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LS14 छंद-योजना 10 || छंदशास्त्र में मात्रा कितनी है और मात्रा गिनती के सही-सही सामान्य नियम

महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना / 10

     प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मँहीँ पदावली की छंद योजना' पुस्तक के इस भाग में हम लोग जानेंगे कि छंदशास्त्र में मात्रा किसे कहते हैं? मात्रा का छंद में क्या महत्व है? ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर किसे कहते हैं? विविध प्रकार के ह्रस्व स्वर,  दीर्घ स्वर,  संयुक्त स्वर और प्लुत स्वर  को उदाहरण से समझाना, मात्रा कितने अक्षरों तक  हो सकता है? कविता में मात्रा मिलाना कितना जरूरी है? कुछ छंद के मात्रा को उदाहरण सहित समझावे. कविता की मात्रा से कविता के कौन-कौन गुण बढते हैं? मात्राओं के प्रकार? मात्राओं की गणना के नियम, हिन्दी में मात्रा कितनी है और मात्रा की गणना कैसे, मात्राओं की गणना, मापिक छंदों में मात्रा गणनाएँ और उसकी सही-सही गिनती, मात्राओं की गणना का सामान्य नियम,  इत्यादि बातें.  


इस पोस्ट के पहले बाले भाग में  'छंद में गति का महत्व' के बारे में बताया गया है उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


छंद-योजना पर चर्चा करते गुरुदेव और लेखक


छंदशास्त्र में मात्रा कितनी है और मात्राओं सही-सही गिनती के सामान्य नियम-


 मात्रा और उसके गिनने के नियम : 

     छंद के चरण की रचना इस तरह की जाती है कि उसके पाठ में एक निश्चित समय लगे । इस निश्चित समय का निर्धारण चरण में कुछ मात्राओं या वर्णों की योजना के द्वारा किया जाता है । मात्रिक छंद मात्राओं के आधार पर और वर्णिक छंद वर्णों के आधार पर रचा जाता है । ' मात्रा ' का सामान्य अर्थ है - परिमाण , तौल , माप आदि और ' वर्ण ' का सामान्य अर्थ है - स्वर और व्यंजन- दोनों अक्षर ; परंतु छंदःशास्त्र में मात्रा और वर्ण के कुछ  विशेष अर्थ हैं । इसलिए कविता बनाने के अभिलाषियों को यह जानकारी अवश्य रखनी चाहिए कि मात्रा किसे कहते हैं , मात्रा गिनने के नियम क्या हैं , वर्ण किसे कहते हैं और मात्रा तथा वर्ण में क्या अंतर है । 

     ' ह्रस्व ' का अर्थ है - छोटा , थोड़ा । व्याकरण में अ , इ , उ , ऋ और लृ - ये पाँच ह्रस्व स्वर कहलाते हैं ; क्योंकि इनमें से प्रत्येक के उच्चारण में कम - से - कम समय लगता है । ' दीर्घ ' का अर्थ है - लम्बा , लंबे समय ( अवधि ) का । जब ह्रस्व स्वर का इस तरह उच्चारण किया जाता है कि उसमें दूना समय लगे , तब उसका दीर्घ रूप प्राप्त होता है । ह्रस्व स्वर का दीर्घ रूप क्रमश : इस प्रकार है- आ ( अ + अ ) , ई ( इ + इ ) , ऊ ( उ + उ ) , ॠ ( ऋ + ऋ ) और ऌ , ( लृ + लृ ) । 

     ए , ओ , ऐ और औ - ये चार संयुक्त स्वर कहलाते हैं , क्योंकि ये दो स्वरों की संधि से बने हैं , जैसे - अ + इ = ए । आ + इ = ए । आईए अ + उ ओ आ + उ ओ | आ + ऊ - ओ । अ + ए - ऐ । आ + ए = ऐ । आ + ऐऐ । अ + ओ औ आ ओ औ । आ + औऔ । कुछ विद्वान् संयुक्त स्वरों को भी दीर्घ स्वरों के ही अंतर्गत मानते हैं । 

