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LS14 छंद-योजना 11 || अनुस्वार युक्त शब्दों, विसर्गयुक्त शब्दों,संयुक्त वर्णों हलन्त शब्दों के मात्रा गिनती

महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना / 11

     प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मँहीँ पदावली की छंद योजना' पुस्तक के इस भाग में हम लोग जानेंगे कि अनुस्वार युक्त शब्दों के मात्रा कैसे गिनते हैं? उदाहरण सहित चर्चा, विसर्गयुक्त युक्त शब्दों के मात्रा कैसे गिनते हैं? उदाहरण सहित चर्चा,  हलन्त युक्त शब्दों के मात्रा कैसे गिनते हैं? उदाहरण सहित चर्चा,  संयुक्त वर्णों के मात्रा कैसे गिनते हैं? उदाहरण सहित चर्चा, छन्द के किसी चरण के शब्द में ह्रस्व स्वर को दीर्घ स्वर और दीर्घ स्वर को ह्रस्व स्वर  किस अवस्था में किया जाता है एवं अन्य महत्वपूर्ण बातें 


इस पोस्ट के पहले बाले भाग में  'छंदों के मात्रा गिनती ' के बारे में बताया गया है उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


छंद-योजना पर चर्चा करते गुरुदेव और लेखक


अनुस्वार युक्त शब्दों, विसर्गयुक्त शब्दों,संयुक्त वर्णों हलन्त शब्दों के मात्रा गिनती


पिछले पोस्ट का  शेषांश-

     → किसी शब्द के अंतर्गत अनुस्वार ( ' ) ङ , ञ , ण् न् और म् में से किसी एक की तरह उच्चरित हो सकता है ; देखें - गंगा ( गङ्गा ) , चंचल ( चञ्चल ) , दंड ( दण्ड ) , तंतु ( तन्तु ) , अंब ( अम्ब ) , संयम ( सज्यम ) , संरक्षक ( सणक्षक ) , संलग्न ( सन्लग्न ) , अंश ( अञ्श ) , संसार ( सन्सार ) , सिंह ( सिङ्ह ) । अनुस्वार का जब उच्चारण किया जाता है , तब जिस स्वर पर वह होता है , उसपर जोर पड़ता है , इसीलिए अनुस्वार जिस स्वर पर होता है , वह चाहे ह्रस्व , दीर्घ या संयुक्त हो , उसकी दो मात्राएँ गिनी जाती हैं । उदाहरण--

 शंका ( 55 ) ४ मात्राएँ । गांगेय ( 551 ) ५ मात्राएँ ।  ईंधन ( 511 ) ४ मात्राएँ । वांछा ( 55 ) ४ मात्राएँ ।  उंछ ( 51 ) ३ मात्राएँ । ईंगुदी ( 515 ) ५ मात्राएँ । ऐंद्रिय ( 511 ) ४ मात्राएँ । अंकित ( SII ) ४ मात्राएँ । आंतर ( 511 ) ४ मात्राएँ ।  ओंकार ( 551 ) ५ मात्राएँ ।  आकांक्षा  ( 555 ) ६ मात्राएँ ।  

    सभी स्वर अल्पप्राण होते हैं । जब कोई स्वर महाप्राण की तरह उच्चरित किया जाता है , तब लिखावट में उसका महाप्राणत्व सूचित करने के लिए उसकी दायीं ओर विसर्ग ( :) लगाया जाता हैमहाप्राण स्वर का जब उच्चारण किया जाता है , तब उसके साथ झटके के साथ साँस बाहर निकलती है ; अ: का उच्चारण करके देखा जा सकता है । अ अल्पप्राण स्वर है , तो अः महाप्राण । चूँकि किसी भी विसर्गयुक्त स्वर का उच्चारण झटके के साथ होता है , इसीलिए किसी भी विसर्गयुक्त स्वर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं । उदाहरण--

नमः ( IS) ३ मात्राएँ ।  दुःख  ( SI ) ३ मात्राएँ । अतः ( IS) ३ मात्राएँ ।  निःसृत ( SII ) ४ मात्राएँ ।  प्रथमः ( 115 ) ४ मात्राएँ ।

      जिस व्यंजन के अंत में कोई स्वर लगा हुआ नहीं होता है अर्थात् जो शुद्ध व्यंजन होता है , लिखावट में उसके अंत में नीचे एक छोटी - सी तिरछी रेखा ( ् ) दी जाती है , जिसे हल् कहते हैं । जिस व्यंजन के अंत में नीचे हल् लगा हुआ होता है , उसे हलन्त व्यंजन कहते हैं ; जैसे-- ' सत् ' में ' तू ' हलन्त व्यंजन है । हलन्त व्यंजन प्राय : संस्कृत शब्दों के अंत में आते हैं । जिस शब्द में हलन्त व्यंजन होता है , जब उसका उच्चारण किया जाता है , तो हलन्त व्यंजन के पूर्व के अक्षर पर जोर पड़ता है । इसीलिए हलन्त व्यंजन के पूर्व चाहे कोई भी स्वर हो , उसकी दो मात्राएँ गिनी जाती हैं । उदाहरण--    

