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LS01 व्याख्या 14घ || आप अनुश्वर का उच्चारण कैसे करते हैं || अनुस्वार के 10 शब्द || ,ँ की मात्रा शब्द

सद्गुरु की सार शिक्षा || व्याख्या भाग 14घ

      प्रभु प्रेमियों  ! 'श्रीसद्गुरु की सार शिक्षा' पुस्तक के व्याख्या - भाग 14घ  में 'यह सार है सिद्धान्त सबका , सत्य गुरु को सेवना । ' मँहीँ ' न हो कुछ यहि बिना , गुरु सेव करनी चाहिये ॥१४' इस हरिगीतिका छंद का व्याख्या किया गया है.  इसमें बताया गया है कि अनुसवर कौन-सा अक्षर है? आप अनुश्वर का उच्चारण कैसे करते हैं? अनुस्वार प्रश्न हैं,अनुनासिक की मात्रा,अनुस्वार के 10 शब्द, अनुनासिक मात्राओं वाले शब्द, अनुस्वार और अनुनासिक,ँ की मात्रा शब्द, अनुस्वार और अनुनासिको, अनुस्वार और अनुनासिक कक्षा, अनुस्वार और अनुनासिक प्रश्नोत्तरी, अनुनासिक शब्द, उत्तर के साथ अनुस्वार और अनुनासिक वर्कशीट गुरुदेव के बचपन का नाम क्या था? गुरुदेव का नाम मेंही किस प्रकार पड़ाआदि बातों पर चर्चा की गई है. 


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सद्गुरु महर्षि मेंहीं और व्याख्याता
सद्गुरु महर्षि मेंहीं और ब्याख्याता

आप अनुश्वर का उच्चारण कैसे करते हैं? अनुस्वार के 10 शब्द ? ,ँ की मात्रा शब्द


LS01 व्याख्या 14घ

शेषांश-

सद्गुरु महर्षि मेंहीं
महर्षि मेंहीं

     गुरुदेव के बचपन का नाम ' रामानुग्रह लाल दास ' था ; परन्तु ऐसा लगता है कि यह नाम उन्हें अच्छा नहीं लगता होगा । वे मन - ही - मन ऐसे नाम की खोज करते होंगे , जो उनकी प्रवृत्ति , उनके विचारों और उनकी साधना के अनुरूप हो । उनके नाम के लिए ' मेँहीँ ' शब्द जब किन्हीं के मुख से निःसृत होकर उनके कानों में पड़ा होगा और जब उन्होंने इसके अर्थ पर विचार किया होगा , तो उनकी प्रसन्नता का वारापार न रहा होगा । उस दिन साधना में वे विशेष डूबे होंगे और सदा के लिए उन्होंने इस प्रिय नाम को अंगीकार कर लेने का निश्चय कर लिया होगा । गुरुदेव के पिता के चाचा श्रीभारतलाल दासजी ने इनका पूर्व नाम बदलकर ' मेँहीँ लाल ' रख दिया था । बाद में गुरुदेव के गुरु बाबा देवी साहब ने भी इनके इस नाम की उपयुक्तता एवं सार्थकता का समर्थन कर दिया था । 

     संस्कृत में में एक शब्द है ' क्षीण ' । इसका अर्थ है - दुबला - पतला , बारीक , सूक्ष्म हिन्दी का ' झीन ' या ' झीना ' शब्द इसी से निकला हुआ बताया जाता है । ' महा ' और ' झीन ' के योग से बना हुआ शब्द ' महाझीन ' ही विकृत होकर ' महीन ' बना है । इसी ' महीन ' से फिर ' मिही ' और ' मेंहीं ' शब्द बने , जिनका अर्थ हुआ बहुत पतला , बहुत सूक्ष्म ।

