Ad

Ad2

LS14 छंद-योजना 03 || महर्षि मँहीँ पदावली के लेखक, रचना, भाषा-भाव, भजन और छंद की महिमा

महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना / 03

     प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मँहीँ पदावली की छंद योजना' पुस्तक के इस भाग में हम लोग जानेंगे कि पदावली के पहले पद्य की महिमा, धनात्मक रामनाम की महिमा वाला पांचवां पद्य, 44 वां पद्य का पाठ ध्यान में उन्नति कराने वाला है, साधकों के लिए किन नियमों का पालन जरूरी है यह 137 में पद्य में बताया गया है,  गुरुदेव के साहित्य की महिमा, गुरु महाराज के पदावली पुस्तक का इतिहास और उनके नाम की विशेषता, पदावली में किन-किन विषयों पर भजन या छंद उपलब्ध है? आदि बातें.


इस पोस्ट के पहले बाले भाग को पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं


पदावली और बाबा लालदास

महर्षि मँहीँ पदावली के लेखक, रचना, भाषा-भाव, भजन और छंद की महिमा


पिछले पोस्ट का शेषांश-

     पदावली का ' ईश - स्तुति ' शीर्षक पहला पद्य भाव और छंद की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है । ईश्वर स्वरूप के बारे में जितना जो कुछ वेद - उपनिषदादि शास्त्रों में कहा गया है , सबका निचोड़ इस पद्य में आ गया है । इस पद्य के समान ईश्वर स्वरूप का प्रतिपादन करनेवाला दूसरा कोई भी पद्य संत - साहित्य में देखने को नहीं मिला । इसी एक पद्य की व्याख्या मैंने ' संतमत - दर्शन ' नामक पुस्तक के १२८ पृष्ठों में की है , फिर भी मुझे पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई । इसी पद्य की एक शब्दावली ' सापेक्षता के पार में ' पदावली की सबसे क्लिष्ट शब्दावली है । इस शब्द का ठीक - ठीक अर्थ बहुत कम महानुभाव जान पाये हैं । कहते हैं कि कभी मनिहारी आश्रम - निवास - काल में जब गुरुदेव एक दिन गंगा स्नान करने के लिए जा रहे थे , उसी समय मार्ग में यह पद्य हरिगीतिका छंद में उनके हृदय से अनायास स्फुटित हुआ । जब वे स्नान करके आश्रम लौटे , तो कागज पर लिपिबद्ध कर लिया । 

सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज
सद्गुरु महर्षि मेंहीं

     पहले पद्य के बाद अर्थ की गंभीरता रखनेवाला दूसरा पद्य है- ध्वन्यात्मक रामनाम का संकीर्त्तन करनेवाला ५ वाँ पद्य । इसमें ऋषियों और संतों का शब्द - विज्ञान समाया हुआ है । ७ वें पद्य में भी संतमत - सिद्धांत वर्णित हुए हैं । इसमें अंतत : कहा गया है कि सद्गुरु की सेवा करना सारे सिद्धांतों का निचोड़ है । 

     ' अरिल ' शीर्षक ४४ वें पद्य में विस्तारपूर्वक संतमत की साधना - पद्धतियों और साधनात्मक अनुभूतियों का वर्णन किया गया है । इस पद्य के पढ़ने पर साधकों को साधना के पथ पर चलने का स्पष्ट संकेत प्राप्त होता है । मुझे ध्यान में मन नहीं लगता है ' - ऐसा एक संन्यासी युवक के कहने पर गुरुदेव ने कहा था- " मेरी पदावली का ' अरिल ' शीर्षक पद्य एकाग्रतापूर्वक पढ़ो और उसमें बतायी विधि से अभ्यास करो , मन लग जाएगा । 

     " गीतिका छंद में लिखे गये ' बारहमासा ' शीर्षक १३७ वें पद्य में साधकों के लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण चेतावनी और उपदेश भरे पड़े हैं । कभी - कभी यह पद्य गुरुदेव भी शिष्यों से पाठ करवाकर सुना करते थे । इसकी लय बड़ी मीठी और मनोरम है । 

     सद्गुरु महर्षि में ही परमहंसजी महाराज २८ अप्रैल , सन् १८८५ ई ० को बिहार की धरती पर अवतरित हुए और पूरे १०१ वर्ष तक उत्तरी भारत की जनता को अपने सत्संग , साधना और आध्यात्मिक ज्ञान से लाभान्वित करते रहे । यद्यपि वे ८ जून , सन् १९८६ ई ० को परिनिवृत्त हो गये , तथापि वे जो ज्ञानालोक अपने पीछे छोड़ गये हैं , वह अभी भी धर्मप्रेमियों का पथ - प्रदर्शन कर रहा है । एक बार उन्होंने अपने आवास के बरामदे में व्हील चेयर पर बैठकर हवाखोरी करते समय कहा था - ' एक दिन कुप्पाघाट आश्रम खंडहर हो जाएगा , लोग इसको देखने के लिए आएँगे ; परंतु मेरी लिखी पुस्तकें रहेंगी । 

