंकि यदि कभी वह अवगुण आपमें आ जाएगा , तो आप उसके सामने लज्जित हो जाएँगे ।
४. पाप कर्म करना सरल है और पुण्य काम करना कठिन । सरल काम करना सब कोई पसंद करते हैं ।
५. जिससे आप सहायता लिया करते हैं , यदि आप उसे एक दिन फटकार लगा दें , तो वह बहुत दुःखी हो जाएगा ।
६ . पुलिस विभाग की नौकरी अच्छे संस्कार को बिगाड़नेवाली और दुष्ट संस्कार को उभाड़नेवाली होती है ।
७ . किसी भी परिस्थिति में धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए ; क्योंकि धर्म ही हमारी रक्षा करता है ।
८ . मनुष्य वही काम करता है , जिसे उसका मन चाहता है । भिन्न - भिन्न अवस्थाओं में प्राणी भिन्न - भिन्न प्रकार के व्यवहार तथा कर्म करते हैं ।
९ . जो अपने सिद्धांत को बदलता रहता है , वह कहीं भी आदर नहीं पाता और उसे कुछ प्राप्त भी नहीं होता ।
१०. यदि गुरु अपने सेवक शिष्य को डाँट - फटकार लगाकर अपने पास से हटा देते हैं , तो वह शिष्य सब दिन दुःखी रहा करता है ।
क्रमशः
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