पदावली' की छंद-योजना के लेखक पूज्य बाबा श्री लालदास जी महाराज
लेखक बाबा लालदास

     शुद्ध व्यंजन के साथ जबतक कोई स्वर नहीं मिलता , तबतक उसका स्वतंत्र रूप से उच्चारण करना असंभव है । हाँ , शब्द में आए शुद्ध व्यंजन का उच्चारण करना संभव हो पाता है ; जैसे ' सत् ' में तू का उच्चारण सहजता से किया जाता है । जब कोई स्वर किसी शुद्ध व्यंजन से मिलता है , तब वह अपना रूप बदल लेता है । इस बदले हुए रूप को स्वर की मात्रा या स्वर का मात्रिक रूप कहते हैं । स्वर का बदला हुआ रूप कैसा होता है ; देखें- क् + अ = क । क् + आ = का । क् + इ कि क् + ई की । क् + उ कु | क् + ऊ कू । क् + ऋ- कृ क् + ॠ = कु | क् + ऌ = क्लृ । क् + लृ क्लृ | क् + ए के । क + ऐ कै क् + ओ को । क् + + औ = कौ | क् + अॅक । क् + अंक । छन्दःशास्त्र में मात्रा का यह अर्थ नहीं लिया जाता । 

     स्वर के उच्चारण में बहुत कम समय लगता है । इसलिए घड़ी देखकर यह नहीं बताया जा सकता कि अमुक स्वर के उच्चारण में इतने सेकेंड लगे । जिस तरह घड़ी द्वारा बताए समय को सेकेंड , मिनट या घंटे के द्वारा सूचित करते हैं , उसी तरह छंदःशास्त्र में के उच्चारण में जो समय लगता है , उसे ' मात्रा ' शब्द के द्वारा सूचित किया है । इस बात को दूसरे एक वाक्य में इस तरह भी कह सकते हैं कि एक ह्रस्व स्वर के उच्चारण में लगनेवाले समय को छंदःशास्त्र में ' मात्रा ' कहते हैं । इस तरह हम देखते  हैं कि ' मात्रा ' स्वर के उच्चारण में लगनेवाले समय की इकाई है ।

      जिस स्वर के उच्चारण में एक मात्रा लगती है , उसे लघु और जिस स्वर के उच्चारण में २ मात्राएँ लगती हैं , उसे गुरु कहते हैं । लघु - गुरु की यह परिभाषा छंदःशास्त्र की अपनी है । लघु को खड़ी सीधी रेखा ( 1 ) के द्वारा और गुरु को खड़ी टेढ़ी रेखा ( S ) के द्वारा सूचित किया जाता है । लघु ' ल ' के द्वारा और गुरु ' ग ' के द्वारा भी संकेतित किया जाता है ।

     शब्द में स्वर स्वतंत्र रूप में और मात्रिक रूप में भी आते हैं , जैसे आया ' शब्द में ' आ ' स्वतंत्र या मूल रूप में आया है ; परंतु ' या ' में वही ' आ ' स्वर बदले हुए रूप या मात्रिक रूप (  ा ) में आया है । शब्द में आये हुए स्वरों की ही मात्राएँ गिनी जाती हैं , चाहे वे स्वर किसी भी रूप में आए हों । शुद्ध व्यंजन ( स्वर - रहित व्यंजन ) की मात्रा नहीं गिनी जाती । शब्द में आये किस स्वर को लघु या गुरु माना जाए अथवा किस स्वर की १ मात्रा गिनी जाए और किस स्वर की २ मात्राएँ , इसके विशेष नियम नीचे बताये जाते हैं → 

     ह्रस्व स्वरों की अपेक्षा दीर्घ स्वरों और संयुक्त स्वरों के उच्चारण में दूना समय लगता है । जब किसी स्वर का उच्चारण लंबा खींचकर इस तरह किया जाए कि उसके उच्चारण में सामान्य रूप से उच्चारण किये गये ह्रस्व , दीर्घ और संयुक्त स्वरों की अपेक्षा विशेष समय लगे , तब वह प्लुत स्वर कहला जाता है । किसी स्वर का प्लुतत्व उसकी दायीं ओर या रखकर सूचित किया जाता है ; जैसे-- ओ३म् या ओऽम्यहाँ ३ या ऽ सूचित करता है कि ओम् में ओ प्लुत है । यदि दूर में खड़े मोहन नाम के किसी व्यक्ति को ऊँची आवाज में ' ऐ मोहन ! ' कहकर पुकारा जाय तो ' ऐ मोहन ! ' का ह प्लुत हो जाएगा और तब ' ऐ मोहन ! ' संबोधन इस तरह लिखा जाएगा - ' ऐ मोहऽन ! " 

     ह्रस्व स्वर की १ मात्रा और दीर्घ तथा संयुक्त स्वरों की २-२ मात्राएँ गिनी जाती हैं । कुछ उदाहरण नीचे देखे जा सकते हैं--