पदावली' की छंद-योजना के लेखक पूज्य बाबा श्री लालदास जी महाराज
लेखक बाबा लालदास

     गुरुदेव ने बहुत - सी पुस्तकें लिखी हैं । उनमें से सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक है - ' महर्षि मँहीँ -पदावली ' । इस पुस्तक की हर साल सबसे अधिक प्रतियाँ बिकती हैं । पहले इसका नाम था - ' मँहीँ -पदावली ' । इससे भी पहले गुरुदेव के पद्यों के संकलन का नाम था - ' संतमत सिद्धांत और गुरु - कीर्त्तन । ' कहते हैं , यह संकलन पहली बार सर १९२६ ई ० में छपा था । संतमत - सिद्धांत और संतमत की परिभाषा के साथ इसमें गुरुदेव के अधिकांशत : गुरु - महिमा से संबंधित ८७ पद्य ही संगृहीत थे । गुरुदेव ने इसमें अपने कुछ गुरु - भाइयों के भी रचित पद्यों को स्थान दिया था । यही पुस्तक गुरुदेव की पहली रचना है । 

     पहले गुरुदेव लोगों में ' स्वामी मँहीँ दासजी ' या सिर्फ ' स्वामीजी ' कहकर जाने जाते थे । इनके नाम के साथ ' महर्षि ' और ' परमहंसजी महाराज ' जोड़कर लिखने की परंपरा की शुरूआत टीकापट्टी ( पूर्णियाँ ) -निवासी एक विद्वान् भक्त श्री आनन्दजी ने की थी ; परंतु गुरुदेव लिखा - पढ़ी में अपना नाम सदा केवल ' मँहीँ ' ही लिखा करते थे । ' महर्षि मँहीँ - पदावली ' का प्रथम प्रकाशन वर्ष सन् १९५४ ई ० बताया जाता है । इसमें संतमत - सिद्धांत , ईश्वर - स्वरूप , ईश - स्तुति , संत - स्तुति , गुरु - स्तुति , गुरु - विनती , गुरु - महिमा , साधना - पद्धति , साधनात्मक अनुभूति , जीव , माया , प्रकृति , सृष्टि - क्रम , चेतावनी - उपदेश , सत्संग , सदाचार और मोक्ष से संबंधित विचार व्यक्त किये गये हैं । इसके प्रायः पद्य बड़े ही मधुर और गेयता से भरपूर हैं । भक्त लोग सत्संग आदि मांगलिक अवसरों पर भाव - विभोर होकर ये पद्य गाते हुए देखे जाते हैं । पदावली - लिखित संतमत सिद्धांत ( गद्य ) में वर्षों से व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध एक शब्द ' विस्तृत्व ' छपता आ रहा था , मैंने गुरुदेव की अनुमति से उसे ' विस्तृतत्व ' ( विस्तृत + त्व ) करवा दिया । 

     पदावली के १३ वे , १५ वें और ११४ वें पद्य में दो बार और ९९वें पद्य में एक बार गुरुदेव ने इतने कलात्मक ढंग से 'सतगुरु महाराज की जय ' जैसा वाक्य लिख रखा है कि सामान्य रूप से इन पद्यों का अवलोकन करने पर यह वाक्य दृष्टिगत नहीं हो पाता ; इन पद्यों का मौखिक पाठ या गायन करने पर भी यह वाक्य उच्चरित नहीं हो पाता । इससे गुरुदेव की कलाप्रियता जाहिर होती है । इस ओर सबसे पहले मेरा ध्यान पूज्यपाद श्री शाही स्वामीजी महाराज ने आकर्षित किया था । १३ वें , १५ वें और ११४ वें पद्य की बाहर की ओर निकली हुई प्रत्येक पंक्ति का प्रथम अक्षर जोड़ देने पर ' सतगुरु महाराज की जय ' वाक्य बन जाता है । इन पद्यों की अंदर की ओर धँसी हुई प्रत्येक पंक्ति का भी प्रथम अक्षर जोड़ने पर वही वाक्य बन जाता है । ९९वें पद्य की केवल आरंभिक प्रत्येक पंक्ति के प्रथम अक्षर के मेल वाक्य बन जाता है । क्रमशः


इस पोस्ट के शेष भाग को पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में पदावली के लेखक कौन हैं? पदावली की भाषा क्या है? महर्षि मँहीँ पदावली किसकी रचना है? महर्षि मँहीँ पदावली क्या है? पदावली अंग्रेजी में, पदावली की निरूपण, पदावली महर्षि मेंहीं, पदावली भजन, पदावली विज्ञान दाहरण, इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.


महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना'  के अन्य पोस्ट 

     LS14 महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना || छंद की परिभाषा,   परिचय, प्रकार, इत्यादि बताने वाली पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए    👉 यहाँ दवाएँ.

     सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए   👉 यहाँ दवाएँ. 

---×---

LS14 छंद-योजना 03 || महर्षि मँहीँ पदावली के लेखक, रचना, भाषा-भाव, भजन और छंद की महिमा LS14 छंद-योजना 03 ||  महर्षि मँहीँ पदावली के लेखक, रचना, भाषा-भाव,  भजन और छंद की महिमा Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/01/2022 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।

Ad

Blogger द्वारा संचालित.