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शब्दकोष 27 || नाई से नियम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष /

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


नाई - नियम

 

(ना = न , नहीं । P03 )

नाईं ( सं ० न्याय , स्त्री ० ) = तरह , समान , रीति , तरीका ।

{नाई ( संस्कृत न्याय ) = तरीका , रीति , पद्धति , भाँति , तरह , समान । P06 }

नादानुसंधान ( सं ० , पुं ० ) = नाद की खोज , एक यौगिक क्रिया जिसमें शरीर के अन्दर अनहद ध्वनियों के बीच उस नाद की खोज की जाती है जिससे सारी सृष्टि हुई है । {नादानुसंधान ( नाद+अनुसंधान )= वह युक्ति जिसके द्वारा अन्दर में होनेवाली विविध असंख्य ध्वनियों के बीच आदिनाद की खोज की जाती है । P08 }

नाना ( सं ० , वि ० ) = अनेक प्रकार के , अनेक । 

नाम ( सं ० , पुं ० ) = वह वर्णात्मक शब्द जिसके द्वारा किसी को पुकारा जाए या जाना जाए । 

नामकरण ( सं ० , पुं ० ) = किसी का नाम रखने की क्रिया ।( नामकरण= नाम रखने की क्रिया । P08  ) 

नाम - भजन ( सं ० , पुं ० ) = किन्हीं इष्ट के वर्णात्मक नाम के जपने की भक्ति , परमात्मा के ध्वन्यात्मक नाम का ध्यान करने की भक्ति , नादानुसंधान , सुरत - शब्दयोग । 

नाम - रूप ( सं ० , पुं ० ) = नाम रूप आदि गुणोंवाला पदार्थ , मायिक पदार्थ , नाम और रूप । 

{नाम-रूप = पदार्थ के नाम , रूप ( रंग और आकृति ) , गंध , स्पर्श , शब्द , स्वाद , अन्य कोई गुण , माप - तौल , संख्या , विस्तार ( लम्बाई - चौड़ाई - मुटाई वा गहराई ) आदि । P01 }

नामरूपातीत ( सं ० , वि ० ) = नाम और रूप से विहीन ( पुं० ) परमात्मा । ( परमात्मा का कोई भी वर्णात्मक नाम उसका वास्तविक नाम नहीं है और परमात्मा का स्वरूप स्थूल आँखों तथा दिव्य दृष्टि से भी देखा नहीं जा सकता । परमात्मा का वास्तविक नाम ध्वन्यात्मक सारशब्द है और परमात्मा का स्वरूप आत्मदृष्टि से देखा जाता है ।) 

{नामरूपातीत ( नाम + रूप + अतीत ) = नामरूप - विहीन , कोई वर्णात्मक नाम जिसका सच्चा नाम नहीं है और जिसमें रूप , रस , गंध , स्पर्श तथा शब्द गुणों में से कोई गुण नहीं है , जिसमें कोई विशेषता या लक्षण नहीं है , जिसका विस्तार , माप - तौल या संख्या नहीं बतायी जा सके । P06 }

निःशब्द ( सं ० , वि ० ) = शब्द रहित । ( पुं ० ) शब्द - विहीनता , परमात्मा , शब्दातीत पद । 

निःसंदेह ( सं ० , वि ० ) = संदेह - रहित , शंका - रहित । ( क्रि ० वि ० ) शंका - विहीन रूप से । 

निकटवर्त्ती ( सं ० वि ० ) = निकट रहनेवाला । 

(निकेतन = घर , खजाना , भंडार । P04 ) 

निगम ( सं ० , पुं ० ) = वेद । 

निज ( सं ० , वि ० ) = अपना । 

निज आत्मस्वरूप ( सं ० , पुं ० ) अपना वास्तविक या मूल स्वरूप । 

(निज घर = अपना घर , आदि घर , मूल घर , परमात्म पद । P09 ) 

निज नाम ( सं ० , पुं ० ) = अपना वास्तविक नाम , किसी का अपना वास्तविक नाम, जिससे उसकी पहचान हो जाए । 

( निजपन = अपनापन , अपनत्व , ममत्व , आसक्ति । P09 ) 

निज स्वरूप ( सं ० , पुं ० ) = अपना वास्तविक रूप ।  

नित ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = सदा , हमेशा , प्रतिदिन , रोज ।

नित्य ( सं ० , वि ० ) = अविनाशी । ( क्रि ० वि ० ) नित , प्रत्येक दिन । 

(नित्य = प्रतिदिन । P04 ) 

(निदिध्यास = निदिध्यासन , मनन ज्ञान को व्यवहार में उतारना , मनन किये हुए विषय को प्रत्यक्ष करने के लिए बारंबार उचित प्रयत्न करना , मनन किये हुए विषय का पुनः - पुनः चिन्तन - स्मरण - ध्यान करना । P04 ) 

निम्नलिखित ( सं ० , वि ० ) = नीचे लिखा हुआ । 

नियम ( सं ० , पुं ० ) = अष्टांग योग का दूसरा अंग जिसमें शौच , संतोष , तप , स्वाध्याय और ईश्वर- पुरानी धन ईश्वर में चित्र लगाना आते हैं। 


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  नाई, नादानुसंधान, नाना, नाम, नामकरण, नाम-भजन, नाम-रूप, नामरूपातीत, नि:संदेह, नि:संदेह, निकटवर्ती, निगम, निज, निज आत्मस्वरूप, निज नाम, निज स्वरूप, नित, नित्य, निम्नलिखित, नियम आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 27 || नाई से नियम तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 27  ||  नाई  से  नियम  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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