    गुरुदेव अपना नाम सदैव इस प्रकार लिखा करते थे मेँहीँ । इस प्रकार उनके द्वारा ' मेँहीँ ' शब्द का लिखा जाना उनके व्याकरण - ज्ञान को प्रकट करता है । वे अपने नाम के अक्षरों पर अनुस्वार कभी नहीं देते थे । एक बार बातचीत के क्रम में उन्होंने मुझसे कहा था- " मैंने संस्कृत या हिन्दी व्याकरण नहीं पढ़ा है , फिर भी मेरे मन में व्याकरण की बातें कभी - कभी अपने - आप स्फुरित हो आती हैं । " मेरे मन में आया कि गुरुदेव ऐसे संत , जो मानसिक एकाग्रता की सीमा के परे की गतिवाले हैं , जिस विषय का चिंतन करेंगे , उसकी बातें क्यों नहीं जानेंगे ! एकाग्रता में ही तो ज्ञान उपजता है । अब हम यह बताने जा रहे हैं कि गुरुदेव अपने नाम के शब्द के ऊपर अनुस्वार न देकर चन्द्रविन्दु क्यों दिया करते थे । 

बाबा लालदास जी महाराज
व्याख्याता

     अनुस्वार बहुरूपिया है और यह कई ढंग से उच्चरित होता है । अनुस्वार का वास्तविक चिह्न - है । यह अनुस्वार कहीं ङ , कहीं ञ , कहीं ण , कहीं न् , कहीं म् और कहीं उँ की तरह उच्चरित होता है । इस प्रकार अनुस्वार के भिन्न - भिन्न स्थलों पर भिन्न - भिन्न ढंग से उच्चरित होने का कारण है , जिसे नीचे स्पष्ट किया जाता है ।

     उदाहरण के लिए एक शब्द लें- ' कंगाल ' । यदि हमें विचार करना है कि इसमें अनुस्वार का उच्चारण क्या होगा , तो इसके लिए क के दायीं ओर का अक्षर देखें । यह ग है । फिर सोचें कि यह ग किस वर्ग का वर्ण है और उस वर्ग का पाँचवाँ अनुनासिक वर्ण क्या है । सोचने पर पता लगता है कि ग कवर्ग ( क , ख , ग , घ , ङ ) का एक वर्ण है और कवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ङ् है । इसलिए ' कंगाल ' में अनुस्वार का उच्चारण ङ् की तरह होगा । ' कंगाल ' को इस प्रकार भी लिखा जाता है- ' कङ्गाल ' । इस ' कङ्गाल ' का उच्चारण ' कँङ्गाल ' की तरह होता है । अनुस्वार का संबंध उस अक्षर से भी होता है , जिसके माथे पर वह बिन्दी की तरह चमकता है अर्थात् अनुस्वार जिस अक्षर के माथे पर रहता है , उसे भी अनुनासिक कर देता है । ' अनुनासिक ' का अर्थ है- जो नाक से भी उच्चरित हो । इसी प्रकार आगे भी समझ लेना चाहिए चंचल - चञ्चल । ( अब ञ् का उच्चारण न की तरह होने लगा है । इसीलिए अब चंचल या चञ्चल चन्चल की तरह उच्चरित होता है । ञ् का सही उच्चारण यँ की तरह होता है । ) मंडल = मण्डल । डंडा = डण्डा । खंड - खण्ड | " घंटा - घण्टा । ठंढा- ठण्ढा बंदर - बन्दर । तंतु - तन्तु | दंत - दन्त । मंत्र - मन्त्र । पंपा = पम्पा । बंबई - बम्बई । 

