नीति-वचन / 7. 8. 9.
प्रभु प्रेमियों ! 'नीति-वचन' पुस्तक के इस भाग में हमलोग जानेंगे-- संपत्ति विचार, कर्म, ज्ञान, दोष, सत्य, कर्तव्य, वचन का प्रयोग, शांति कौन पाता है? कपट और दंभ, गलत काम, यशस्वी गृहस्थी कौन है? गलती से कौन बचेगा? इत्यादि बातों के साथ आप निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर भी पा सकते हैं-- लेखक के अनुसार संपत्ति के प्रकार, ज्ञान से आप क्या समझते हैं? ज्ञान क्या है ज्ञान के प्रकार? ज्ञान की विशेषता क्या है? ज्ञान की उत्पत्ति कैसे हुई? कर्तव्य की परिभाषा क्या है? कर्तव्य कैसे लिखते हैं? 11 मूल कर्तव्य क्या है? मनुष्य का परम कर्तव्य क्या है? इत्यादि बातें.
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संपत्ति विचार, कर्म, ज्ञान, दोष, सत्य, कर्तव्य, वचन का प्रयोग इत्यादि पर सूक्तियाँ-+
( ७ )
१. हम अपनी प्राप्त संपत्ति में ही संतुष्ट रहें , पड़ोसी की विपुल संपत्ति की ओर हम दृष्टि नहीं डालें ।
२. पापियों को निम्न योनियों में भेजकर परमात्मा उनकी पाप - वृत्तियों को शिथिल करते हैं , जिस प्रकार किसी देश की सरकार अपराधियों को जेल में डालकर उनकी अपराध - वृत्ति को शिथिल करती है ।
३. यदि मनुष्यों से कर्म करने की स्वतंत्रता का अधिकार छीन लिया जाए , तो वे आत्महत्या कर लेंगे ।
४ . अपने ज्ञान का क्षेत्र बढ़ाने के लिए हमें विभिन्न विषयों की पुस्तकों का अध्ययन करते रहना चाहिए ।
५ . जो आपके किसी दोष के लिए आपकी हँसी उड़ाया करता है , वह आपके उस दोष से युक्त हो जाएगा और आप उस दोष से मुक्त हो जाएँगे ।
६ . सत्य बोलने पर भी कभी - कभी हमें हानि उठानी पड़ती है , इसलिए हमें बहुत सोच - समझकर कोई सत्य बोलना चाहिए ।
७ . किसी - किसी अवसर पर सत्य बोलने पर बहुत से लोग हमारे शत्रु हो जा सकते हैं ।
८. जहाँ जिस सत्य के बोलने पर अपनी या समाज की बड़ी हानि होने की संभावना हो , वहाँ वह सत्य नहीं बोलना ही अच्छा है ।
९ . यदि किसी को कुछ समझाना हमारा कर्तव्य बनता है , तो कष्ट तथा हानि उठाकर भी हमें उसे समझाना चाहिए ।
१०. जब मनुष्य अनुचित काम करना छोड़ देता है , तब उसे किये गये अनुचित काम के लिए पछतावा होने लगता है ।
( ८ )
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लेखक- श्री लालदास जी महाराज व सेवकगण |
२. जीवन का कोई बड़ा लक्ष्य पूर्ण हो जाने पर भी मनुष्य शान्ति नहीं शान्ति पाता ; शान्ति तो ईश्वर की भक्ति करनेवाले को मिलती है ।
३. शान्ति तो वह पाता है , जो सत्संग करता है , सदाचार का पालन करता है , संतोष अपनाता है और ध्यानाभ्यास करता है ।
४. कपट में सच्चाई छिपायी जाती है और दंभ में वह विशेषता प्रकट की जाती है या कही जाती है , जो वास्तव में हममें नहीं है ।
५. जो दूसरों के दोषों को प्रकट किया करता है , वह चरित्रवान् बनकर नहीं रह सकता ।
६. भिन्न - भिन्न लोगों से मिलने - जुलने से और भिन्न - भिन्न लोगों के अन्न खाने से मन पर भिन्न - भिन्न प्रभाव पड़ते हैं ।
७. जीवन की किसी एक समस्या का समाधान हो जाने पर आनेवाली सभी समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता ।
८. किसी के पास धरोहर के रूप में कुछ रखना वैसा ही है , जैसा किसी के मुँह में धरोहर के रूप में मिठाई रखना ।
९ . हम समाज के जिस व्यक्ति का तिरस्कार करते आ रहे हैं , हो सकता है , भविष्य में कभी हमें उसका सत्कार करना पड़ जाए ।
१०. जो अपने ज्ञान का अहंकार नहीं रखता , उसके ज्ञान का द्वार खुला हुआ रहता है ।
( ९ )
१. यदि बुरे काम की ओर हमारे मन का बारंबार खिंचाव होता रहेगा , तो उस बुरे काम से हमारे लिए बच पाना कठिन हो जाएगा ।
२ . आप जिस समाज में रहना चाहते हैं , यदि उस समाज के मुखिया से दबकर नहीं रहेंगे , तो वह आपको जबरन् दबाकर रखना चाहेगा या वह आपको समाज से भगा देना चाहेगा ।
३ . लक्ष्य के पथ पर निरंतर चलते रहिए । यदि बाधा आ जाए , तो उसका सामना कीजिए और जब बाधा टल जाए , तो फिर चलना आरंभ कर दीजिए ।
४. एक दिन भी आपकी सहायता करके कोई आपको जीवन भर के लिए अपना ऋणी बना ले सकता है ।
५. पुस्तक पर आश्रित होनेवाले को नहीं , गुरु पर आश्रित होनेवाले को ज्ञान होता है ।
६. यदि आप किसी के ऋणी बनने से बचना चाहते हैं , तो उससे किसी प्रकार की सहायता नहीं लीजिए ।
७. वह व्यक्ति धन्य है , जो अपनी पत्नी के साथ रहते हुए भी संयम का पालन करता है ।
८. जो वर्तमान समय में पाप कर्म करना न छोड़कर भविष्य में छोड़ने की बात करता है , वह पाप कर्म कभी भी नहीं छोड़ पाएगा ।
९ . किसी बुरी आदत को प्रारंभ में ही छोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए । बुरी आदत के परिपक्व या पुरानी हो जाने पर उसका त्याग करना कठिन हो जाता है । -
१०. “ कुछ दिन पाप कर्म कर लेता हूँ , फिर छोड़ दूँगा " - ऐसा सोचकर भी पाप कर्म में प्रवृत्त नहीं होना चाहिए ।
क्रमशः
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![LS65 नीति-वचन 03 || Property, thought, action, knowledge, fault, truth, duty, etc.](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKbtR0PIzrRzIeyn1jYH101Np7ssd_J4DhcPelFmsigKPrEM14hIsYFmwzypLwDCc8kUaPBu_IUQP_rQIdrn25775tiUJlbKKDW2GBKJYAu0BbJvyY0W4Th54JR6zsBhfCl6XTMcv0gDGrv-ESCgpLUFhMjCfbAdSR9yx-HLUoONTVTVwNcVIPyUTyrA/s72-c/%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%B5%E0%A4%9A%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%87%20%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%95.jpg)
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सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।