सम्राट् ( 150 ) ४ मात्राएँ । क्वचित् ( 150 ) ३ मात्राएँ । कदाचित् ( 1550 ) ५ मात्राएँ । सत् ( 50 ) २ मात्राएँ । जगत् ( 150 ) ३ मात्राएँ ।  राजन् ( 550 ) ४ मात्राएँ । महत् ( 150 ) ३ मात्राएँ । वरन् ( 150 ) ३ मात्राएँ । अर्थात् ( 550 ) ४ मात्राएँ ।  महान् ( 150 ) ३ मात्राएँ । भगवान् ( 1150 ) ४ मात्राएँ । विद्वान्  ( 550 )  ४ मात्राएँ ।  

गंभीर चिंतन, ज्ञान के बारे में, लेखक का गंभीर चिंतन छंद ज्ञान के बारे में
 संत लालदास  

     हलन्त व्यंजन के बाद जब कोई वर्ण आता है , तब लिखावट में हलन्त व्यंजन हल् (् ) त्यागकर या कुछ रूप बदलकर बाद वाले वर्ण से जुड़ जाता है और संयुक्त वर्ण कहलाने लग जाता है ; जैसे पक्का ( पक्का ) , सत्कर्म ( सत्कर्म ) , विप्लव ( विप्लव ) , मर्म ( मर्म ) , क्रम ( क्रम ) , गंगा ( गङ्गा ) , श्रीमद्भगवद्गीता ( श्रीमद्भगवद्गीता ) , विश्व ( विश्व ) , श्री ( श्री ) , श्वास ( श्वास ) , त्राण ( तूराण ) , क्षत्रिय ( क्षत्रिय ) , ज्ञान ( ज्ञान ) । ' गङ्गा ' में ङ् , ' सत्कर्म ' में तू , ' मर्म में र् और विश्व में श् संयुक्त अक्षर है । इस तरह हम देखते हैं कि संयुक्त वर्ण भी हलन्त व्यंजन ही है , जो शब्द के आदि या मध्य में आता है । यदि उच्चारण करने पर संयुक्त अक्षर के पूर्व आए ह्रस्व स्वर पर जोर पड़ता हो , तो उसकी दो मात्राएँ गिनी जाती हैं । उदाहरण--

कल्प ( 51 ) ३ मात्राएँ । श्रद्धा ( 55 ) ४ मात्राएँ ।  सत्कर्म  ( 551 ) ५ मात्राएँ ।  दन्त ( 51 ) ३ मात्राएँ ।  सन्त ( 51 ) ३ मात्राएँ ।  इन्द्रिय ( 511 ) ४ मात्राएँ ।  गान्धारी ( 555 ) ६ मात्राएँ ।  सर्प ( S1 ) ३ मात्राएँ । कम्प ( 51 ) ३ मात्राएँ ।  सत्य ( 51 ) ३ मात्राएँ ।  भक्त ( 51 ) ३ मात्राएँ । दुष्ट ( 51 ) ३ मात्राएँ । धर्म ( 51 ) ३ मात्राएँ । अर्थात् ( 550 ) ४ मात्राएँ । इत्यादि ( 551 ) ५ मात्राएँ ।

     किसी शब्द का उच्चारण करने पर यदि उसके संयुक्त वर्ण के पूर्व के लघु वर्ण पर जोर नहीं पड़ता हो , तो उस लघु वर्ण की एक ही मात्रा गिनी जाएगी , दो नहीं , जैसे-- ' कुम्हार ' का कु , ' कन्हैया ' का क , ' तुम्हारा ' का तु और ' उन्होंने ' का उ लघु वर्ण ही माना जाएगा और उसकी एक ही मात्रा गिनी जाएगी ; क्योंकि कु , क , तु और उपर संयुक्त अक्षर के कारण कोई जोर नहीं पड़ता । कुछ और उदाहरण देखे जा सकते हैं--

 कुल्हाड़ी ( 155 ) ५ मात्राएँ । दुल्हन ( 111 ) ३ मात्राएँ । विश्वास ( 151 )  ४ मात्राएँ ।  विज्ञान ( 151 ) ४ मात्राएँ । विन्यास ( 151 )  ४ मात्राएँ । अभ्यास ( 151 )  ४ मात्राएँ ।  अवज्ञा ( 115 ) ४ मात्राएँ । अत्यल्प ( 151 ) ४ मात्राएँ । देवन्ह ( 512 )  ४ मात्राएँ । अद्रोह ( 151 ) ४ मात्राएँ । मल्हार ( 151 )  ४ मात्राएँ । कुम्हलाना ( ।।ऽऽ ) ६ मात्राएँ ।

