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MS01-01 वेद-मंत्र वैदिक विहंगम-योग से || वेदों का सार सत्संग-ध्यान से संबंधित भारती अनुवाद सहित

वेदों का सार सत्संग और ध्यान

    प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के सबसे चर्चित एवं लोकप्रिय पुस्तक सत्संग योग के पहला भाग से प्रथम पृष्ठ से यहां सत्संग और ध्यान विषयक वर्णन किया जा रहा है। इसमें सत्संग क्या है? वेदों में सत्संग के बारे में क्या कहा गया है? वह कौन सा मंत्र है, जिसमें सत्संग की चर्चा की गई है? इत्यादि बातों के बारे में बताया गया है । इन बातों को जानने से पहले गुरु महाराज का दर्शन करें-

ध्यानस्थ गुरुदेव
ध्यानस्थ गुरुदेव

वेदों में सत्संग ध्यान की चर्चा

     निम्नांकित चित्र का पाठ करके आप समझ जाएंगे, कि वेदों में सत्संग-ध्यान की चर्चा किस रूप में हुई है। इसे जानने के लिए पढ़ें-

सत्संग - योग भाग १

 वेदमंत्र , भारती अनुवाद सहित ( पं ० वैदेहीशरण दूबे लिखित ' वैदिक विहंगम योग ' से संगृहीत ) 

मंत्र - ओ३म् युञ्जानः प्रथमं मनस्तत्त्वाय सविता धियम् ।              अग्नेर्ज्योतिर्निचाय्य    पृथिव्या            अध्याभरत् ॥ 
                                              -- य ० अ ० ११ , मं ०१

भावार्थ -

सविता =जगत् प्रसवकर्त्ता ईश्वर का,  तत्त्वाय = तत्त्वज्ञान प्राप्त करने के लिए, प्रथमम् = पहले, धियम् =  बुद्धि और,  मनः = मनस् वा मानस ( तथा ) ,  अग्ने : = अग्नि की,  ज्योतिः = ज्योतियों के , युञ्जानः = योग कर ( इस ),  निचाय्य =  निश्चय वा दृढ़,  पृथिव्याः = भूमि अर्थात् योग- भूमि को अपने अन्दर , अधि = पर अथवा      में, आभरत् = अच्छी प्रकार धारण करें ।  


सारांश - वेद भगवान् उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यो ! जगत् प्रसवकर्त्ता ईश्वर का तत्त्वज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले बुद्धियोग और मानसयोग तथा अग्नि की ज्योतियों का योग कर , योग की इस दृढ़ भूमि को अपने अन्दर अच्छी प्रकार धारण करें । 

बुद्धियोग = सत्संग । 

मानसयोग = मानस जप तथा मानस ध्यान । 

ज्योतियोग = दृष्टियोग ।


मंत्र - ओ ३ म् युक्त्वाय सविता देवान्त्स्वर्य्यतो धिया दिवम् ।             बृहज्ज्योतिः  करिष्यतः  सविता  प्रसुवाति    तान् ॥ 
                                                  - य ० अ ० ११ , मं ० ३





सत्संग योग प्रथम पृष्ठ


सत्संग योग पृष्ठ दो

सत्संग योग पृष्ठ 3

सत्संग योग पृष्ठ 4
 

विशेष अर्थ-
     एक शब्द है- लंबोदर। जिसका अर्थ होता है- लंबा हो उदर जिसका। लेकिन लंबोदर शब्द का विशेष अर्थ है गणेश जी । जहां कहीं भी लंबोदर लिखा रहता है तो उसके लिए भगवान गणेश जी ही अर्थ लिया जाता है।

धर्म गुरुओं की बातें-
     इसी तरह है योग शास्त्र में धर्मगुरुओं के द्वारा योग शास्त्र में वर्णित विशेष प्रसंग में विशेष अर्थ का विधान है। जो शिष्य परंपरा से ही जाना, समझा जा सकता है।

रहस्य की बातें-
     इन (चित्रों में वर्णित) वेद वाक्यों में जो रहस्य की बातें हैं, उसको साधारण भाषा में सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने बदलाने की कृपा की है।


सत्संग योग भाग 1 के दूसरे पोस्ट में ध्यान योग की महिमा के बारे में बताया गया है कि  उसे पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।


   प्रभु प्रेमियों ! आप लोगों ने वेदों के माध्यम से जाना कि वेदों में सत्संग और ध्यान के बारे में क्या कहा गया है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई प्रश्न है। तो आप हमें कमेंट करें । हम गुरु महाराज के शब्दों में ही उत्तर देने का प्रयास करेंगे आप इस ब्लॉक का सदस्य बने। जिससे आने वाले पोस्टों की सूचना आपको नि:शुल्क सबसे पहले मिले।



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