संतमत-दर्शन व्याख्या भाग 1 ख
आदिनाद, स्फोट और ईश्वर की मौज क्या है? |
आदिनाद, स्फोट और मौज किसे कहते हैं?
प्रभु प्रेमियों ! पिछले पोस्ट में हमलोगों ने सृष्टि चक्र, सृष्टि निर्माण, अज- अनादि आदि शब्दों को जाना है. स्फोट के सिद्धांत, स्फोट in English हिन्दी,अनहद किस भाषा का शब्द है, ध्वनि का लक्षण, स्फोट के भेदों की संख्या, स्फोट का अर्थ, ध्वनि और स्फोट सिद्धांत, आदिनाद स्फोट और मौज किसे कहते हैं? आइए अब इन शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं-
व्याख्या - भाग → 1 ख
न लचकन न सिकुड़न न कंपन है जामें ।
न संचालना नाहिं विस्तृत्व जामें ॥( महर्षि मेँहीँ - पदावली , ४२ वाँ पद्य )
परमात्मा अनंत होने के कारण अपरंपार शक्तियुक्त है । इसलिए यदि कहा जाए कि वह स्वयं अकंपित रहकर और किसी पदार्थ में ठोकर दिये बिना ही कम्पनमय आदिनाद उत्पन्न कर देता है , तो इस कथन में आश्चर्य नहीं मानना चाहिए । यहाँ हम देखते हैं कि आदिनाद की उत्पत्ति में परमात्मा निमित्त कारण तो है ; परन्तु उसका उपादान कारण कुछ भी नहीं है । श्रीमदाद्य शंकराचार्यजी भी कहते हैं ,
' न चेदं शब्दप्रभत्वं ब्रह्मप्रभवत्ववदुपादान कारण त्वाभिप्रायेण । ' अर्थात् इस शब्द ( आदिनाद ) की उत्पत्ति का ब्रह्म की उत्पत्ति के समान उपादान कारण नहीं है ।
परमात्मा सर्वसमर्थ होने के कारण ' कुछ नहीं ' से भी कुछ बना सकता है , जैसा कि तांत्रिक , जादूगर आदि मंत्र वगैरह के भी प्रभाव से थैली में पहले से कुछ नहीं रहने पर भी कुछ निकालकर दर्शकों को दिखा देते हैं । गुरुदेव ने अपने एक प्रवचन में कहा है- “ भौतिक वैज्ञानिक संसार के तत्त्वों को लिये बिना कुछ नहीं बना सकते ; परन्तु ईश्वर ऐसा वैज्ञानिक है कि बिना उपादान के ही सृष्टि करता है । " ( महर्षि मेंहीँ - वचनामृत , प्रथम खंड , पृ ० ४३ )
गुरु नानक देवजी ने तो कहा ही है-- तदि अपना आपु आप ही उपाया । ना किछु ते किछु करि दिखलाया ॥
( अर्थात् परमात्मा ने अपने को अपने से उत्पन्न किया है और नहीं कुछ रहने पर भी कुछ अर्थात् सृष्टि बना डाली है । )
आदिनाद को ही परमात्मा की मौज कहते हैं । इसी आदिनाद या मौज से प्रकृति बनती है । ' मौज ' का अर्थ है कम्प । कम्प और शब्द सहचर होते हैं । दोनों को एक - दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता । इसलिए आदिनाद को मौज कह देना अनुचित नहीं माना जाना चाहिए । ' ये प्रकृति द्वय उत्पत्ति लय होवैं , प्रभू की मौज से । ' ( महर्षि मेँहीँ - पदावली , ७ वाँ पद्य )
इसलिए प्रकृति का उपादान कारण आदिनाद और निमित्त कारण परमात्मा है । पुनः परमात्मा प्रकृति से सृष्टि का निर्माण करता है । यहाँ अब हम देखते हैं कि प्रकृति सृष्टि का उपादान कारण हो जाती है और निमित्त कारण परमात्मा । सीधे ढंग से एक बार में कहा जा सकता है कि सृष्टि का निमित्त और उपादान- दोनों कारण परमात्मा ही है । गुरुदेव कहते हैं कि 'परमात्मा बड़ा वैज्ञानिक है । वह विश्व की रचना करता है , उसके उपादान को भी उत्पन्न करता है । ईश्वर प्रकृति को भी बनाता है , वह किसी भी अंश में कमजोर नहीं है ।' ( महर्षि मेँहीँ वचनामृत , प्रथम खंड, पृष्ठ 86)
जल और मिट्टी में जल अपेक्षाकृत सूक्ष्म और मिट्टी स्थूल है । जल के विकार से मिट्टी बनी है । सूक्ष्म होने के कारण जल की व्यापकता मिट्टी से अधिक है । हम देखते हैं कि जल पृथ्वी के अतिरिक्त आकाश में भी वायु और धूलकणों के सहारे स्थित रहता है । सृष्टि में पूरा - का - पूरा जल मिट्टी नहीं बना है और बन भी नहीं सकता । यदि कोई सृष्टि के समस्त जल को मिट्टी में बदल दे , तो सारी सृष्टि समाप्त हो जाएगी । जल के बिना उससे बनी केवल स्थूल तत्त्व मिट्टी नहीं रह सकती । सूक्ष्म भौतिक तत्त्व से जब स्थूल तत्त्व बनता है , तब सूक्ष्म तत्त्व घट जाता है और इस कारण उसकी सघनता विरल ( पतली ) हो जा सकती है ; जैसे वायुमंडल में हुए वाष्पकणों की कुछ मात्रा को जल में बदल दिया जाए , तो वाष्प कणों की सघनता घट जाएगी अर्थात् पतली हो जाएगी । परमात्मा सर्वत्र एकरस तथा अत्यन्त सघन है ।
