'महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना / 01
प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मँहीँ पदावली की छंद योजना' पुस्तक के इस भाग में हम लोग जानेंगे कि पद्य या छंद कैसे बनाए जाते हैं? उसके बनाने के मुख्य स्रोत क्या है? छंद कौन बना सकता है? किस आयु या अवस्था में सहज रूप से छंद बनने लगते हैं? छंद या कविता को शास्त्रीय ढंग से कैसे बनाते हैं ? शास्त्रीय ढंग से सहज रूप में छंद कैसे बन जाते हैं? आदि बातें.
'महर्षि मँहीँ-पदावली' की छंद-योजना
महर्षि मँहीँ और उनकी पदावली :
पद्य - रचना करने की कोई उम्र नहीं होती । जब हृदय में भावों की स्फुरणा हो , तब पद्य रचा जा सकता है । संत ज्ञानेश्वर ने ११ वर्ष की अवस्था में गीता का पद्यानुवाद किया था । गो० तुलसीदासजी महाराज ने ७९ वर्ष की उम्र में रामचरितमानस ' जैसा अपूर्व ग्रंथ लिखा था । जब सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंसजी महाराज पद्य - रचना से विरत हो बैठे थे , तब एक विद्वान् ने उनसे पूछा - ' अब आप पद्य क्यों नहीं बनाते हैं ? ' उन्होंने संक्षेप में सीधा - सा यही उत्तर दिया था- अब मुझे भावों की स्फुरणा नहीं होती । ' उनके ऐसा कहने पर भी मैंने कई बार देखा कि ८४ वर्ष की अवस्था के बाद भी जब वे कभी भावुक हो उठते थे , तब पद्य की कई पंक्तियाँ उनके मुख से अनायास निकल पड़ती थीं । एक बार उनके एक प्रिय सेवक शिष्य को किसी विवशतावश उनसे दूर ऋषिकेश जाना पड़ा । शिष्य के वियोग में गुरुदेव दुःखित रहने लगे । एक दिन शिष्य का स्मरण करते हुए उनकी आँखों में आँसू छलछला आए और मुख से छन्द की कुछ पंक्तियाँ भी फूट निकलीं । उन पंक्तियों का आशय यह था— " जिस तरह वन में चरने के लिए गयी हुई गाय को गोठ मे बँधे अपने प्यारे नवजात बछड़े की सतत स्मृति होती रहती है , उसी तरह तुम मुझे याद आ रहे हो । तुम शीघ्र मेरे पास लौट आओ ।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं |
सभी कवि संत नहीं होते ; परन्तु प्राय : संत कवि भी हुए हैं - यह तो संतों का इतिहास बतलाता ही है । इसलिए ऐसा कहना असत्य नहीं होगा कि कवित्व सदैव संतत्व का अनुगमन करता आया है । हमारे सद्गुरु भी भारतीय हिन्दी संतों की अविच्छिन्न परंपरा में एक अपूर्व संत हुए , जिनके पद्यों के संकलन का नाम है- ' महर्षि मँहीँ -पदावली । ' यह एक छोटी - सी पुस्तक है , जिसमें इनके रचित छोटे - बड़े १४२ पद्य संकलित किये गये हैं । इस पुस्तिका में गद्य में लिखित संतमत - सिद्धांत और संतमत की परिभाषा के साथ - साथ अंत में संत तुलसी साहब ( हाथरसवाले ) की भी एक आरती जोड़ी गयी हैं । इधर गुरुदेव के कुछ बँगला पद्य प्राप्त हुए हैं , जिन्हें अभी तक पदावली में सम्मिलित नहीं किया गया है ।
गुरु महाराज और लेखक |
एक बार मैंने जब गुरुदेव से पूछा कि हुजूर ! आपने पद्य - रचना के पूर्व क्या छंदःशास्त्र का अध्ययन किया था , तब उन्होंने सहज रूप से उत्तर दिया था - ' नहीं , मैंने छंदःशास्त्र का कुछ भी अध्ययन नहीं किया था । इसी तरह उन्होंने एक बार बिना किसी के पूछे बातचीत के क्रम में कहा था कि जब किसी के मुख से कोई पद्म सुनता था , तब उसी के तर्ज पर अपना पद्य बना लिया करता था । फिर दूसरी बार भी कभी उन्होंने स्वयं कहा था कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय देशवासी एक गीत गाया करते थे - ' आओ वीरो मर्द बनो अब , जेल तुम्हें भरना होगा । ' इसी तर्ज पर मैंने अपना यह गीत - ' आओ वीरो मर्द बनो अब , जेल तुम्हें तजना होगा । ' बनाया । फिर कभी उन्होंने यह भी कहा था कि ' गंग जमुन जुग धार , मधहि सरस्वति बही । फुटल मनुषवा के भाग , गुरुगम नाहि लही ।। ' मेरा यह भजन भी देश भक्ति के एक गीत के तर्ज पर बना हुआ है । उसी गीत में एक चरणांश यह था —— फुटल भरतिया के भाग । ' पदावली का २० वाँ पद्य ' गुरु मम सुरत को गगन पर चढ़ाना ' स्वामी ब्रह्मानंदजी का भजन ' प्रभु मेरे दिल में सदा याद आना ' सुनने के बाद बनाया गया अनुमित होता है ।
पद्य गाते समय उसके शब्दों का ठीक - ठीक उच्चारण नहीं किया जाए , तो उसकी लय बिगड़ जाती है । गुरुदेव शब्दों के उच्चारण पर बड़ा ध्यान दिया करते थे । ग्रंथ - पाठ करते समय पाठक शिष्य जब गलत उच्चारण कर बैठते थे , तब उन्हें गुरुदेव की कड़ी डाँट सुननी पड़ती थी । णकार , उकार , इकार , षकार , शकार आदि का उच्चारण ठीक - ठीक कैसे किया जाना चाहिए यह सब मैंने गुरुदेव से ही सीखा है । क्रमशः
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