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LS08 महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँ 05 || सत्संग ही मजबूत गढ़ है -Madalsa ka upadesh, सत्संग महिमा

महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ  / 05

     प्रभु प्रेमियों  !  लालदास साहित्य सीरीज के 08 वीं पुस्तक 'महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ '  के इस लेख में  मनुष्य को मनो विकारों से बचाने वाला सत्संग ही है, इसलिए यह बहुत मजबूत किला के समान है ; ऐसा ही उपदेश माता मदालसा अपने बैरागी पुत्र गोपीचंद जी के लिए कह रही थी. उसी प्रसंग की  चर्चा यहां करके उपरोक्त बात की पुष्टि की गई है । 

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LS08 महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ  पर चिंतन करते लेखक
संतमत के वेदव्यास स्वामी लालदास लालदासजी महाराज

५. सत्संग ही मजबूत गढ़ है 


     मेरे पूज्य गुरुदेव ने मुझे आज्ञा दी थी कि जहाँ रहो , सत्संग करो । सत्संग की विशेषता पर अपने देश में घटित प्राचीन काल की एक कथा है--

      गोपीचन्द एक राजा थे । उनकी माता बहुत बुद्धिमती और योग की ओर जानेवाली साधिका थीं । वे योग जानती थीं और करती भी थीं । उनके हृदय में ज्ञान , योग और भक्ति भरी थीं । 

     गोपीचन्द वैरागी हो गये थे । गुरु ने कहा , " अपनी माता से भिक्षा ले आओ । ”  वे माता से भिक्षा लेने गये । माताजी बोलीं , “ भिक्षा क्या दूँ ! थोड़ा - सा उपदेश लेकर जाओ । वह यह है कि बहुत मजबूत किले ( गढ़ ) के अंदर रहो । बहुत स्वादिष्ट भोजन करो और मुलायम शय्या पर सोओ । यही भिक्षा है जाओ । " गोपीचन्द बोले , “ आपकी ये बातें मेरे लिए पूर्णतः विरुद्ध है

मदालसा उपदेश
वैरागी गोपीचन्द और माता मदालसा

     माताजी बोलीं , " पुत्र ! तुमने समझा नहीं । मजबूत गढ़ सत्संग है । इससे भिन्न दूसरा कोई मजबूत गढ़ नहीं है । जिस गढ़ में रहकर काम - क्रोध आदि विकार सताते हैं , जिनसे मनुष्य मनुष्य नहीं रह जाता ; पशु एवं निशाचर की तरह हो जाता है , वह गढ़ किस काम का ! संतों का संग ही ऐसा गढ़ है , जिसमें रहकर विकारों का आक्रमण रोका जाता है और दमन करते - करते उनका नाश भी किया जाता है । " 

     फिर सुस्वादु भोजन तथा मुलायम शय्या के लिए माता बोलीं , " कैसा भी स्वादिष्ट भोजन क्यों न हो , भूख नहीं रहने से वह स्वादिष्ट नहीं लगेगा । इसलिए खूब भूख लगने पर खाओ और जब तुमको खूब नींद आये , तब तुम कठोर वा कोमल जिस किसी भी बिछौने पर सोओगे , वही तुम्हें मुलायम मालूम पड़ेगा । " 

     यह शिक्षा सबके लिए धारण करने के योग्य है । गुरु महाराज कहते थे , " जहाँ रहो , सत्संग करो । स्वयं सीखो और जहाँ तक हो सके , दूसरों को भी सिखाओ , जिससे उनको भी लाभ हो । " ( सत्संग - सुधा , भाग २ , पृष्ठ १२ )


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प्रभु  प्रेमियों ! इस लेख में  सत्संग अर्थ, सत्संग का लाभ, सत्संग संतवाणी, सत्संग प्रवचन, सत्संग की महिमा, मदालसा लोरी, मदालसा अभंग, मदालसा का अर्थ, मदालसा का उपदेश, शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि, i इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.


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LS08 महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँ 05 || सत्संग ही मजबूत गढ़ है -Madalsa ka upadesh, सत्संग महिमा LS08 महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँ 05  ||  सत्संग ही मजबूत गढ़ है -Madalsa ka upadesh, सत्संग महिमा Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/14/2022 Rating: 5

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