अति अलोल अलौकिक एक सम । नहिं विशेष नहिं होवत कछु कम ॥ ( महर्षि मेँहीँ पदावली , पद्य - सं ० १४२ )
बाबा लालदास जी महाराज |
' रामचरितमानस ' के बालकाण्ड में लिखा गया है कि निर्गुण ब्रह्म ही सगुण ( त्रय गुणों के साथ ) हो जाता है ; जैसे जल से पाला और ओला बनते हैं । जल तरल , पाला वाष्प और ओला ठोस होता है । इन तीनों में तात्त्विक भेद नहीं , गुण - भेद होता है । जल से खेती की सिंचाई होती है ; परन्तु पाले और ओले से खेती नष्ट हो जाती है । इसी प्रकार निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में गुण - भेद है । सगुण ब्रह्म के दर्शन से जीव माया से छुटकारा नहीं पाता ; परन्तु निर्गुण ब्रह्म के साक्षात्कार से वह माया से सदा के लिए छुटकारा पा लेता है ।
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें । जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें ॥ ( मानस , बालकांड )
स्वामी विवेकानन्दजी लिखते हैं , “ विशाल ब्रह्मांड में भी ब्रह्मा , हिरण्यगर्भ अथवा समष्टि महत् पहले अपने को नाम में और फिर रूप में अर्थात् इस दृश्यमान- दिखलायी देनेवाले जगत् के रूप में प्रकट करते हैं । यह व्यक्त और इन्द्रिय - ग्राह्य जगत् ही रूप है । इसकी ओट में अनंत अव्यक्त स्फोट ( आदिनाद ) है । ' स्फोट ' का अर्थ है - सम्पूर्ण जगत् की अभिव्यक्ति का कारण शब्द ब्रह्म । समस्त नाम अर्थात् भाव का नित्य समवायी उपादानस्वरूप नित्य स्फोट ही वह शक्ति है , जिससे भगवान् इस जगत् की रचना करते हैं । केवल इतना ही नहीं , भगवान् ने पहले अपने को स्फोट के रूप में परिणत किया और फिर इस स्थूल दृश्यमान जगत् के रूप में । ” ( ' भक्तियोग ' का हिन्दी अनुवाद ' भक्ति ' )
प्रकृति दो प्रकार की है - परा प्रकृति अर्थात् चेतन प्रकृति और अपरा प्रकृति अर्थात् जड़ प्रकृति । जड़ प्रकृति को मूल प्रकृति भी कहते हैं । मूल प्रकृति सत्त्व , रज और तम - इन तीन गुणों की समान - समान मात्राओं का मिश्रण - रूप है । जैसे रस्सी के तीन टुकड़ों के एक - एक छोर को आपस में बाँध दिया जाए और तीन समान बलवाले व्यक्ति रस्सी के दूसरे एक - एक छोर को पकड़कर और तीन दिशाओं में खड़े होकर अपनी - अपनी ओर खींचें , तो उसमें कोई हलचल नहीं होगी , इसी प्रकार मूल प्रकृति में तीनों गुण समान रहने पर उसमें कोई हलचल नहीं होती । अपने इस रूप में मूल प्रकृति साम्यावस्थाधारिणी कहलाती है ।....
अगला पोस्ट में जानेंगे सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई, ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई, ब्रह्मांड की उत्पत्ति के सिद्धांत, वेदों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति आदि बातें. अवश्य पढ़े.
व्याख्या के शेष भाग को पढ़ने के लिए 👉यहाँ दवाएं
प्रभु प्रेमियों ! इस पोस्ट का पाठ करके हम लोगों ने आदिनाद स्फोट और मौज और उत्पत्ति के बारे में जाना अगर आपको इस तरह का पोस्ट पसंद है, तो इससे ब्लॉग को सब्सक्राइब कर लें, इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना ईमेल द्वारा नि:शुल्क प्राप्त होती रहेगी. इस बात को अपने इष्ट मित्रों को अवश्य बता दें जिससे उसको भी लाभ हो. फिर मिलते हैं दूसरे पोस्ट में .
संतमत दर्शन |
इस पुस्तक को खरीदने पर एक विशेष उपहार पानेवाले के लिए आवश्यक शर्तें जानने के लिए 👉 यहां दवाएं.
कोई टिप्पणी नहीं:
सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।