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LS61 शिक्षाप्रद कथाएँ 38 || सभ्यतायुक्त व्यवहारिक आचरणीय ज्ञान का महत्व भारती भाषा(हिंदीं) में || तोता रटंत ज्ञान

शिक्षाप्रद कथाएँ / कथा नंबर 38

शिक्षाप्रद कथाएँ पुस्तक के इस कथा में बताया गया है कि "केवल पुस्तकीय ज्ञान और कथनी से काम चलने वाला नहीं. उसके अनुसार आचरण भी होना चाहिए, नहीं तो उन तोतो की तरह हाल होगा जो रटंत ज्ञानी होते हुए भी उस ज्ञान का लाभ नहीं उठा पाया। सभ्यता युक्त व्यवहारिक आचरणीय ज्ञान का महत्व भारती भाषा  (हिंदीं) में बताया गया है।

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बाबा लालदास सद्गुरु की डायरी


३८. केवल कथनी से काम नहीं चलेगा 

     किसी जंगल में एक महात्मा की तपोभूमि थी । उनकी कुटिया के चारो ओर वृक्ष थे , जिनपर बहुत सारे सुग्गे निवास करते थे । ये सुग्गे मानो महात्मा के पड़ोसी थे । उस एकांत स्थली में अपने साधन अभ्यास के बाद महात्मा भी उन सुग्गों को देखकर मन में बड़ी प्रसन्नता का अनुभव करते थे । कभी - कभी उस जंगल में एक बहेलिया आ जाया करता था । आने के बाद वह कपटपूर्वक अपना जाल फैला देता और उनपर दाने बिखेर देता । सुग्गे दाने खाने के लोभ में जाल बैठ जाते और उसमें फँस जाते ।

     महात्मा भी यदा - कदा यह सारा दृश्य अपनी आँखों के सामने देखा करते थे.  उनके मन  में सुग्गों के प्रति दया का संचार हुआ. सोचा कि कोई ऐसा उपाय किया जाए , जिससे ये भोले - भाले सग्गे बहेलिये के चक्कर में पड़कर फिर से जाल में नहीं फँसें । इसी दृष्टि से महात्मा ने सुग्गों को बार - बार यह पाठ पढ़ाना आरंभ किया , ' बहेलिया आएगा , जाल बिछाएगा , दाने डालेगा , लोभ से उसमें फँसना नहीं । '

लालदास जी महाराज बाबा
निरूपण

     धीरे - धीरे वृक्षों पर निवास करनेवाले सारे के सारे सुग्गे इस पाठ में प्रवीण हो गये । सुग्गों के मुँह से पाठ को रटते देखकर महात्माजी को भी संतोष हुआ और उन्होंने विश्वास कर लिया कि अब ये सुग्गे शिकारी के जाल में नहीं फँसेंगे । 

     मौका पाकर बहेलिया पुनः उस जंगल में आया । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । जब उसने पेड़ों पर रहनेवाले सभी सुग्गों के मुँह से एक ही बात की रट सुनी - " शिकारी आएगा , जाल बिछाएगा , दाने डालेगा , लोभ से उसमें फँसना नहीं । ' बहेलिये को बड़ी निराशा हुई और उसने मन में सोचा कि अब कोई सुग्गा मेरे जाल में नहीं फँसेगा ; क्योंकि यहाँ के सभी सुग्गे समझदार हो चुके हैं । इतना विश्वास हो जाने के बावजूद उसने एक बार जाल बिछाकर परख लेना चाहा कि सुग्गों के पाठ की क्या सच्चाई है । 

     पहले की तरह उसने जाल फैलाकर उसमें दाने डाल दिये । बहेलिये को यह देखकर हैरत हुई कि सुग्गे उस पाठ को रटते रहने पर भी दाने चुगने के लोभ से जाल में फँसते जा रहे हैं । अंत में पहले की तरह बहेलिये ने अपना जाल समेट लिया और उसमें फँसे सुग्गों को लेकर घर की ओर चल दिया । जाल में फंसे रहने पर भी सुग्गे रास्ते भर यही रट लगाये जा रहे थे- ' शिकारी आएगा , जाल बिछाएगा , दाने डालेगा , लोभ से उसमें फँसना नहीं । ' 

     वस्तुतः हम मानवों की स्थिति भी उन सुग्गों से बेहतर नहीं है । लोग सत्संग की बातें सुनते हैं , शास्त्रों को पढ़ते हैं और एक - दूसरों को बताते भी हैं कि यह संसार झूठा है , सब कुछ माया का बाजार है ; किन्तु इतना कहने - सुनने के बाद भी वे माया से ऊपर उठना नहीं चाहते । अपनी जिंदगी नश्वर वस्तुओं की खोज में ही गँवा बैठते हैं । सुग्गों की भाँति संसार की नश्वरता की रट भी लगाते हैं , फिर भी इस नश्वरता की कोई वास्तविक चेतना उनके मन में नहीं बैठती । आखिर एक दिन कालरूपी बहेलिया मौका देखकर आ जाता है और उन्हें मौतरूपी जाल में फँसाकर चल देता है ।

     अतः सिर्फ कथनी से कल्याण नहीं हो सकता । चाहिए तो यह कि सत्संग एवं शास्त्र के वचनों को हम जीवन में चरितार्थ करें । इसी में वास्तविक कल्याण निहित है । ∆


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     प्रभु प्रेमियों ! लालदास साहित्य सीरीज में आपने 'शिक्षाप्रद कथाएँ' नामक पुस्तक के इस कहानी में सभ्यता युक्त व्यवहारिक आचरणीय ज्ञान का महत्व भारती भाषा में (हिंदीं) में जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है.जय गुरु महाराज.


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शिक्षाप्रद कथाएँ

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LS61 शिक्षाप्रद कथाएँ 38 || सभ्यतायुक्त व्यवहारिक आचरणीय ज्ञान का महत्व भारती भाषा(हिंदीं) में || तोता रटंत ज्ञान LS61 शिक्षाप्रद कथाएँ 38 || सभ्यतायुक्त व्यवहारिक आचरणीय ज्ञान का महत्व भारती भाषा(हिंदीं) में || तोता रटंत ज्ञान Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/21/2022 Rating: 5

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