 के पहले अनुस्वार आवे , तो उसका उच्चारण " ञ् की तरह होगा ;क्योंकि य तालु से उच्चरित होता है और ञ् तालु - नासिका दोनों से , जैसे ' संयम ' में ' ञ्   ' का उच्चारण देखा जा सकता है । र के पहले अनुस्वार का उच्चारण ण् होगा ; जैसे ' संरक्षक ' में देखें । र और ण - दोनों मूर्धन्य वर्ण हैं ।  के पहले अनुस्वार न् की तरह उच्चरित होगा ; क्योंकि दोनों दाँत से उच्चरित होते हैं ; जैसे ' संलग्न ' में देखें ।  के पहले अनुस्वार का उच्चारण उँ की तरह होगा । ' संवल ' का उच्चरण ' सउँवल ' की तरह होगा । ' संवल ' को ' सम्बल ' की तरह उच्चारित करना और लिखना- दोनों गलत हैं ; क्योंकि व पवर्ग का अक्षर नहीं है । व और उ- दोनों ओष्ठ से उच्चरित होते हैं । उँ ओष्ठ और नाक से भी उच्चरित होता है ।  के पहले अनुस्वार का उच्चारण व् की तरह होता था , अब लगभग न् की तरह होने लगा है ; यह ' अंश ' में देखा जा सकता है । श और ञ- दोनों तालव्य वर्ण हैं ।  के पहले अनुस्वार न् की तरह उच्चरित होगा ; जैसे ' संसार ' में देख लें । स और न्- दोनों दन्त्य वर्ण हैं । 

     किसी स्वर के शीर्ष पर बैठकर चन्द्रविन्दु ( ँ ) बतलाता है कि उस स्वर का उच्चारण पूरी तरह नकियाकर करना चाहिए ; जैसे आँख , दाँत । ' दाँत ' और ' दांत ' के उच्चारण में भिन्नता है । ' दांत ' का उच्चारण ' दान्त ' ( दमन किया हुआ ) होगा । ' हंस ' और ' हँस ' पर ध्यान दीजिए । ' चाँद ' को प्रायः लोग ' चांद ' की तरह पढ़ते हैं , जो गलत है ।

     हिन्दी में बहुत - से शब्दों में चन्द्रविन्दु के स्थान पर अनुस्वार दिया जाता है ; परन्तु उच्चारण चन्द्रविन्दु के ही अनुसार किया जाता है ; जैसे - मैं ( मैं ) , में ( में ) , नहीं ( नहीं ) , ईंट ( ईंट ) , ऐंठ ( ऐंठ ) , मेंहदी ( मेंहदी ) , उन्होंने ( उन्होंने ) आदि । यदि ' ईंट ' के ईं के ऊपर के अनुस्वार को अनुस्वार ही माना जाए , तो उसका उच्चारण ईंट की तरह न होकर ईण्ट की तरह होगा । 

     अब अच्छी तरह स्पष्ट हो जाता है कि गुरुदेव ‘ मेंहीं ' शब्द को ' मेँहीँ ' की तरह क्यों लिखते थे । क्रमशः


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     प्रभु प्रेमियों ! 'सदगुरु की सार शिक्षा' पुस्तक की इस व्याख्या में अनुसवर कौन-सा अक्षर है?आप अनुश्वर का उच्चारण कैसे करते हैं? अनुस्वार प्रश्न हैं,अनुनासिक की मात्रा,अनुस्वार के 10 शब्द, अनुनासिक मात्राओं वाले शब्द, अनुस्वार और अनुनासिक,ँ की मात्रा शब्द, अनुस्वार और अनुनासिको, अनुस्वार और अनुनासिक कक्षा, अनुस्वार और अनुनासिक प्रश्नोत्तरी, अनुनासिक शब्द, उत्तर के साथ अनुस्वार और अनुनासिक वर्कशीट  आदि बातों के बारे में जानकारी प्राप्त की. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है.जय गुरु महाराज.


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LS01 व्याख्या 14घ || आप अनुश्वर का उच्चारण कैसे करते हैं || अनुस्वार के 10 शब्द || ,ँ की मात्रा शब्द LS01 व्याख्या 14घ || आप अनुश्वर का उच्चारण कैसे करते हैं || अनुस्वार के 10 शब्द || ,ँ की मात्रा शब्द Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/20/2022 Rating: 5

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