 अगम---( 111 )--- ३ मात्राएँ ।  आधार---( SSI )---५ मात्राएँ ।  इकाई--- ( 155 )---५ मात्राएँ । उचाट--- ( 1S1 )---४ मात्राएँ ।  ऊधमी---( SIS )---५ मात्राएँ ।  ऋषि---( 11 )---२ मात्राएँ ।  पितृण--- ( 151 )---४ मात्राएँ ।  एक---(S1 )---३ मात्राएँ । ऐरावत--- ( SSII )---६ मात्राएँ । आज---( S1 )---३ मात्राएँ ।  औषधि--- ( SII )---४ मात्राएँ ।  दीन---( S1 )---३ मात्राएँ ।  दिन--- ( 11 )--- २ मात्राएँ ।  कैकेयी---( 555 ) ---६ मात्राएँ । केतु---( 51 )--- ३ मात्राएँ ।  कोटि---( S1 )--- ३ मात्राएँ । कौशल---( SII )--- ३ मात्राएँ ।  साधु---( 51 )---३ मात्राएँ । वधू--- ( 15 )---३ मात्राएँ ।  ईश---( 51 )---  ४ मात्राएँ ।     

  → छन्द के चरण का अंतिम स्वर तो प्रायः प्लुत की तरह उच्चारित किया ही जाता है , बीच के भी कई स्वर प्लुत हो जाते हैं , फिर भी छंद में हर हालत में प्लुत स्वर की दो ही मात्राएँ गिनी जाती हैं । 

     यदि दीर्घ और संयुक्त स्वर का उच्चारण इस तरह किया जाए कि उसमें ह्रस्व स्वर के उच्चारण का समय लगे , तो उस दीर्घ और संयुक्त स्वर की एक-एक मात्रा ही गिनी जाएगी । जैसे- आ , ई , ऊ , ॠ ,  ऌ , ओ , औ , ए , ऐ में से प्रत्येक की दो मात्राएँ गिनी जाती हैं , परन्तु यदि इनमें  से किसी का बहुत कम समय में ही उच्चारण कर लिया जाए या छंद के आग्रह से बहुत कम समय में ही उच्चारण करना पड़े , तो इसकी १ मात्रा गिनी जाएगी ; जैसे-- 

प्रेम दान दो प्रेम के दाता , पद - राता रहें सतगुरु जी । 

     इस चरण में के ' ह्रस्व' की तरह उच्चरित होता है , इसलिए इसकी १ मात्रा गिनी जाएगी , २ नहीं । 

जेहि कर जेहि पर सत्य सनेहू । सो तेहि मिलहि न कछु संदेहू । ( मानस ) 

     इस अर्धाली में जेहि , जेहि और तेहि की ३-३ मात्राएँ नहीं , २-२ मात्राएँ ली जाएँगी ; क्योंकि जे , ज़े और ते ह्रस्व की तरह उच्चरित होते हैं । 

     → नाक से उच्चरित होने या न होने की दृष्टि से स्वर के दो भेद हैं - अनुनासिक और निरनुनासिक । जो स्वर नाक से उच्चरित होता है , उसे अनुनासिक स्वर कहते हैं । स्वर के मूलरूप या उसके मात्रिक रूप पर चन्द्रविंदु ( * ) देकर उसका अनुनासिक होना सूचित किया जाता है; जैसे- 

मात्रा गिनती


     सर्वथा स्पष्ट भाषा में यह कहा जा सकता है कि यदि चन्द्रविंदु ह्रस्व स्वर पर हो , तो उसकी एक मात्रा और यदि दीर्घ या संयुक्त स्वर पर हो , तो उसकी दो मात्राएँ गिनी जाएँगी । 

     चन्द्रविंदुयुक्त दीर्घ या संयुक्त स्वर भी यदि ह्रस्व की तरह उच्चरित होता हो , तो उसकी भी एक मात्रा गिनी जाएगी । क्रमशः


इस पोस्ट के शेषांश में 'चंदविन्दु, अल्पप्राण, महाप्राण आदि के मात्रा और उसके गिनने के नियम' का बर्णन हुआ है उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में  मात्राओं के प्रकार? मात्राओं की गणना के नियम, हिन्दी में मात्रा कितनी है और मात्रा की गणना कैसे, मात्राओं की गणना,  मापिक छंदों में मात्रा गणनाएँ और उसकी सही-सही गिनती, मात्राओं की गणना का सामान्य नियम,  इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.



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