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LS14 छंद-योजना 06 || छंद के चरण और पद, वर्ण और मात्रा, सम चरण और विषम चरण आदि बातें जाने

महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना / 06

     प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मँहीँ पदावली की छंद योजना' पुस्तक के इस भाग में हम लोग जानेंगे कि छंद में चरण किसे कहते हैं? छंद के चरण से क्या समझते हैं? छंद के चरण को क्या-क्या कहा जाता है? छंद के चरण और प्रवाह में क्या तालमेल होता है? सम चरण और विषम चरण क्या है? किन छंदों के चार चरण होते हैं? कौन से छंद दो पंक्ति में लिखा जाता है? छंदों के कितने चरण होते हैं? छंद चरणों में कितनी मात्रा होती है? चरणों के अंत में लघु-गुरु का महत्व क्या है?  आदि बातें.


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छंद-योजना पर चर्चा करते गुरुदेव और लेखक


छंद के चरण और पद, वर्ण और मात्रा, सम चरण और विषम चरण आदि बातें जाने

छन्द के अंग 


चरण : 

     छन्द कई पंक्तियों में लिखा जाता है । उन कई पंक्तियों में से प्रत्येक को चरण या पद कहते हैं । वास्तव में चरण छंद की एक इकाई है , जो लयपूर्ण ध्वनियों की निश्चित लंबाई या तरंग होती है । सामान्यतः छन्द के चार चरण होते हैं । इनमें से प्रत्येक चरण को पाद भी कहते हैं । ' पाद ' का अर्थ है - पैर या किसी पदार्थ का चौथाई अंश । प्रत्येक चरण में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती है । इसके द्वारा चरण की छोटी - बड़ी ध्वनियों का संतुलन करके उसमें प्रवाह ला दिया जाता है । जिस तरह हमलोग चरणों के सहारे खड़े होते हैं और चलते भी हैं , उसी तरह छन्द का ढाँचा चरणों पर अवलंबित रहता है और चरणों के सहारे प्रवाहमय भी हो पाता है । 

     जिस संख्या में दो से पूरी तरह भाग लग जाता है , उसे सम संख्या कहते हैं और जिस संख्या में दो से पूरा का पूरा भाग नहीं लगता है , उसे विषम ( वि + सम ) संख्या कहते हैं । इसीलिए छन्द के दूसरे - चौथे चरणों को सम चरण और पहले - तीसरे चरणों को विषम चरण कहते हैं । 

     सरसी , सार , ताटंक , विष्णुपद , रूपमाला , दिक्पाल , हरिगीतिका , गीतिका , रोला आदि छन्दों के चार चरण होते हैं और चार पंक्तियों में लिखे जाते हैं । दोहा , सोरठा , बरवै आदि के भी चार चरण होते हैं , परंतु दो पंक्तियों में लिखे जाते हैं । इनकी प्रथम पंक्ति को प्रथम दल या पूर्व दल और दूसरी पंक्ति को दूसरा दल या उत्तर दल कहते हैं ।

पदावली' की छंद-योजना के लेखक पूज्य बाबा श्री लालदास जी महाराज
लेखक बाबा लालदास

     कुछ छन्दों के चारो चरण मात्राओं या वर्णों की संख्या की दृष्टि से एक - जैसे होते हैं , जैसे सार , सरसी आदि के चारो चरण । कुछ छन्दों के पहले तीसरे और दूसरे - चौथे चरण एक - जैसे होते हैं , जैसे दोहा , सोरठा , बरवै आदि छन्दों के । 

     छन्दों के छह , आठ , बारह और सोलह से भी अधिक चरण होते हैं । छप्पय और कुंडलिया के छह - छह चरण होते हैं । संतों के पद्यों में सोलह से भी अधिक चरण देखे जाते हैं । 

     चरणों की लंबाई मात्राओं या वर्णों की संख्या पर निर्भर करती है । चरण में कितनी मात्राएँ या वर्ण हैं , वर्णों का क्रम क्या है , यति कितनी मात्राओं या वर्णों पर है और चरणान्त में लघु - गुरु वर्णों का क्रम क्या है यह सब देखने पर ही पता चलता है कि वह चरण किस छन्द का है । 

     किसी - किसी चरण के अंत के लघु - गुरु वर्णों का क्रम बदल देने से वह दूसरे छन्द का चरण हो जा सकता है ; जैसे २६ मात्राओंवाले गीतिका छंद के चरण के में लघु - गुरु ( 15 ) होते हैं ; यदि उनके स्थान पर गुरु - लघु ( 51 ) कर दिये जाएँ , तो वह चरण २६ मात्राओंवाले गीता छंद का हो जाएगा । 

      कई पद ( चरण ) होने के कारण ही छन्दोबद्ध रचना को पद्य भी कहते हैं । ∆


इस पोस्ट के बाद छंद के यति का बर्णन हुआ है उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में  छंद के अंग कौन कौन से हैं? छंद में चरण क्या होते हैं? चरण कितने प्रकार के होते हैं? एक छंद में कितने चरण होते हैं? पाद अथवा चरण क्या है? छंद के अंग बताइए, चरण के उदाहरण, हरिगीतिका छंद के प्रत्येक चरण में मात्राएँ होती है, छंद के कितने अंग हैं, सोरठा छंद में कितने चरण होते हैं, प्रथम चरण, चरण: चरण,? इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.



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