नीति-वचन / 1. 2. 3.
प्रभु प्रेमियों ! 'नीति-वचन' पुस्तक के इस भाग में हमलोग जानेंगे कि गुरु-शिष्य, कर्म, पाप, ध्यान, शत्रु-मित्र ईर्ष्या इत्यादि से संबंधित सूक्तियाँ में गुरु-शिष्य का अर्थ क्या है? गुरु और शिष्य में क्या अंतर होता है? गुरु शिष्य की आदर्श परंपरा क्या है? पाप और पुण्य का समस्त पद, पाप और पुण्य in हिन्दी, पाप का मुख्य कारण क्या है, पुण्य कार्य, पुण्य कैसे करे, सबसे बड़ा पुण्य क्या है, इत्यादि बातें.
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गुरु-शिष्य, कर्म, पाप, ध्यान, शत्रु-मित्र ईर्ष्या इत्यादि से संबंधित सूक्तियाँ
( १ )
- यदि हमारे होश - हवास ठीक नहीं रहें , तो हम दुर्घटनाग्रस्त हो सकते हैं और अपने कर्तव्य पालन में भी भूल कर सकते हैं ।
- यदि आप अपने से छोटे के हृदय को जीतना चाहते हैं , तो उन्हें भरपूर स्नेह दीजिए ।
- गुरु शिष्य को जितना अधिक डाँटते - फटकारते हैं , उतना अधिक शिष्य का कल्याण होता है ; उतना अधिक शिष्य के पापों का क्षय होता है ।
- यदि डाँट - फटकार लगानेवाला व्यक्ति हमें प्रेम भी दे और हमारी भलाई भी करे , तो उसकी डाँट - फटकार हमें बुरी नहीं लगेगी ।
- यदि जीवन में बिल्कुल ही आनंद नहीं मिलता , तो कोई भी प्राणी संसार में जीना पसंद नहीं करता ।
- मरने के समय मनुष्य जो इच्छा करता है , मरने के बाद वह वहीं जन्म लेता है , जहाँ उसकी वह इच्छा पूरी हो सके ।
- हम विषय - सुखों से बँध गये हैं - यही हमारे जन्म - मरण का कारण बन गया है ।
- जो फल की इच्छा छोड़कर कर्म करता है , अपने में कर्त्तापन का अहंकार नहीं लाता है और ईश्वर को अपने कर्म को पूरा कराने का श्रेय देता है , वही अपने कर्म को ईश्वर को समर्पित करता है ।
- पाप कर्म करते हुए यदि कोई काम पूरा करने का प्रयत्न किया जाए , तो वह प्रयत्न निष्फल हो जाएगा ।
- सुषुप्ति अवस्था में शारीरिक और मानसिक- दोनों दुःखों में से किसी का भी अनुभव नहीं होता ।
( २ )
१. यदि हम पाप और पुण्य-- दोनों कर्म साथ - साथ करते हैं , तो हमारा पाप कर्म हमारे पुण्य कर्म को फलदायक होने देने में बाधक बन जाएगा ।
लेखक |
२ . जिसको आपने कभी सताया है, उससे सदा ही सावधान रहिए, वह कभी भी आपसे बदला ले सकता है।
३. स्वजन को हम दुःखी देख नहीं पाते । स्वजन को दुःखी देखकर हम उसके दुःख को दूर करने के लिए प्रयत्नशील हो जाते हैं ।
४. अहंकारपूर्ण वचन बोलने से मन चंचल हो उठता है और फिर चंचल मन ध्यानाभ्यास में जम नहीं पाता ।
५ . जैसे कोई धनी व्यक्ति नाटक में भिखारी का वेश धारण करता है , वैसे ही जीवन्मुक्त महापुरुष संसार में साधारण लोगों का - सा व्यवहार करते दिखायी पड़ते हैं ।
६ . ढालू जमीन पर ध्यानाभ्यास के लिए बैठने पर कठिनाई होती है और गिरने का भी भय बना रहता है ।
७. सोकर उठने पर हमें पता चल जाता है कि हम स्वप्न में थे या गहरी नींद में । गहरी नींद में स्वप्न नहीं होता ।
८. जाग्रत् , स्वप्न और सुषुप्ति - ये तीनों अवस्थाएँ एक - दूसरे से अलग हैं और तीनों में एक - सा ज्ञान नहीं होता ।
९ . स्वप्न और सुषुप्ति का स्मरण जाग्रत् में रहता है ; परन्तु जाग्रत् का स्मरण स्वप्न और सुषुप्ति में नहीं रहता ।
१०. ' विवर्तवाद ' उस दार्शनिक विचारधारा को कहते हैं , जिसमें कहा जाता है कि ब्रह्म में संसार की प्रतीति होती है ; परन्तु वास्तव में संसार सत्य नहीं है ।
( ३ )
- १. आपके जिन सब प्रेमियों ने आपके शत्रु से आपकी रक्षा की है , यदि आप कभी अपने उस शत्रु से मेल - मिलाप कर लें , तो आपके वे सारे प्रेमी आपके विरोधी हो जाएँगे ।
- २ . सभा - सोसायटी में अधिकांश वक्ता अधिक बोलने की अपनी ललक पर नियंत्रण नहीं रख पाते , वे दी गयी समय - सीमा का उल्लंघन कर बैठते हैं ।
- ३. हम जिससे कुछ माँगकर लेते हैं , उसके सामने हमारा आत्मबल गिरा हुआ रहता है ।
- ४. यदि आपका मित्र आपके शत्रु की संगति करने लगे , तो आपका प्रेम अपने उस मित्र से टूट जाएगा ।
- ५. हृदय में पहले से घुसी हुई बुराई बाहर से आनेवाली अच्छाई को हृदय में प्रवेश नहीं करने देती ।
- ६. मनमाना आचरण करनेवाली , बिना प्रयोजन जहाँ - तहाँ घूमनेवाली और परपुरुषगमन करनेवाली युवती स्त्री अपने पति की हत्या कर या करा सकती है ।
- ७ . जो वास्तव में बड़ा नहीं है , वह अपने सिर पर कबतक बड़पन का बोझ ढोता फिरेगा !
- ८. जो असमर्थ है , यदि आप उसके सिर पर बड़प्पन का बोझ रख देंगे , तो वह बहुत दिनों तक उस बोझ को नहीं ढो पाएगा ; कुछ दिनों के बाद वह उस बोझ को सिर से उतार फेंकेगा ।
- ९ . माता , पिता , गुरु आदि उपकार करनेवाले व्यक्तियों की डाँट - फटकार का बुरा नहीं मानना चाहिए ।
- १०. ईर्ष्या - द्वेष आदि मनोविकारों से प्रेरित होकर या दूसरे के हृदय को कष्ट पहुँचाने के उद्देश्य से किया गया अच्छा काम भी दोषपूर्ण या बुरा काम है । ∆
क्रमशः
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सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।