शब्दकोष-11क || ऊत से ऋष्यमूक तक में ऊपर,ऊर्ध्व,ऊर्ध्वगति,ऊर्ध्वगामी,ऊर्ध्व देश,ऋद्धि,ऋषि आदि शब्दों के शब्दार्थादि
ऊत से ऋष्यमूक तक के शब्दार्थादि
प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेंहीं-शब्दकोष' पुस्तक के लेखक पूज्य पाद लालदास जी महाराज के द्वारा लिखित ऊत से ऊर्ध्वरेता तक और ऋग्वेद से ऋष्यमूक तक के शब्दों के अर्थ एवं अन्य व्याकरणिय परिचय इस पोस्ट में दिये गये हैं। जो बड़ा ही सरल भाषा में है । सबों के लिए आसानी से जानने योग्य है। तो आइए इन शब्दों के अर्थों को जानने के पहले इस पुस्तक और इसके लेखक के तस्वीर देखें.
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ऊत से ऊर्ध्वरेता तक के शब्दों का अर्थादि
ऊ
ऊत ( वि ० ) = अऊत , अपूत , अपुत्र , बिना पुत्र का , निष्फल , व्यर्थ , बेकार , बिना किसी लाभ के ।
ऊपर ( क्रि ० वि ० ) = उलटा । पुं ० सूक्ष्मता ।
ऊर्ध्व ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = ऊपर । पुं ० ब्रह्माण्ड , आज्ञाचक्र का ऊपर का आधा भाग जो प्रकाश - मंडल में है ।
ऊर्ध्वगति ( सं ० , स्त्री ० ) = ऊपर की ओर चलना या उठना , सूक्ष्म मंडल में चढ़ाई ।
ऊर्ध्वगामी ( सं ० , वि ० पुं ० ) = ऊपर की ओर गमन करनेवाला , ऊपर चढ़नेवाला , आन्तरिक ब्रह्मांड में प्रवेश करनेवाला ।
ऊर्ध्व देश ( सं ० , पुं ० ) = ऊपर का देश या लोक , पिंड ( स्थूल शरीर ) से ऊपर का देश , अन्दर - का ब्रह्माण्ड |
ऊर्ध्व द्वार ( सं ० , पुं ० ) = स्थूल शरीर के सबसे ऊपर का द्वार , दशम द्वार ।
ऊर्ध्वरेता ( सं ० , वि ० ) = कभी वीर्यपात न होने देनेवाला , पूर्ण ब्रह्मचारी , नैष्ठिक ब्रह्मचारी , जिसका शुक्र नीचे नहीं गिरकर ऊपर चढ़ता हो । ∆
ॠ
ऋग्वेद ( सं ० , पुं ० ) = चार वेदों में से एक जो संसार का सबसे प्राचीन ग्रन्थ माना जाता है ।
ऋत ( सं ० , वि ० ) = सच्चा । पुं ० नियम ।
ऋतंभरा ( सं ० , वि ० स्त्री ० ) = सत्य से भरी हुई ।
ऋतु ( सं ० , स्त्री ० ) = मौसम ।
ऋद्धि ( सं ० , स्त्री ० ) = सफलता , वृद्धि ।
ऋषि ( सं ० , वि ० पुं ० ) = वैदिक मंत्रों के द्रष्टा , सत्य नियमों की खोज करनेवाला । पुं ० वे आत्मज्ञ महापुरुष जिनके वचन वेदादि ग्रंथों में संकलित हैं ।
ऋष्यमूक ( सं ० , पुं ० ) = पंपा सरोवर के निकट स्थित एक पर्वत ।∆
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प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेंहीं-शब्दकोश' पुस्तक से इस पोस्ट में हम लोगों ने जाना कि ऊत, ऊपर, ऊर्ध्व,ऊर्ध्वगति, ऊर्ध्वगामी, ऊर्ध्व देश, ऊर्ध्व द्वार, ऊर्ध्वरेता और ऋग्वेद, ऋत, ऋतंभरा, ऋतु, ऋद्धि, ऋषि, ऋष्यमूक आदि शब्दों के शब्दार्थ एवं व्याकरणिक परिचय को जाना। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आप् के मन में किसी अन्य प्रकार की जानकारी प्राप्त करने की इच्छा है, तो हमें कमेंट करें और इस बात को अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें जिससे वे भी लाभ ले सके। इस ब्लॉग का सदस्य बने। जिससे आपको आने वाले पोस्ट की निशुल्क सूचना ईमेल द्वारा प्राप्त होती रहे, फिर मिलेंगे दूसरे पोस्ट में । जय गुरु महाराज।
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