शिक्षाप्रद कथाएँ / कथा नंबर 172
१७२. संत की महिमा
सूफी संतों में एक बहुत बड़ी संत थीं , जिनका नाम था राबिया । वे निहायत सादगी की जिंदगी बिताती थीं और हर घड़ी अल्लाह का नाम उनकी जुबान पर रहता था । उनकी कुटिया में साधु - संतों और भक्तों का आना - जाना लगा रहता था ।
एक दिन एक संत आया और रात को उनकी कुटिया में ही रह गया । उसने देखा , राबिया ने रात को अपने सोने के लिए एक टाट बिछाया और तकिये की जगह एक ईंट रख ली । ' अल्लाह ' का नाम लेती हुई फिर वे उस बिस्तर पर आराम से लेट गयीं और जरा - सी देर में गहरी नींद में सो गई । संत चकित रह गया । इतने ऊँचे दर्जे की संत और इतनी कठोर जिंदगी ! उसे बड़ा दुःख हुआ और वह रात - भर अपने बिस्तर पर पड़ा छटपटाता रहा । एक पल को भी उसकी आँखें नहीं लगीं ।
सबेरे उठकर उसने राबिया से कहा , ' आप इतनी तकलीफ क्यों उठाती हैं ? ' ' कैसी तकलीफ ? ' - राबिया ने पूछा ।
रात को संत ने जो देखा था , वह बता दिया । फिर बोला , ' सुनिये , मेरे कई अमीर दोस्त हैं । अगर आपकी इजाजत हो , तो मैं उनसे कहकर आपके लिए एक अच्छा - सा बिस्तर भिजवा दूँ ? "
राबिया उसकी बात सुनकर थोड़ी देर चुप रहीं , फिर बोलीं , ' तुम्हारी मुहब्बत के लिए क्या कहूँ ! पर यह तो बताओ कि क्या मुझे , तुम्हें और अमीरों को देनेवाला एक ही नहीं है ? '
संत ने दबी जुबान से कहा , ' जी हाँ , एक ही है । ' ' तब ' , राबिया बोलीं , ' क्या वह हमें भूल गया है और अन्य दौलतमंदों की उसे याद है ? अगर उसे हमारी याद नहीं है , तो हम याद क्यों दिलावें ? '
घड़ी - भर खामोश रहकर उन्होंने कहा , ' मेरे भाई ! हमें यह हाल पसंद है ; क्योंकि उसे यह पसंद है । ' बेचारा संत आगे एक शब्द भी न बोल सका । ∆
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