     हिन्दी शब्दों में यदि ह के साथ न् , म् या ल् संयुक्त हो , तो इनके पूर्व के वर्ण पर उच्चारण के समय जोर नहीं पड़ता । इसी तरह य , र , और व से संयुक्त वर्ण के पूर्व के अक्षर पर प्रायः जोर नहीं पड़ता । यदि विन्यास , अभ्यास और अत्यल्प का उच्चारण क्रमशः विन्यास , अभ्भ्यास और अत्त्यल्प की तरह किया जाए , तो पूर्व का वर्ण वि और अ दीर्घ माने जाएँगे । ' अमृत ' में तीन मात्राएँ हैं ; यदि ' अमृत ' ' अम्मृत की तरह उच्चरित किया जाए , तो आदि वर्ण अ दीर्घ माना जाएगा । ' देश - प्रेम ' का उच्चारण करते हुए यदि श पर जोर डाला जाए , तो वह गुरु हो जाएगा , अन्यथा लघु ही रहेगा । हिन्दी में केवल शब्द के अंतर्गत ही जोर पड़ने पर संयुक्त अक्षर के पूर्व का लघु अक्षर दीर्घ माना जाता है । ' अचल करौं तनु राखहु प्राना । ' इस चरण में प्रा ' के पूर्व आया हुआ ' हु ' दीर्घ नहीं माना जाएगा ; परंतु ' मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरम् । ' इस संस्कृत छंद में ' प्र ' के पूर्व का ' टि ' दीर्घ ही माना जाएगा । 

     आवश्यकता पड़ने पर छंद के चरण का अंतिम लघु वर्ण भी कहीं - कहीं गुरु मान लिया जाता है । 

     यदि छन्द के किसी चरण के शब्द में ह्रस्व स्वर हो और गायन के समय वह दीर्घ की तरह उच्चरित होता हो , तो उसकी दो मात्राएँ ली जाएँगी ; जैसे रघुपति राघव राजा राम । पतित पावन सीताराम ॥ ये दो पंक्तियाँ चौपई के दो चरण हैं । चौपई के प्रत्येक चरण में १५ मात्राएँ होती हैं और चरणान्त में गुरु - लघु । उपरिलिखित चौपई के दूसरे चरण में यद्यपि ' पतित ' शब्द लिखा हुआ है , तथापि गाते समय इसका उच्चारण ' पतीत ' की तरह होता है ; चरण की १५ मात्राएँ पूरी करने के लिए ऐसा होना भी उचित ही है । "श्री सद्गुरु की सार शिक्षा , याद रखनी चाहिए ।" यह चरण हरिगीतिका छंद का है । इस छंद के चरण में १६-१२ पर यति के साथ २८ मात्राएँ होती हैं और अंत में लघु - गुरु । ऊपर के हरिगीतिका छंद के चरण में ' सद्गुरु ' का उच्चारण ' सद्गुरू ' की तरह करना होगा , तभी २८ मात्राएँ पूरी होंगी । यदि छंद के किसी चरण के शब्द में दीर्घ स्वर हो ; परंतु उसका उच्चारण ह्रस्व की तरह करने पर ही चरण की मात्राएँ पूरी होती हों , तो उस दीर्घ स्वर की १ ही मात्रा गिनी जाएगी ; जैसे निम्नलिखित चरण में अपनी का उच्चारण ' अपनि ' की तरह करने पर ही चरण की मात्राएँ पूरी होती हैं 'अपनी भगतिया सतगुरु साहब , मोहि कृपा करि देहु हो ।' छंद के किसी चरण में जितनी मात्राएँ होनी चाहिए , यदि उनसे अधिक होती हैं , तो गायक चरण को शीघ्रता से गाकर अपेक्षित मात्राएँ पूरी कर लेते हैं , जैसे--"जाहिर जहूर सतगुरु देवि साहब , भेद बतावर्यं खासा । "बाबा देवी साहब परगट सतगुरु,  'मँहीँ' जा पद बलि जाहिं ।"

     ऊपर के पहले चरण के रेखांकित अंश में १६ मात्राएँ होनी चाहिए ; परंतु १६ से अधिक हैं।  इसी तरह दूसरे चरण के आरंभिक अंश में १६ मात्राएँ और अंतिम अंश में ११ मात्राएँ होनी चाहिए; परंतु इनसे अधिक हैं । ऐसे चरण की मात्राएँ गायक शीघ्रता से गाकर पूरी कर लेते हैं । ∆


इस पोस्ट के बाद 'वर्ण और मात्रिक गण' का बर्णन हुआ है उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में  मात्राओं के प्रकार? मात्राओं की गणना के नियम, मात्राओं की गणना कैसे की जाती है? शब्द में कितनी मात्राएं हैं? त्र में कितनी मात्रा होती है? कविता में कितनी मात्राएं होती है?मात्राभार गणना विस्तृत कविता, मात्रा के आधार पर स्वर, स्वर की मात्रा, अमृत शब्द में मात्रा भार, स्वर की मात्रा के शब्द,  इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.



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